सातुड़ी तीज व्रत कथा , कहानी , उद्यापन विधि , पूजन विधि
Satudi Teej Ki Kahani , Kajli Teej Vrat Vidhi , Kajli Teej Uadyapan Vidhi
रक्षाबंधन पर्व के पश्चात भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजली तीज का व्रत किया जाता हैं | इस व्रत को सातुड़ी तीज , बड़ी तीज , कजली तीज , भाद्रपद तीज के नाम से भी जाना जाता हैं | इस व्रत को सुहागिन स्त्रिया अखंड सुहाग की कामना कर पति की दीर्घ आयु का आशीवाद तीज माता से प्राप्त करती हैं | शादी योग्य कन्याये भी योग्य वर पाने के लिए तीज माता का व्रत श्रद्धा व भक्ति से करती हैं | सातुडी तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाया जाता हैं | इस वर्ष यह व्रत 22 सितंबर 2024 को हैं |
सातुडी तीज कजली तीज व्रत के पूर्व की तैयारी –
-
सिंजारे के दिन सिर धोना चाहिए |
-
सिंजारे के दिन हाथ – पांव में मेहँदी बनानी चाहिए |सातुड़ी तीज व्रत से पूर्व शुभ दिन देखकर सवा किलो या सवा पाव चने या गेहू को सेककर पीसकर उसमें घी और बूरा [ पीसी चीनी ] मिलाकर सत्तू का पिंड के रूप में जमा देते हैं |
-
सत्तू [ सातू ] को सूखे मेवे से सजाकर सुपारी या गिट के मोली लपेटकर बीच में रख देते हैं |
-
निमडी माता की पूजा के लिए छोटा लड्डू बनाना चाहिए |
-
कलपने के लिए सवा पाव का लड्डू बनाना चाहिए |
-
एक लड्डू पति को [ झिलाने ] देने के लिए बनाना चाहिए |
-
कंवारी कन्या भाई को लड्डू [ झिलाती ] देती हैं |
सत्तू [ सातू ] आप अपने सामर्थ्यनुसार अधिक मात्रा एवं अधिक प्रकार के बना सकती हैं | सत्तू चावल , चना , गेहूं , का बनाया जाता हैं |
सातुड़ी तीज कजली तीज व्रत पूजन सामग्री :–
-
एक छोटा सत्तू का लड्डू
-
निमडी की डाली
-
दीपक
-
केला , सेव , खीरा ककड़ी ,नींबू
-
कच्चा दूध
-
सादा जल
-
ओढनी [ लाल , गुलाबी ] [ निमडी माता के लिए ]
-
पूजा थाली
-
जल का कलश
-
गाय का गौबर , मिटटी
-
आकडे के या बरगद के पत्ते
-
घी , गुड
सातुड़ी तीज कजली तीज व्रत पूजा तैयारी :-
मिटटी या गाय के गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा तालाब बनाकर घी गुड से पाल बांधकर नीम वृक्ष की टहनी रोप देते हैं | तालाब में कच्चा दूध मिश्रित जल भर देते हैं , किनारे पर दीपक जला कर रख देते हैं |
सातुडी तीज कजली तीज व्रत पूजन विधि :-
-
सातुड़ी तीज कजली तीज के दिन उपवास किया जाता हैं और सांय काल स्त्रिया सोलह श्रंगार करके तीज माता व निमडी माता का पूजन करती हैं |
-
सबसे पहले जल के छीटे दे
-
रोली से तिलक करे , चावल चढाये |
-
रोली , मेहँदी , काजल की तेरह तेरह बिन्दिया अपनी अनामिका ऊँगली से लगाये |
-
निमडी माता के रोली , मोली , मेहँदी , काजल और लाल , गुलाबी मोती लड़ी की लेस वाली ओढनी चढाये |
-
मोली का लम्बा टुकड़ा लेकर मेहँदी की सहायता से मोली का झुला चिपका देवे |
-
इसके बाद निमडी माता के केला और दक्षिणा चढाये |
-
इसके बाद तालाब में दीपक की रौशनी में नींबू , खीरा , कुसुमल [ ओढनी ] , निमडी की पत्ती , दीपक की लौ , सत्तू का लड्डू , आकडे का पत्ता आदि वस्तुओ का प्रतिबिम्ब देखते हैं और दिखाई देने पर इस प्रकार बोलना चाहिए “ तलाई में नींबू दिखे , दीख जैसा ही ठुठे “ इसी प्रकार अन्य वस्तुओ के नाम बोलना चाहिए |
-
विधि पूर्वक पूजन के पश्चात तीज माता की कहानी सुननी चाहिये , कहानी के बाद तीज माता , निमडी माता छीक चौथ माता के गीत गायें |
-
रात्रि में चन्द्रोदय होने पर चन्दमा को जल के छीटे देकर जिमाये |
-
चांदी की अगुठी व कहानी सुना हुआ सत्तू व गेहू के आखे [ दाने ] हाथ में लेकर जल से चन्दमा को अर्ध्य देना चाहिये | अर्ध्य देते समय बोले “ सोना को साक्ल्यो, गज मोत्या को हार भाद्रपद कृष्णा तृतीया के चन्द्रमा के अर्ध्य देते जीवे म्हारा बीर भरतार |
-
इसके बाद आकडे के पत्ते में कच्चा दूध सात बार पीना चाहिए व इस प्रकार बोले :-
-
” जल धायी , सुहाग कोनि धायी ” फिर आकडे के पत्ते के टुकड़े कर चारो दिशाओ में फेक देवे |
-
इसके पश्चात सत्तू के पिंडे पर भाई \ पति से तिलक करवाए | चांदी के रूपये से पिंडा पसवाये इसे पिंडा पासना कहते हैं |
-
सत्तू पर ब्लाउज रूपये रखकर बायना निकाल कर सासुजी को पांव लगकर देना चाहिए |