तेजाजी की कहानी महिमा
भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को तेजाजी की पूजा अर्चना की जाती हैं | गायों के रक्षार्थ तथा वचन पालन के लिए अपने प्राणों का त्याग करने वाले वीर तेजाजी को को लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं | लोक देवता तेजाजी का जन्म एक जाट के घर में हुआ , जो धोलिया वंशी था | नौगोर जिले के खड़नाल गाँव में हुआ | माघ शुक्ला , चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 में हुआ था |उनके पिता का नाम ताहरजी तथा मनसुख रणवा में उनकी माता का नाम रामकुंवरी लिखा हैं | इनका विवाह बाल्यकाल में ही पनेर गाँव में रायमल्ली की पुत्री पेमल से हो गया था |
तेजाजी का पूजन करने वाले पुजारी को घोडला एवं चबूतरे को थान के नाम से जाना जाता हैं |
वीर तेजाजी को ‘ काला और बाला ‘ का देवता कहा जाता हैं |
तेजाजी को भगवान शिव का अवतार माना जाता हैं |
सत्यवादी जाट वीर तेजाजी महाराज का भाद्रपद शुक्ला दशमी तिथि नागौर जिले के परबतसर गाँव में तेजाजी की स्मृति में ‘ तेजा पशु मेले ‘ का आयोजन किया जाता हैं |
सुरसरा [ किशनगढ़ ] में तेजाजी का प्राचीन मन्दिर स्थित हैं |
तेजाजी को सर्प रूप में पूजा जाता हैं |
ब्यावर में तेजा चौक में तेजाजी का प्राचीन थान हैं | भाद्रपद शुक्ला दशमी तिथि को मेले का आयोजन किया जाता हैं |
भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को तेजाजी मन्दिर में नारियल अगरबती चढ़ाने और तेजाजी की ज्योत के दर्शन करने से सभी मनोकामनाए पूर्ण हो जाती हैं |
हाथ में पताकायें लिए पैदल यात्री बाबा के जयकारे लगाते हुये राजस्थान की धरती को गुंजायमान करते हैं तथा तेजाजी के थान पर दर्शन करने जाते हैं | सर्प तथा जहरीले कीड़े के काटने पर तेजाजी के थान पर तांती बंधी जाती हैं |
तेजा दशमी की कथा वीर तेजाजी की कहानी
ऐसी मान्यता हैं कि तेजाजी का विवाह बचपन में पेमल से हो गया था | परन्तु शादी के कुछ समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गई और पेमल के मामा की मृत्यु हो गई | इस कारण तेजाजी को उनके विवाह के बारे में नहीं बतलाया गया |
एक बार उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात कह दी तब तानों से दुखी हो ससुराल का ठिकाना जानकर लीलन घौड़े पर स्वर होकर पत्नी पेमल को लेने गये | रास्ते में तेजाजी को एक सर्प आग में जलते हुए मिला उन्होंने सर्प को बचा लिया , किन्तु सर्प जौड़े से बिछुड़ जाने के कारण क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा , तब उभोने लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की और बढने लगे | किसी कारण वंश ससुराल में तेजाजी को तिरस्कार का सामना करना पड़ा | तेजाजी की प्रथम भेट पेमल से उसकी शेली लाखा गुजरी के घर पर हुई |
पत्नी की सहेली लाखा नाम की गुजरी की गायों को मेर के मीणा चुरा कर ले गये |लाखा की विनती सुन तेजाजी ने वचन दिया और तेजाजी ने लुटेरो से संघर्ष कर गायों को छुड़ाया | इस गौ रक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यंत घायल हो गये | वापस लौटते समय सर्प को दिए हुए वचन की पालना करते हुए पुरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर कटवाया | किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश [ सर्प के काटने ] के कारण भाद्रपद शुक्ला दशमी तिथि संवत 1160 तदनुसार 28 अगस्त 1103 को उनकी मृत्यु हो गई | उनकी पत्नी पेमल ने भी उनके साथ अपने प्राण त्याग दिए | उस सर्प ने तेजाजी की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया |
इसी वरदान के फलस्वरूप तेजाजी को सर्पों के देवता के रूप में पूजित हुए | गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे व थान में तेजाजी की अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति होती हैं | विशेष रूप से तेजाजी को जाटों का देवता मन जाता हैं |
जय बोलो वीर तेजाजी महाराज जी जय हो , उनकी सदा ही जय हो |
अन्य लोक देवता