लोकदेवता रामदेव जी की कथा | Ramdevji Lok Devta ] Janam Katha

राजस्थान के लोक देवताओं में रामदेवजी का विशेष स्थान हैं | राजस्थान के लोगो का रामदेवजी पर  अटूट विश्वास हैं | रामदेवजी को भगवान द्वारकानाथ का अवतार स्वरूप मानते है | यहाँ के कई अनेक ग्रामों में इनके छोटे – बड़े मन्दिर और स्थल बने हुए हैं ,जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘ देवरा ‘ कहा जाता हैं | रामदेवजी का जन्म – भाद्रपद शुक्ला दिवतिया वी . स. 1409 को माना जाता हैं | इनका जन्म स्थान रुणिचा या रामदेवरा रामदेवजी का प्रसिद्ध स्थान हैं | जहाँ इनका विशाल मन्दिर और रामसरोवर तालाब हैं |  इनकी माता का नाम मैणादे पिता का नाम अजमल जी , ये तोमर वंशीय राजपूत वंश में इनका जन्म हुआ | रामदेवरा में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दिवतिया से लेकर एकादशी तक विशालकाय मेले का आयोजन किया जाता हैं , जिसमें राजस्थान के ही नहीं , गुजरात , मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , आदि स्थानों से लाखो श्रदालु रामदेवजी के दर्शनार्थ आते हैं | पश्चिमी राजस्थान के तो लगभग हर गाँव में रामदेवजी का देवरा या थान { स्थान } अवश्य मिलते हैं | इन देवरों में [ थान ] पर रामदेवजी के पगलिये स्थापित कर उनकी धुप – दीप से प्रतिदिन पूजा अर्चना की जाती हैं |

 

रामदेवजी के चमत्कारों से युक्त उनकी महिमा का गान करने के लिए अनेक रचनाये बहुत लोकप्रिय हैं | रामदेवजी को असाध्य रोगों एवं भारी संकटो से मुक्ति दिलवाने वाला माना जाता हैं कुष्ट रोगी इनके थान पर जाते हैं और स्वस्थ होकर आते हैं ऐसी मान्यता हैं |

रामदेवजी की जन्म कथा

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राजा अजमल जी द्वारकानाथ जी के परम् भक्त थे पर उनको एक दुःख था की उनके कोई सन्तान नहीं थी और दूसरा दुःख था की उनके हि राज्य में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था | इस कारण  राजा रानी परेशान रहते थे | सन्तान ही माता पिता के जीवनका आधार हैं  | राजा अजम ल जी पुत्र प्राप्ति के लिए दान पुण्य करते , साधू जिमाते , हवन करते , नित्य ही भगवान द्वारकाधीश की पूजा करते | इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी जा पहुंचे | जहाँ अजमल जी को भगवान के साक्षात् दर्शन हुए , अजमल जी के आँखों के आंसू भगवान ने अपने पीताम्बर से पोछकर कहा हे भक्तराज !रो मत मैं तुम्हारा सारा दुःख जनता हूँ | मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हुआ मांग क्या चाहिए |

भगवान की असिम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिए अर्थात आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और भैरव राक्षस को मारकर धर्म की स्थपना करनी पड़ेगी | तब भगवान द्वारकाधीश के कहा – हे भक्त !जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ की पहले तेरे पुत्र विरम देव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा क्या बड़ा तो भगवान बोले दूसरा में स्वय आपके घर आऊंगा | अजमल जी बोले हे प्रभु आप मेरे घर आवोगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा की भगवान मेरे घर पधारे हैं , द्वारकाधीश ने कहा की जिस रात में घर आऊंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मन्दिर हैं उसमे अपने आप घंटिया बजने लग जायेगी , महल में जों पानी होगा दूध बन जायेगा तथा जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और मैं अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाऊंगा |

श्री रामदेव जी का जन्म संवत 1409 में भाद्रपद मास की दिवतिया को राजा अजमल जी के घर हुआ | उस समय सभी मन्दिरों में घंटिया बजने लगी , तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा | महल में जितना भी पानी था वह दूध बन गया , महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुमकुम के पैरो के पदचिन्ह बन गये , महल के मन्दिर में रखा शंख स्वत : बज उठा | उसी समय राजा अजमल को भगवान द्वारकाधीश के दिए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकाधीश जी का मन में ध्यान किया और उनको सत सत नमन |

|| जय बोलो द्वारकाधीश भगवान की जय ||

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