कार्तिक स्नान की पाँच की एक कथा

 कार्तिक स्नान एक ब्राह्मण-ब्राह्मणी थे। बहुत दूर गंगा जमुना में स्नान करते थे। ब्राह्मणी बहुत थक जाती थी। एक दिन बोली कोई लिए बेटा होता तो बहू आती । घर में खाना बना हुआ मिलता, कपड़े घुले मिलते। ब्राह्मण बोला तूने बड़ी बात कही । ला मैं तेरे बहू ला देता हूँ। एक पोटली में आटा बांध दे उसमें पांच सोने की मोहर और सोने के गने डाल दे। उसने पोटली बाँध दी । बाह्मण चल दिया। कुछ दूर पर जमुना जी के किनारे लड़कियाँ अपने- -मिट्टी के घर बनाकर खेल रही थीं। उनमें से एक लड़की बोली में तो अपना घर नहीं बिगाड़ती। मुझे तो रहने को चाहिएगा। ब्राह्मण को वही लड़की मन भा गई। अपने मन में सोचने लगा यही एक समझदार सी लड़की है। वह उसके पीछे-पीछे हो लिया। जब वह घर पहुंची तो बोला, बेटी में भूखा हूँ अपनी मां से पूछ ले मेरी चार रोटियां बना देगी क्या ?

 

 

 

कार्तिक का महीना है. मैं किसी के घर को रोटी नहीं खाता। मेरे पास रोटी बनाने का समान है। अपनी माँ को दे दियो और अपनी माँ से कह दियो कि आटा छान कर रोटी बनाएगी । अच्छी बात है Baba। उसने अपनी माँ से कहा कि माँ बाहर बाबा बैठा है उसकी रोटी बना दो और आटा छान लेना। उसने आटा छाना । उसमें मोहर सोने के गहने निकली। वह बोली जिसके आटे में इतनी मोहर सोने के गने उसके घर में कितनी होगी। जब बाबा रोटी खाने बैठा उसकी माँ बोली, बाबा तुम लड़के की सगाई करने जा रहे हो बाबा कहने लगा कि मेरा लड़का तो काशी जी पढ़ने गया हुआ है।

 

 

 

अगर तुम कहो तो कटार से तुम्हारी लड़की को ब्याह ले जाऊँ ! अच्छी बात है बाबा । वो ब्याह कर ले आया । आकर बोला, रामू की माँ, किवाड़ खोल, देख मैं तेरे लिए बहू लाया हूँ। *बुड़िया बोली दुनिया तो बोली मारे, तू भी बोल मार दे। हमारे तो सात जन्म भी बेटा नहीं है तो बहू कहाँ से आएगी। ना, तू किवाड़ खोल । उसने किवाड़ खोले देखा तो सामने बहु खड़ी है। सास आदर सत्कार बहू की आरती कर बहू को अन्दर ले आई। बूढ़-बुढ़िया नहाने जाते । बहू सारा काम करती। खाना बनाती, कपड़े धोती रात को उनके पाँव दबाती । इस तरह से बहुत समय निकल गया। सास बोली बहू चूल्हे की आँच न बुझने दियो, परिं का पानी न खत्म होने ‘दियो। एक दिन चूल्हे की आँच बुझ गई। भागी भागी बहू पड़ोस के पास गई। बोली, पड़ोसन मुझे थोड़ी सी चूल्हे की आँच दे दो मेरे चूल्हे की आँच बुझ गई है। मेरे सास-ससुर आते ही होंगे। सुबह चार बजे के गंगा-जमना नहाने गए हुए हैं। पड़ोसन ने कहा तू तो बावली है तुझे तो ये यूँ ही उठाकर ले आए हैं। इनके सात जन्म भी कोई बेटा नहीं है। बहू बोली, ना इनका बेटा तो काशी जी पढ़ने गया है। बोली ना झूठ बोला है। बोली मैं अब क्या करूँ ? उसने कहा जली-फुंकी रोटी करदे। अलुनी दाल कर दे। खीर की कड़छी दाल में, दाल की कड़छी खीर में कर दे । उसको पड़ोसन की सिख लग गई। उसने पड़ोसन ने कहा वैसा ही किया। सास-ससुर आए। आज न तो आदर-सत्कार किया न ही उनके कपड़े लिए खाना लगा दिया । सास बोली बहू ये क्या, ये तो जली-फुंकी रोटी हैं और अलुनी दाल है । खालो सासू जी तुम एक दिन खालोगी तो कुछ ना होगा। मुझे तो जीवन भर अलुनी रहना है। सासू बोली बहू को तो पड़ोस की सीख लग गई। रात को सो गई। सुबह भागी-भागी पड़ोस में गई बोली अब क्या करूँ। बोली सातों कोठों की चाबी माँग ले। जब सास जाने लगी तो आगे अड़कर खड़ी हो गई बोली, बाद में जाना पहले मुझे सातों कोठों की चाबी दे दो।

 

 

 

ससुर बोला चाबी दे दो। आज भी इसका, कल भी इसका हमारा क्या है। -आज मरे कल दूसरा दिन। पीछे से बहू ने कोठे खोल के देख किसी में अन्न, किसी में धन, किसी में बरतन, किसी में कपड़े अटूट भंडार भरे पड़े हैं। सातवाँ कोठा खोल के देखा उसमें गणेश जी भगवान, माता लक्ष्मी, पीपल का पेड़, पथवारी माता, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिड़ला, छत्तीस करोड़ देवी-देवता विराजमान हैं। -गंगा जमना बह रही हैं। तिलक लगाए बैठा एक जवान खूबसूरत लड़का माला जप रहा है। बहु बोली आप कौन हैं मैं सेठ सेठानी का बेटा और तेरा पति हूं। किवाड़

बंद कर दे। मेरे माता-पिता आएंगे जब खोलियो ! अब तो बहू बहुत खुश हुई। छत्तीस प्रकार के भोजन बनाए । सोलह श्रृंगार किया, सांची मांची डोले, सास ससुर आए। बड़े प्यार से उनसे बात की, उनके कपड़े धोए, खाना खिलाया । ससुर जी बोले बहू तो धन देख के राजी हो गई। बहू सास के पैर दबाती जाए और कहती माँजी इतनी दूर बारह कोस गंगा जमुना नहाने जाती हो । थक जाती होगी ! तुम घर मैं ही स्नान कर लिया करो । सास बोली बहु बावली है क्या कहीं घर में भी गंगा जमुना बहती हैं। बहू बोली हाँ माँजी चलो मैं दिखाती हूँ। उसने सातवाँ कोठा खोलकर दिखाया उसमें गणेश जी भगवान . माता लक्ष्मी, पीपल, पथवारी, तुलसा माता, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, शिव पार्वती, छत्तीस करोड़ देवी देवता विराजमान हैं। गंगा जमना बह रही हैं। तिलक लगाए चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है। माँ बोली तू कौन ? बोला माँ मैं तेरा बेटा हूँ । तू कहाँ से आया। मुझे तो कार्तिक के राई दामोदर जी ने भेजा है, माँ बोली बेटा दुनिया क्या जानेगी। क्या जानेगा मेरा घर का पति (धनी)। क्या जानेगी दुरानी जिठानी। क्या जाने अगड़ पड़ोसन कि तू मेरा बेटा है। उसने पंडित से पूछा तो वह बोला परली पार पे बहू बेटा खड़े हों, इस पार बुढ़िया खड़ी हो, चाम की अंगिया पहने हो, छाती में से दूध की धार निकले, बेटे की दाढ़ी मूँछ भीगें, पवन पानी से गढ़ जोड़ा बँधे तो सब जानें ये बुढ़िया का बेटा है। उसने ऐसा ही किया। चाम की अंगिया फट गई, छाती में से दूध की धार निकली। बेटे की दाढ़ी मूँछ भीग गई। पवन पानी से बेटे बहू का गठजोड़ा बंध गया। ब्राह्मण-ब्राह्मणी बहुत खुश हुए । हे कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, कृष्ण भगवान जैसे उसे बहू बेटा दिए वैसे सब को दियो। जैसे उसकी इच्छा पूरी वैसे ही कार्तिक मास स्नान करने वालों तारा भोजन की कथा सुनने वालों की मनोकामना पूर्ण करना जय बोलो कार्तिक भगवान राई दामोदर जी भगवान की जय श्री हरि विष्णु की जय ||

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