तारा भोजन की कथा (1)

एक राजा की लड़की कार्तिक मास में तारा भोजन करती थी। उसने अपने पिताजी से कहा, पिताजी मुझे नौ लाख सोने के तारे बनवा दो, मैं दान करूंगी। राजा ने सुनार को बुलाया और कहा कि मेरी बेटी कार्तिक मास में तारा भोजन करती है तुम नौ लाख तारे बना दो । सुनार चिंता करने लगा लगा तब उसकी पत्नी ने पूछा कि तुम उदास क्यों रहते हो । उसने कहा राजा जी ने । नौ लाख तारे बनाने के लिए कहा है। मैं कैसे बनाऊँ मुझे तो तारे बनाने नहीं आते । पत्नी ने कहा राजा की सी बात है इसमें पेरशान होने की क्या बात है। गोल-सा पतरा काट के कलियां काट देना, राजा जी को दे आना । सुनार ने ऐसा ही किया, राजा जी को दे आया। राजा की लड़की ने नौ लाख तारे और बहुत सर और धन कपड़े दान दिया। भगवान का सिंहासन डोलने लगा । भगवान ने कहा देखो मेरे नेम व्रत पर कौन है, तीन कूट देखा तो कोई नहीं था, चौथे कूट देखा कि राजा की लड़की तारा भोजन, कर रही है। भगवान ने कहा उसे ले आओ। उसने व्रत किए हैं। भगवान के दूतों ने कहा चलो तुम्हें भगवान ने बुलाया है। उसने कहा मैं अकेले-अकेले नहीं जाऊंगी । मैं तो सारी प्रजा को, उस सुनार को जिसने मेरे तारे बनाए, जिसने कहानी सुनी, सबको लेकर जाऊँगी। दूत उसके लिए बड़ा विमान लाए कि चलो । वह कहने लगी हाँ अब मैं चलूँगी ।

 

 

 

सब विमान में बैठकर जाने लगे रास्ते में राजा की बेटी को अभिमान हो गया। मैं तारा भोजन व्रत नहीं करती तो पूरे के पूरे गांव को स्वर्ग कैसे मिलता । भगवान के दूत ने उसे वहीं से नीचे उतार दिया कि तुम्हें घमंड हो गया है इसीलिए तेरा सारा पुण्य नष्ट हो गया है । दूत भगवान के पास पहुँचे तो भगवान ने कहा, इन सब में तारा भोजन व्रत करने वाली लड़की कौन-सी है। दूत बोले उसने घमंड किया इसलिए हम उसे हम पृथ्वी लोक पर ही छोड़ आए। भगवान बोले नहीं-नहीं उसे लेकर आओ, लड़की ने कार्तिक के भगवान से बार बार-क्षमा माँग ली है। क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा करो भगवान । कार्तिक मास में तारा भोजन करने के पुण्य से राजा की लड़की को भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों में स्थान प्राप्त हुआ हे कार्तिकेय राय दामोदर जी भगवान राजा की लड़की को स्वर्ग लोक मिला, वैसे भगवान सबको स्वर्ग लोक देना । कहानी कहता नहीं सुनता ने मारा सारा परिवार ने| तारा भोजन 

जय बोलो विष्णु भगवान की जय 

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