जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम , पूजा विधि , जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्त्व , जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा2021 | JIVITPUTRIKA VRAT KO KRNE KE NIYAM , POOJA VIDHI , MAHTTV , JIVITPUTRIKA VRAT KI KATHA2021

29 सितम्बर 2021 बुधवार 

जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के नियम , पूजा विधि , जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्त , जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा

जीवित्पुत्रिका व्रत करने से क्या फल प्राप्त होता हैं यह व्रत किस मास में किया जाता हैं इस व्रत को करने का क्या विधान हैं आइये जानते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के नियम , पूजा विधि , जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्त , जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा

जीवित्पुत्रिका व्रत

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्त्व – जीवित्पुत्रिका व्रत सन्तान कई दीर्घायु के लिए किया जाने वाला व्रत हैं इस व्रत को सभी माताए रखती हैं | अपनी सन्तान को निरोगी तथा दीर्घायु की कामना से यह व्रत रखती हैं | इस व्रत को विधिपूर्वक रखने से सन्तान दीर्घायु , आरोग्य , सुख सम्पति , अन्न , धन , स्नेह , पारिवारिक सुख की  प्राप्ति होती हैं |

जीवित्पुत्रिका व्रत को करने के पीछे की पौराणिक कथा

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा का वर्णन महाभारत में देखने को मिलता हैं | अश्वत्थामा ने मन में वैर रख रात्रि काल में द्रोपदी के सभी पुत्रो को पांडव समझकर मार डाला  और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उतरा के पुत्र को गर्भ में ही मार डालने का प्रयास किया | भगवान श्री कृष्ण ने अपने सम्पूर्ण पुण्यो को ब्रह्मास्त्र के समक्ष कर के उतरा के पुत्र को जीवन दान देकर गर्भ में ही जीवित कर दिया | गर्भ में ही मृत्यु के पश्चात जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया | जीवित्पुत्रिका व्रत तभी से किया जाता हैं | उसी बालक की संसार में राजा परीक्षित के रुप में विख्यात हुए |

जीवित्पुत्रिका व्रत की विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं |

जीवित्पुत्रिका व्रत –  आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से प्रारम्भ होकर नवमी तिथि तक किया जाता हैं |  

जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिन तक किया जाने वाला व्रत होता हैं |

जीवित्पुत्रिका व्रत में पहला दिन सप्तमी तिथि  – नहाय खाय

जीवित्पुत्रिका व्रत में दूसरा दिन अष्टमी तिथि – निर्जल उपवास

जीवित्पुत्रिका व्रत में तीसरा दिन नवमी तिथि – पारण

जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजन विधि

किसी पवित्र स्थान पर स्नानादि से निवर्त होकर नवीं वस्त्र धारण कर मन में पूजा का संकल्प ले |

पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल,  गंध ,पुष्प , नवैध्य आदि से पूजा अर्चना की जाती हैं |

मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है।

 और फिर पूजा करती हैं। लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है।

इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया पिया जाता है। सूर्योदय के पश्चात व्रती को कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है।

इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है |

जीवित्पुत्रिका व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता यह व्रत निर्जल ही किया जाता हैं यदि आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं हैं तो आप फल ले सकती हैं |। इसलिए यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है |

 

जीवित्पुत्रिका व्रत की दूसरी कथा

 गंधर्व के राजकुमार का नाम जीमूत वाहन था | जीमूत वाहन बड़े उदार दयालु और परोपकारी थे | जीमूत वाहन के पिता ने वृद्धा अवस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय  जीमूत वाहन को राज सिंहासन पर बैठाया | किंतु जीमूत वाहन का मन राजपाट में जरा भी नहीं लगता था | जीमूतवाहन राज्य का भार अपने भाइयों को सौंपकर स्वयं वन में पिता की सेवा करने के लिए चले गए | वहीं पर उनका विवाह मलयवती नामक राज कन्या से विवाह हो गया |

 एक दिन जब भ्रमण करते हुए जीमूत वाहन जंगल की तरफ आगे निकल गए थे, तब उनको एक वृद्ध माता विलाप करते हुए दिखी |

 जीमूतवाहन के पूछने पर वृद्धामाता ने विलाप करते हुए कहा कि “ मैं सांप वंश की लड़की हूं “ और मुझे एक ही लड़का है | पक्षीराज गरुड़ के समक्ष नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है|

 आज मेरे पुत्र की बलि का दिन है आज मुझे अपने पुत्र कई बली देनी होगी ऐसा कहकर विलाप करने लगी | जीमूतवाहन ने वृद्धमाता को विश्वास दिलाते हुए कहा कि हे माते ! आप डरे नहीं मैं आपके पुत्र के प्राण रक्षा का वचन देता हूं | आज आप के पुत्र के बजाय में स्वयं लाल कपड़े में लिपटकर वध्य सिला पर लेट जाऊंगा | इतना कहकर जीमूत वाहन ने वृद्ध माता के पुत्र के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और वे स्वयं उस पर लेट गए |  नियत समय पर पक्षिराज गरुड़ आए और लाल कपड़े में ढके हुए जीमूतवाहन को पंजों में पकड़ कर शिखर पर जाकर बैठ गए |

 जीमूत वाहन अपने प्राणों को संकट में देखकर भी उनके मुंह से आह तक नहीं निकली यह देखकर गरुड़ जी को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने जीमूत वाहन से उनका परिचय पूछा – जीमूत वाहन ने गरुड़ जी को सारा वृतांत बता दिया

गरुड़ जी ने जो जीमूत वाहन की बहादुरी और दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए स्वयं का जीवन संकट में डालने की हिम्मत से प्रभावित होकर अत्यंत प्रसन्न हुए और गरुड़ जी ने उनको जीवनदान दे दिया | तथा नागों की बलि ने लेने का भी वरदान उन्होंने जीमूत वाहन को दिया |

जीमूत वाहन के अदम्य साहस से नाग जाति की रक्षा हुई और तभी से ही पुत्र की रक्षा हेतु जीमूत वाहन की पूजा की परंपरा शुरू हो गई|

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.