करणी माता का मन्दिर
करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध मंदिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। करणी माता को चूहे वाली माता के नाम से भी जाना जाता है यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ इस करणी माता मंदिर में सफेद काबा क्यों चूहा दर्शन मंगलकारी माना जाता है। इस पवित्र मन्दिर में बहुत सारे चूहे रहते हैं। इस मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी है जो बहुत ही सुंदर लगती है चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी मंदिर की शोभा में चार चांद लगाती हैऐसी मान्यता है कि करणी माता साक्षात मां हिंगलाज की अवतार है|
करणी माता मंदिर के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी
करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध मन्दिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है। इसमें देवी माता करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। इस मन्दिर को चूहों की माता के नाम से भी जाना जाता हैं | मन्दिर मुख्यतः काले व सफेद चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग २२००० से भी ज्यादा काले व सफेद चूहे रहते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी बहुत ही सुन्दर हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी अत्यधिक शोभा देती हैं |
अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के कृपा और आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।
संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों को इतनी अधिक संख्या में देखकर आश्चर्य होता हैं | पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं। एसी मान्यता हैं की यदि भक्तो से कोई चूहा म्र जाये तो चांदी का चूहा चढ़ाना चाहिए |
चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ शगुन मानते हैं | करणी माता
करणी मां की कथा करनी माता की कथा
करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला चतुर्दशी से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।
करणी माता का अवतरण चारण कुल में वि. सं. १४४४ अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार २० सितम्बर, १३८७ ई. को जोधपुर सुआप में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। करणीजी ने भक्तो के हित के लिए अवतार लेकर तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कर्मस्थली बनाया। करणीजी ने ही राव बीका को जांगल प्रदेश में राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया था। करणी माता ने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्द्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा ‘ओरण’ अर्थात पशुओं की चराई का स्थान की स्थापना की थी। करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान के कारागृह से मुक्त करवा कर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न करवाया था। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षार्थ जूझ कर दशरथ मेघवाल ने अपने प्राण गवां दिए थे। करणी माता ने डाकू पेंथड़ व पूजा महला का अंत कर दशरथ मेघवाल को पूजनीय बनाया |
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