श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्त्व
Shree Krishna Janmashtami Mahattv
जन्माष्टमी 2022
30 अगस्त सोमवार
निशिथ पूजा– 12 बजकर 04 मिनट से 12 बजकर 48मिनट
पारण– 11बजकर 15मिनट के बाद
रोहिणी समाप्त- रोहिणी नक्षत्र रहित जन्माष्टमी
अष्टमी तिथि आरंभ – 09बजकर 06 मिनट
अष्टमी तिथि समाप्त – 11बजकर 15मिनट
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भगवान में श्रद्धा रखने वाले सभी भक्तजनों को करना चाहिए | भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ | श्री कृष्ण भगवान की माता का नाम देवकी व पिता का नाम वासुदेव हैं |
भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस को ही जन्माष्टमी के नाम से संसार में विख्यात हैं | जन्माष्टमी का व्रत करने से ,सन्तान , आरोग्य , धन –धान्य , सद्गुण , दीर्घ आयु और सातों जन्मो के पाप नष्ट हो जाते हैं | भगवान श्री कृष्ण की कृपा से सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं | मथुरा में कृष्ण जन्म बड़ी धूम धाम से मनाया जाता हैं | श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पूजन विधि :-
Shree Krishna Janmashtami Vrat Pujan Vidhi
जन्माष्टमी के एक दिन पूर्व व्रत का नियम ग्रहण करे |
जन्माष्टमी के दिन दोपहर को स्नानादि से निर्वत होकर भगवान कृष्ण के लिए एक सूतिका गृह बनाये |
उसको फूलो और मालाओं से सजाये |
द्वार रक्षा के लिए खड्ग रखना चाहिए |
दीवारों को स्वास्तिक व रंगोली सजाये |
सूतिका गृह सहित देवकी माता की प्रतिमा स्थापित करे |
एक पालने में भगवान के बाल रूप की प्रतिमा स्था
पित करे |
सूतिका गृह को भव्य मन्दिर के समान सजाये |
पंचामृत व केले का प्रसाद बनाये |
अर्ध रात्रि में भगवान का जन्म करवाए मंत्रोचार “ योगेश्वराय योगसम्भवाय योगपतये गोविन्दाय नमो नम: ” के साथ भगवान के बालरुप को पंचामृत से स्नान करवाये |
नई पौशाक पहनाये |
धुप , दीप से भगवान श्री कृष्ण का पूजन करे |
परिवार सहित आरती गाये व परिवारजनों , भक्तजनों को पंचामृत और पंजीरी व केले का प्रसाद वितरण करे |
कृष्ण जन्म कथा [ जन्माष्टमी] की पौराणिक कथा
Shree krishn janm Katha [ Janamashtami } Ki Pouranik Katha
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में जब सिंह राशी पर सूर्य और वृष राशी पर चन्द्रमा था तब मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ | इसी शुभ घड़ी को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं | श्री कृष्ण भगवान के जन्म की कथा इस प्रकार हैं |
स्कन्दपुराण के अनुसार ययाति वंश के राजा उग्रसेन राज्य करते थे | राजा उग्रसेन के पुत्रो में सबसे बड़ा पुत्र कंस था | देवकी कंस की चचेरी बहिन थी | कंस उग्रसेन को जेल में डालकर स्वयं राजा बन गया | इधर कश्यप ऋषि का जन्म राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में हुआ | कंस देवकी को बहुत स्नेह करता था | देवकी का विवाह वसुदेव जी के साथ सम्पन्न हुआ | जब कंस अपनी बहन देवकी को विदा करने के लिए रथ से जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि हे कंस ! जिस बहन को इतने स्नेह के साथ विदा करने जा रहा हैं उसी का आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा | आकाशवाणी होते ही कंस देवकी को मारने को उद्धत हुआ वैसे ही चारो तरफ हाहाकार मच गया | सभी सैनिक वसुदेव जी का साथ देने को तैयार हो गये | पर वसुदेव युद्ध नहीं चाहते थे | वसुदेव जी ने कंस को समझाया की तुम्हे देवकी की आठवी सन्तान से भय हैं | मैं तुम्हे आठवी सन्तान सौप दूंगा | वसुदेव सत्यवादी थे | कंस ने वसुदेव जी की बात मान कर दोनों को बंदी बना लिया और पहरेदार बिठा दिए |
कंस ने देवकी की सभी संतानों को मारने का निश्चय कर लिया | जैसे ही देवकी ने प्रथम पुत्र को जन्म दिया कंस ने उसे जमीन पर पटक कर मार डाला | इसी प्रकार देवकी के सात संतानों को मार डाला | भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ और जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया और आकाशवाणी हुई की इस बालक को तुम गोकुल में नन्द बाबा के यहाँ छोड़ दो और उनके यहा कन्या जन्म हुआ उसको यहाँ लाओ तभी सभी पहरेदार सो गये हथकडिया खुल गई |
वसुदेव जी श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल की और चल दिए रास्ते में यमुना नदी श्री कृष्ण भगवान के चरणों को स्पर्श करने के लिए ऊपर बढने लगी श्री कृष्ण ने चरण आगे बढ़ाया और यमुना नदी को छू लिया और यमुना नदी शांत हो गई |
वसुदेव जी ने नन्द बाबा के यहाँ गये बालक कृष्ण को माँ यशोदा के बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कारागार में आ गये | जेल के दरवाजे बंद हो गये | वासुदेव जी के हाथों में हथकडिया पड़ गई | पहरेदार उठ गये कन्या के रोने की आवाज आई | कंस को सुचना दी गई , कंस ने कारागार में जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा तभी कन्या हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और बोली , हे कंस तुझे मारने वाला पैदा हो चूका हैं | कंस ने श्री कृष्ण को मारने के बहुत प्रयास किये |
श्री कृष्ण भगवान को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे परन्तु श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक शक्ति से सभी दैत्यों को मार डाला | अंत में कंस का वध कर उग्रसेन का राजा बनाया |
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