बुधाष्टमी व्रत की कथा
Budhaashtami Vrat Ki Katha
विदेह राजाओ की नगरी मिथिला में निमि नामके एक राजा थे | वे शत्रुओ द्वारा लड़ाई के मैदान में मार डाले गये | उनकी स्त्री का नाम उर्मिला था | उर्मिला जब राज्य – च्युत एवं निराश्रित हो इधर उधर घुमने लगी , तब अपने बालक और कन्या को लेकर वह अवन्ति देश चली गई और वहाँ एक ब्राह्मण के घर में कार्य कर अपना निर्वाह करने लगी | वह विपत्ति से पीड़ित थी , गेहु पिसते समय वह थोड़े से गेहु चुराकर रख लेती और उसे से शुधा से पीड़ित अपने बच्चो का पालन करती | कुछ समय बाद उर्मिला का निर्धन हो गया |
उर्मिला का पुत्र बड़ा हो गया , वह अवन्ति से मिथिला आया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर शासन करने लगा | उसकी बहन श्यामला विवाह योग्य हो गई थी | वह अत्यंत रूपवती थी | अवन्ति देश के राजा धर्मराज ने उसके उत्तम रूप की चर्चा सुनकर उसे अपनी रानी बना लिया |
एक दिन धर्मराज ने अपनी प्रिया श्यामला से कहा – “ वैदेहीनंदनी ! तुम और सभी कामों को तो करना , परन्तु ये सात स्थानों जिनमे तालें बंद हैं , इनमे तुम कभी मत जाना | “ श्यामला ने ‘ बहुत अच्छा ‘ कह कर पति की बात मान ली , उसके मन में कुतुहल बना रहा |
एक दिन जब धर्मराज अपने किसी कार्य में व्यस्त थे , तब श्यामला ने एक मकान का ताला खोलकर वहां देखा कि उसकी माता उर्मिला को अति भयंकर यमदूत बांध कर तप्त तेल के कडाह में बार – बार डाल रहे हैं | लज्जित होकर श्यामला ने वह कमरा बंध कर दिया , फिर दुसरा कमरा खोला तो देखा कि वहाँ भी उसकी माता को यमदूत शिला के ऊपर रखकर पिस रहें हैं और माता चिल्ला रही हैं इसी प्रकार तीसरा कमरा खोला देखा की यमदूत उसकी माता के मस्तक में किले ठोक रहे हैं ,इसी तरह चौथे में अति भयंकर श्रवान उसका भक्षण कर रहें हैं , पांचवे में लोहे के स्न्दंश उसे पीड़ित कर रहे हैं | छठे में कोल्हू के बिच ईख के समान पेरी जा रही हैं और सातवे को खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी माता को हजारो कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदि से लथपथ हो रही हैं |
यह देख कर श्यामला ने विचार किया कि मेरी माता ने ऐसा कौन – सा पाप किया , जिससे वह इस दुर्गति को प्राप्त हुई | वह सोचकर उसने सारा वृतांत अपने पति धर्मराज को बताया |
धर्मराज बोले – प्रिये ! मैंने इसलिए कहा था की ये सात ताले कभी न खोलना , नही तो तुम्हे वहां पश्चाताप होगा | तुम्हारी माता ने सन्तान के स्नेह से ब्राह्मण के खेत से गेहु चुराये थे , क्या तुम इस बात को नही जानती जों तुम इस बात को मुझसे पूछ रही हो ? यह सब उसी कर्म का फल हैं | ब्राह्मण का धन स्नेह से भी भक्षण करे तो भो सात कुल अधोगति को प्राप्त होते हैं और चुराकर खाए तो जब तक सूर्य और चन्द्रमा और तारें हैं , तबतक नरक से उद्धार नही होता | जों गेहु इसने चुराये थे , वे ही कृमि बनकर इसका भक्षण कर रहे हैं |
श्यामला ने कहा – महाराज ! मेरी माता ने जों कुछ भी पहले किया वह सब मैं जानती हूँ फिर भी अब आप कोई ऐसा उपाय बतलाये , जिससे मेरी माता का नरक से उद्दार हो जाय | इस पर धर्मराज ने कुछ समय विचार किया और कहने लगे — प्रिये ! आज से सात जन्म पूर्व ब्राह्मणी थी | उस समय तुमने अपनी सखियों के साथ जों बुधाष्टमी का व्रत किया था , यदि उसका फल तुम संकल्प पूर्वक अपनी माता को दे दो तो इस संकट से उसके मुक्ति हो जायेगी | यह सुनते ही श्यामला सी स्नानकर अपने व्रत का पुण्य फल संकल्प पूर्वक माता के लिए दान कर दिया | व्रत के फल के प्रभाव से उसकी माता भी उसी क्षण दिव्य देह धारण कर विमान में बैठकर अपने पति सहित स्वर्ग लोक की चली गई और बुध ग्रह के समीप हो गई |यह व्रत अपनी सन्तान को अपनी माता के लिए रखना चाहिये | इस व्रत को रखने से धन , धान्य , पुत्र , पौत्र , दीर्घ आयु और एश्वर्य मिलता हैं |
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