पितृ पक्ष  श्राद्ध

Pitru Paksha , Shrad Ki Mahima , Shrad Ke Pavitra Labh

1 सितंबर- पूर्णिमा का श्राद्ध,

2 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध,

3 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध,

5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध,

6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध

7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध

8 सितंबर- षष्ठी का श्राद्ध,

9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध,

10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध,

11सितंबर- नवमी का श्राद्ध,

12 सितंबर- दशमी का श्राद्ध,

13 सितंबर- एकादशी का श्राद्ध,

14 सितंबर- द्वादशी का श्राद्ध

 15 सितंबर- त्रयोदशी का श्राद्ध,

16 सितंबर- चतुर्दशी का श्राद्ध

 17 सितंबर- अमावस का श्राद्ध

श्राद्ध शब्द का शाब्दिक अर्थ –  विश्वास और श्रद्धा से किया हुआ कार्य हैं श्राद्ध अथवा पूर्वजो , पितरो के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं श्राद्ध | हिन्दू धर्म की मान्यतानुसार सूर्य के कन्या राशी में आने पर पितृ परलोक से धरती पर अपने परिवार पुत्र , पौत्र के यहाँ आते हैं | श्राद्ध , तर्पण , पिण्ड दान ,पितरो को उर्जा व संतुष्टि प्रदान करते हैं |

श्राद्ध कर्म में उच्चारित मन्त्र , आहूतिया पितरो को संतुष्ट करने का मार्ग हैं | जिस मृत व्यक्ति के एक वर्ष तक के सभी क्रिया कर्म सम्पन्न हो जाते हैं उन्हें पितृ कहा जाता हैं | तीन पीढियों तक श्राद्ध करने की परम्परा हैं पिता , दादा , परदादा क्रम में पितृ देवो अर्थात   वसुओ , रुद्रो एवं आदित्य के समान हैं | पितर यथा वसु , रूद्र , आदित्य जो की श्राद्ध के देवता हैं श्राद्ध से संतुष्ट होकर सभी मनोकामनाये पूर्ण कर देते हैं वंश वृद्धि की आशीष देते हैं |

श्राद्ध से बढकर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं हैं और वंश वृद्धि के लिए पितरो की आराधना ही एकमात्र सरल उपाय हैं |

आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम् |

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्तुयात् पितृपूजनात् ||

तुलसी से पिंडदान किये जाने पर पितृगण दीर्घ काल तक तृप्त रहते हैं और प्रसन्न होकर विष्णु लोक में अनन्त काल तक निवास करते हैं |

परिवार में वंश वद्धि होती हैं , आयु बढती हैं |

परिवार में अन्न , धन के भण्डार भरे रहते हैं |

गृह क्लेश का नाश हो परिवार में सुख समृद्धि , एकता ,परिवार जनों के मध्य मिठास होती हैं |

महत्वपूर्ण हैं की पितरो को धन से नहीं , श्रद्धा पूर्ण भावना से प्रसन्न करना चाहिए |

|| ॐ पितृदेवाय नम: ||    || ॐ पितृ देवाय नम: ||