ऋषि पंचमी व्रत का महत्त्व  सितम्बर 2023

  Rishi Panchami Vrat Ka Mahatav

 

ऋषिपंचमी व्रत का महत्त्व

ऋषि पंचमी 20 सितम्बर  मंगलवार 2023 को गणेश चतुर्थी के दुसरे दिन भाद्रपद शुक्ला पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत बहने अपने भाई की लम्बी आयु के लिए रखती हैं | इस व्रत को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता हैं | इस व्रत में सप्तऋषियों [ कश्यप , अत्रि भारद्वाज , विश्वामित्र , गौतम , जमदग्नि , वशिष्ठ ] का पूजन किया जाता हैं | इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र [ राखी ] बाँध कर ही अन्न जल ग्रहण करती हैं | इस व्रत में चावल ही खाते हैं | रजस्वला स्त्रियों के लिए चावल खाना वर्जित होता हैं | इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाता हैं |

 

ऋषिपंचमी [भाई पंचमी ] व्रत पूजा विधि Rishi Panchami Bhai Panchami ] Vrat Puja Vidhi 2023

ऋषि पंचमी यह पूजा विधि पारम्परिक विधि हैं जो घर में दादी नानी के समय से करते आ रहे हैं | कहानिया भी पारम्परिक ही हैं | प्रात: काल स्नानादि से निर्वत हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर से चौक पूरे एवं ऐपन से सप्तऋषि  बनाकर उनकी पूजा की जाती हैं | जल का कलश रखे धुप दीप से पूजन कर सप्तऋषियों को जिमाये , इस दिन हल से बोया अनाज खाना वर्जित हैं |

 

 

 

 ऋषिपंचमी व्रत उद्यापन विधि Ris3

Rishi Panchami Vrat Udyaapan Vidhi 2023

ऋषि पंचमी इस व्रत का उद्यापन माहवारी का समय समाप्त होने के पश्चात  किया जाता हैं | इस व्रत में ऋषियों के पूजन के पश्चात ब्राह्मण भोजन करवाया जाता हैं | सात ऋषियों को सप्तऋषि मानकर दान दक्षिणा देते हैं |

 

 

 

भाई पंचमी की कहानी [ ऋषि पंचमी की कहानी ] [ 1 ]

Bhai Panchami Ki Kahani [ Rishi Panchami KI Kahani 

 

 

माँ बेटे थे | बहुत गरीब थे | भाद्रपद मास में ऋषिपंचमी का व्रत आया | बेटा माँ से बोला माँ मैं भी बहन के घर राखी बंधवाने जाऊंगा , उसकी माँ ने कहा बेटा हम गरीब हैं तू बहन के घर क्या लेकर जाएगा ? बेटे ने कहा – लकड़ी बेच कर जो भी धन मिलेगा उससे कुछ ले जाऊंगा | जब भाई बहन के घर पहुचा बहन सूत कात रही थी | बहन ने देखा भाई आया हैं पर सूत का तार बार बार टूट रहा था | बहन उसे जौड़ने में व्यस्त थी | भाई ने सोचा धनवान बहन को मेरी कोई परवाह नहीं हैं , भाई वापस जाने के लिए मुड़ा वैसे ही सूत का तार जुड़ गया | बहन ने भाई को गले लगाया भाई बहुत समय बाद आया था इसलिए ख़ुशी के मारे उसे कुछ समझ नहीं आया तो पड़ोसन के पास गई और बोली जब कोई प्यारा मेहमान आये तब क्या करना चाहिए | पड़ोसन ने मजाक में कह दिया घी में चावल बना ले और तेल का चौका लगाना | बहुत देर हो  गई  ना चावल बने और ना ही चोका सुखा |

भाई ने कहा बहन भूख लगी हैं तब बहन ने पड़ोसन वाली बात बतलाई | यह सुन भाई ने कहा बहन पानी में चावल बना , पानी में चौका लगा | तब बहन ने वैसा ही किया और भाई को प्रेम से जिमाया बाजोट पर बैठा कर तिलक कर हाथ में नारियल झिलाकर [ देकर ] राखी बाँधी | भाई जो भेट लाया था बहन को दे दी | बहन ने सुबह जल्दी उठकर चक्की में आटा पीस भाई के लिए लड्डू बना दिए | प्रात: भाई जाने लगा तब बहन नेजल्दी सुबह अंधरे में बनाये लड्डू भाई के साथ बाँध दिए और कहा भाई रास्ते में खा लेना |

भाई के जाने के बाद बच्चे उठे बहन ने अपने बच्चो को लड्डू दिए तो देख लड्डू में साँप के टुकड़े मिले | बहन बहुत देर दौडती रही तो उसे पेड़ के निचे बैठा भाई दिखा भाई ने कहा बहन मैं तेरे यहा से कुछ नहीं लाया | तब बहन ने कहा भाई मैं तेरी जान बचाने आई हूँ | जो लड्डू मैंने तुझे दिए उसमें साँप पिस गया | इसलिए मैं दौड़ी दौड़ी आई | बहन को प्यास लगी दूर कहीं आवाज आ रही थी बहन बोली भाई मैं पानी पीकर आती हूँ तू आराम कर | बहन पानी पीने गई तो उसने देखा एक बुढिया माँ [ बेमाता ] कुछ बना रही और बिगाड़ रही तो बहन ने पूछा हे माता आप क्या कर रही हैं ?

 

 

 

तो बुढिया माँ ने कहा एक गाव में एक लड़का हैं उसका विवाह होगा तब वह मर जायेगा | तब बहन बोली वह तो मेरा भाई हैं उसको बचाने का कोई उपाय बतलाओ | तब बुढिया माँ ने कहा यदि उसकी बहन उसकी शादी तक सभी कामउलटे करे  पहले स्वयं के करवाए और भाई को अपशब्द [ गालिया बके ] कहे तो भाई की जान बच सकती हैं |

बहन वापस आई तो जिद्द करने लगी की मैं तो भाई तेरे साथ घर चलुंगी और सत्यानाशे नाशपीटे कहकर लड़ने लगी भाई ने सोचा बहन को कुछ हो गया और बहन को अपने साथ ले आया |

बहन भाई घर आये तो भाई के लिए विवाह का रिश्ता आया | विवाह होने लगा बारात जाने लगी तो उसने कहा बारात में मैं भी जाउंगी सब ने समझाया औरते बारात मैं नही जाती पर वह नहीं मानी तो एक बुजुर्ग समझदार व्यक्ति ने कहा ये जिद्द कर रही हैं तो ले चलो | पहले उसकी बस सजाई फिर भाई को बस में  बिठाया | आगे जाकर एक पेड़ के नीचे बारात विश्राम करने लगी तो उसने कहा इस पेड़ के नीचे तो मेरी बस रुकेगी | जैसे ही बस वहां से हटी पेड़ गिर गया सब ने कहा बहन ने भाई की जान बचा ली | बारात आगे गई तौरण  होने लगा बहन बोली इस दरवाजे पर मैं तोरण  मारूंगी | सब ने मना किया पर वह नहीं मानी नाशपिटे , सत्यानाशे को तोरन नहीं मारने दूंगी | तब उसकी बात मान ली और जैसे ही उस दरवाजे से बारात हटी दरवाजा गिर गया सब ने कहा इसने तो भाई की जान बचा ली |

फेरे होने लगे तो बहन बोली इस मंडप में फेरे लुंगी | जैसे ही मंडप से भाई भाभी हटे मंडप गिर गया  और सबने कहा इसने तो भाई की जान बचा ली |ख़ुशी ख़ुशी फेरे सम्पन्न हुए |

 

 

 

बारात वापस घर आ गई और बहन थक कर सो गई | सब मेहमान जाने लगे बहन उठी और बोली मैं अपना घर बच्चे ऐसे ही छोडकर आई हूँ और सारी बात बताई की मैंने यह सब भाई की जान बचाने के लिए किया | बहन को गाजे बाजे से विदा किया |

हे भगवान जिस तरह बहन ने भाई की जान बचाई वैसे ही सब बहनों के भाइयो को दीर्घ आयु प्रदान करना |

 

 

 

ऋषिपंचमी की कहानी [  भाई पंचमी } की कहानी

Rishi Panchami Ki Kahani [ Bhai Panchami KI Kahani ]

[ 2 ]

एक साहूकार साहुकारनी थे | साहुकारनी रजस्वला होकर रसोई के सब काम करती थी | कुछ समय बाद उसके एक पुत्र हुआ | पुत्र का विवाह हो गया | साहूकार ने अपने घर एक ऋषि महाराज को भोजन पर बुलाया | ऋषि महाराज ने कहा मैं बारह वर्ष में एक बार खाना खाता हूँ | पर साहूकार ने महाराज को मना लिया | साहूकार ने पत्नी से कहा आज ऋषि महाराज भोजन पर आयेंगे | उस समय स्त्री रजस्वला थी उसने भोजन बनाया और ऋषि को भोजन परोसते ही भोजन कीड़ो में बदल गया यह देख ऋषि ने साहूकार साहुकारनी को श्राप दे दिया , की तू अगले जन्म में कुतिया बनेगी और तू बैल बनेगा | साहूकार ने ऋषि के पांव पकड़ बहुत विनती की तब ऋषि ने कहा तेरे घर में ऐसी कोई वस्तु हैं क्या जिस को तेरी पत्नी की  नजर नहीं पड़ी , नहीं छुआ | तब साहूकार ने छिके पर दही पड़ा था ऋषि को पिलाया |

ऋषि हिमालय पर तपस्या के लिए चले गये | साहूकार साहुकरनी की मृत्यु हो गई श्राप वश साहूकार बैल बन गया और साहुकारनी कुतिया बन गई | दोनों अपने बेटे के घर पर रहने लगे | साहूकार का बेटा बैल से बहुत काम लेता खेत जोतता , खेत की सिचाई करता | कुतिया घर की चौकीदारी करती |

एक वर्ष बीत गया उस लडके के पिता का श्राद्ध आया | श्राद्ध के दिन अनेक पकवान बनाये | खीर भी बनाई थी | एक उडती हुई चील के मुहं का सर्प उस खीर में गिर गया | यह वहाँ बैठी कुतिया ने देख लिया | कुतिया ने सोचा यदि इस खीर को लोग खायेगे तो मर जायेंगे | जब उसकी बहूँ देख रही थी कुतिया ने खीर में मुंह डाल दिया | क्रोध में आकर बेटे बहूँ ने बहुत मारा |

 

 

 

जब रात हुई तो कुतिया बैल के पास जाकर रोने लगी बोली आज तुम्हारा श्राद्ध था बहुत पकवान मिले होंगे तब बैल ने कहा आज खेत पर बहुत काम था और खाना भी नही मिला कुतिया ने भी अपनी आप बीती बता दी और कहा आज बेटे बहूँ ने बहुत मारा | यह सारी बाते बेटे ने सुन ली | बेटे ने बहुत बड़े बड़े ऋषि मुनियों को बुलाया ऋषि मुनियों को सारी बात बताई तब ऋषि मुनियों ने कहा “ तुम्हारे यहाँ जो कुतिया हैं वह तुम्हारी माँ हैं और बैल रूप में तुम्हारे पिता हैं | तब लडके ने माता पिता को इस योनी से किस प्रकार मुक्ति मिलेगी इसका उपाय पूछा तब ऋषियों ने कहा ! ऋषि पंचमी को ऋषियों का पूजन कर उस ब्राह्मण भोज का पूण्य इन्हें मिले तथा ऋषिगण अपना आशीर्वाद दे | व्रत के पुण्य से तुम्हारे माता पिता इस योनी से मुक्त होकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करेंगे | उसने ऐसा ही किया और स्वर्ग से विमान आया और उस लडके के माता पिता को मोक्ष प्राप्त हुआ |

 

 

 

 

हे भगवान ! “ जिस प्रकार उनको मोक्ष दिया वैसे सबको देना सबकी मन की मुराद पूरी करना | कहानी कहता न , कहानी सुनता न , म्हारा सारा परिवार न “

 

 

ससुर और जवाई जी की कहानी

ऋषिपंचमी एक गांव में एक साहु कार और एक शहुकारणी रहते थे उनके एक बेटी थी उन्होंने अपनी बेटी की शादी कर दी उनके कोई पुत्र नहीं था उन्होंने यह शर्त रखी की जिससे इसकी शादी होगी वह घर जमाई रखेंगे शादी होने के बाद जमाई घर जमाई रहने लगा दोनों ससुर जमाई रोज खेत पर जाते थे और हल चलाते थे सासू मां रोज उनके साथ खाना भेजती थी एक दिन सासू मां कहीं बाहर चली गई और बेटी को बोल गई कि खाना भेज देना एक टिफिन में छाछ राबड़ी और एक टिफिन में पंच पकवान भेजती थी बेटी ने सोचा की जमाई के पंच पकवान भेजने होंगे और पिताजी के छाछ राबड़ी भेज दे खेत पर जाने के बाद जब ससुर ने टिफिन देखा देखा तो वह गुस्से में लाल पीला हो गया उधर जमाई पंच पकवान खाकर पेड़ के नीचे आराम से सो गया ससुर को गुस्सा आया और सोते हुए जवाई पर हल चला दिया और ससुर घर चला गया जब बेटी ने देखा कि उसका पति अभी तक घर नहीं आया तो वह खेत पर आ गई और उसे अपने मरे हुए पति की मुंड की मिली तो वह वही एक पेड़ के नीचे बैठ गई और लकेश्वर भगवान से प्रार्थना करने लगे कुछ समय बाद एक ऋषि महात्मा उधर से गुजरे और उन्होंने कहा ऋषि पंचमी का व्रत रखो और अगली ऋषि भगवान यहां आएंगे वही तेरे पति को जीवित कर सकते हैं वह वहीं पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या करने लगी बहुत दिनों बाद ऋषि पंचमी आई और ऋषि भगवान वहां आए और अपने कमंडल में से जल निकाल कर जल के कुछ छीटा लगाया और उसका पति उठकर जीवित हो गया इसलिए कहते हैं कि आज के दिन हल् का बोया हुआ नहीं खाना चाहिए और छत को जमाई ससुराल में नहीं रहना चाहिए है ऋषि भगवान उसके पति को बचाया जैसे सबकी रक्षा करना कहानी कहने वाले और सुनने वाले के सब की रक्षा करना |

 

 

 

इस कहानी के बाद गणेशजी की कहानी सुननी चाहिए पीपल पथवारी की कहानी सुनना चाहिए और लपसी तपसी की कहानी सुनना चाहिए | 

 

 

 

भाईपांचे व्रत की कहानी 

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श्री गणेश चतुर्थी 2019 शुभ मुहूर्त , विदिक विधि पूजन