चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | पूजन विधि 2022
प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों पक्षों में चतुर्थी व्रत किया जाता हैं | प्रत्यक मास में दो चतुर्थी तिथि आती हैं दोनों तिथियों में भगवान गणेश का अलग अलग रूपों में पूजन किया जाता हैं |
चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के विकट नाम रूप का पूजन किया जाता हैं ये चतुर्दशी सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाली हैं | संकटों को हरने के कारण ही चतुर्दशी तिथि को संकट चतुर्थी भी कहते हैं |
चैत्र मास संकट चतुर्थी व्रत पूजन सामग्री :-
गणेशजी जी की प्रतिमा
धुप
दीप
नैवेध्य
सुघन्धित पुष्प
पुष्पमाला
लाल वस्त्र
नारियल
अक्षत [ चावल ]
कलश
चन्दन
इत्र सुघन्धित
पाटा या चौकी
कपूर
दूर्वा
पंचमेवा
पान , सुपारी , लौंग ,
हवन सामग्री [ बिजोरी नीबू ]
गुड , पतासा , गंगा जल
चैत्र मास संकट चतुर्थी पूजन विधि :-
प्रात काल स्नानादि से निवर्त होकर स्वच्छ वस्त्र अथवा नवीन लाल या हरे रंग के वस्त्र धारण करे |
श्री संकट नाशक गणेश जी का विधि पूर्वक धुप , दीप , न्वैध्य अक्षत , पुष्प , इत्र , कपूर से पूजन करे |
मन , कर्म ,वचन को शुद्ध कर दूर्वा हाथ में लेकर विधि पूर्वक मंत्रोचार करते हुए भगवान गणेश का ध्यान करे |
कलश में साबुत धनिया , हल्दी , जल , गंगा जल मिलाकर कलश भरे |
कलश का मुह लाल कपड से बाँध दे |
गणेश जी का विधि पूर्वक सभी सामग्री से विधि पूर्वक पूजन करे |
वस्त्र , न्वैध्य अर्पित करे | धुप दीप से आरती करे | न्वैध्य समर्पित करे |
परिवार सहित कथा सुने |
पूजन सामग्री ब्राह्मण को दान करे |
आप स्वयं भी पंचामृत का प्रसाद ग्रहण करे |
विकट गणेश संकट चतुर्थी व्रत कथा
Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi –
एक समय माता पार्वती तथा श्री गणेश जी महाराज विराजमान थे | तब माँ पार्वती ने गणेश चतुर्थी व्रत का महात्म्य गणेशजी से पूछा ! हे पुत्र ! चैत्र कृष्ण पक्ष में तुम्हारे विकट चतुर्थी को तुम्हारी पूजा कैसे करनी चाहिए ? सभी बारह महीनों की चतुर्थी तिथि के तुम अधिष्ठ्दाता हो | कलिकाल में इस व्रत की क्या महिमा हैं यह मुझसे कहो इसका क्या विधान हैं |
तब गणेश जी ने कहा कि हे सभी के मन की बात को जानने वाली माता आप अन्तर्यामी हैं आप सर्वज्ञता हैं परन्तु मैं आपके आदेश से इस व्रत की महिमा को बतलाता हूँ | चैत्र कृष्ण चतुर्थी के दिन ‘वीकट’ नामक गणेश की पूजा करनी चाहिए। दिन भर निर्जल व्रत रखकर रात्रि में षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मण भोजन के अनन्तर स्वयं व्रती को इस दिन पंचगव्य (गौ का गोबर, मूत्र, दूध, दही, घी) पान करके रहना चाहिए। यह व्रत संकट नाशक है। इस दिन शुद्ध घी के साथ बिजौरे, निम्बू का हवन करने से बाँझ स्त्रियां भी पुत्रवती होती हैं। हे माते ! इस व्रत की महिमा बहुत विचित्र है , मैं उसे कह रहा हूँ। इस चतुर्थी तिथि के दिन मेरे नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य को सिद्धि मिलती है।