तीर्थराज प्रयाग की महिमा

Tirathraj prayag ki mahima  

प्रयाग , काशी  गया हिन्दू धर्म में महत्त्वपूर्ण तीर्थ माने जाते हैं | ये तीनो तीर्थो को तीर्थस्थली के नाम से जाना जाता हैं |यह शहर इलाहाबाद है। यह प्रयाग है, तीर्थराज है। यह दो पवित्र नदियों, गंगा और यमुना के संगम का नगर है। जो व्यक्ति सित तथा असित अर्थात गंगा और यमुना के संगम पर स्नान करता हैं वह स्वर्ग प्राप्त करता हैं और जो संगम पर अपनी देह का त्याग करता हैं उसे मोक्ष की प्राप्त होता हैं |

प्रयागराज का शाब्दिक अर्थ  – “नदियों का संगम”  है , गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है।इसका प्राचीन नाम प्रयाग  है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्र नदी गंगा यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित है। इसके प्रथम  ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना के पश्चात प्रथम  यज्ञ सम्पन्न किया था।

  प्रयागराज में प्रत्येक बारह वर्ष में  कुम्भमेला लगता है। यहाँ हर छह वर्षों में अर्द्धकुम्भ और हर बारह वर्षमें  कुम्भ्मेले  का आयोजनकिया जाता हैं  | जिसमें सम्पूर्ण विश्व से  विभिन्न क्षेत्रो से करोड़ों भक्तगण  पतितपावनी माँ  , गंगा , यमुना ,सरस्वती के पावन  त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं।

इसलिए इस नगरी  को विभिन्न नामों से जाना जाता हैं | संगमनगरी, कुंभनगरी, तंबूनगरी आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पवित्र  नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्रीहरि विष्णु  स्वयं हैं और वे यहाँ अपने वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें द्वादश माधव  के नाम से जाना जाता है। 

सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति । 

ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ॥

जिनके जल श्वेत और श्याम वर्ण के हैं, जहां गंगा और यमुना मिलती है, उस प्रयाग संगम में स्नान करने वालों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। और धीर पुरूष वहां शरीर का त्याग करते हैं, उन्हें अमृत्व अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।

दशतीर्थ शस्त्राणि तिर्स्त्र: कोट्यस्तथा परा: ||

समागच्छन्ति माध्याँ तु प्रयागे भरतषभ |

माघमासं प्रयागे तु नियत: संशितव्रताः ||

स्त्रात्वा तु भरत श्रेष्ठ निर्मल: मापनुयात |

महाभारत में अनेक स्थलों पर भी प्रयागराज के महात्म्य का वर्णन हुआ हैं |

पदम् पुराण में – स तीर्थ राजो जयति प्रयाग:’

मत्स्य और स्कन्ध पुराण में भी इसके प्रसंग मिलते हैं |

प्रयाग राज को तीर्थ राज कहने के पीछे की कथा – एक बार ब्रह्माजी ने यज्ञ किया जिसमे ब्रह्माजी ने प्रयाग को मध्यवेदी , कुरुशेत्र को उत्तर वेदी , गया को पूर्व वेदी बनाया |

प्रयागराज में गंगा यमुना सरस्वती – तीनों धाराए मिलकर दो धाराओ में परिणत हो जाती हैं इसलिए इसका नाम त्रिवेणी पड़ा |

प्रयागराज में भगवान विष्णु सदैव अपनी योग मूर्ति में विराजित रहते हैं ॐ भगवते वासुदेवाय नम: ‘

प्रयाज राज में स्नान ध्यान करने से प्राणी इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त करता  हैं | दशतीर्थ शस्त्राणि तिर्स्त्र: कोट्यस्तथा परा: ||

समागच्छन्ति माध्याँ तु प्रयागे भरतवर्षभ  |

माघमासं प्रयागे तु नियत: संशितव्रताः ||

स्त्रात्वा तु भरत श्रेष्ठ निर्मल: मापनुयात |

जो व्यक्ति एक मास तक ब्रह्मचार्य पूर्वक प्रयाजराज में निवास कर स्नान ,ध्यान ,पितृ पूजन , तर्पण , कर्ता हैं तो उसकी समस्त मनोकामनाए पूर्ण हो जाती हैं | वह उन्नतिपथ की और अग्रसर होता हैं | तीर्थराज प्रयाग की सदा ही जय हो |

भक्तो की मनोकामनाए पूर्ण करने वाले तीर्थराज प्रयाग की सदा ही जय हो | जिनके कंठ भाग में तिर्थावली हैं , पाद मूल में दानावली शोभित हैं , व्रतावली दक्षिण भुजा में स्थित हैं ऐसे तीर्थराज प्रयाग की सदा ही जय हो | जो शरणागत को मोक्ष प्रदान करने वाले तीर्थ राज प्रयाग की जय हो | पापोंका , दुखो का , निराशा का , कष्टों का , चिंता का , शोक का हरण कर प्राणी के मन में उत्साह , बल , सकारात्मकता का संचार करने वाले तीर्थराज प्रयाग की सदैव जय हो जय हो |

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