पुण्यकारी राम चरित्र मानस का सारांश

punykaari ramaayan katha saar

पुण्यकारी रामायण कथा अब मैंपुण्यकारी रामायण कथा रामायण का वर्णन करता हूं जिसके सुनने मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है यह पुण्यकारी , कल्याणकारी ,आदर्श कथा हैं

भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई ब्रह्मा जी से मरीचि ऋषि मरीचि ऋषि से कश्यप ऋषि कश्यप ऋषि से सूर्य और सूर्य से  वैवेस्त मनु हुए मनु से इक्ष्वाकु हुए इन्हीं इक्ष्वाकु के वंश मैं राजा रघु का जन्म हुआ राजा रघु के पुत्र अज हुएराजा अज के पुत्र दशरथ हुए वे महा प्रतापी राजा हुए उनके महान बल और पराक्रम वाले सदाचारी चार पुत्र हुए कौशल्या से राम कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ |

माता पिता के परम भक्त श्री राम ने महा मुनि विश्वामित्र से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त कर ताड़का नामक राक्षसी तथा कई अन्य राक्षसों का विनाश किया

विश्वामित्र के यज्ञ में बलशाली राम के द्वारा ही सुबह नामक राक्षस को मारा गया  प्रभु श्री राम राजा जनक राज के यज्ञ स्थल में पहुंचकर उन्होंने धनुष तोड़कर जानकी से पाणिग्रहण  ग्रहण संस्कार किया | वीर लक्ष्मण ने उर्मिला भरत ने कुशध्वज की पुत्री मांडवी तथा शत्रुघ्न ने कीर्ति मती से विवाह किया यह महाराज कुश  ध्वज की ही पुत्री थी

विवाह के बाद अयोध्या में जाकर चारों भाई पिता के साथ रहने लगे भरत और शत्रुघ्न को उनके मामा लेने आ गये पिता कई आज्ञा से भरत और शत्रुघ्न अपने मामा युद्धाजित के यहां चले गये

उन दोनों के ननिहाल जाने के बाद राजा महाराज दशरथ ने राम को राज्य देने  तथा राम के राजतिलक के बारे में विचार कर  तैयारियां शुरू करी

उसी समय को उचित जानकर कैकयी ने राम को 14 वर्ष वन में रहने का दशरथ जी से वरदान मांग लिया राजा दशरथ के वचन में बंधे होने के कारण उन्होंने कैकयी कई इच्छा का समान किया |

पिता की आज्ञा से लक्ष्मण जी और सीता को साथ लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पिता के वचन की रक्षा के लिए राज्य का त्याग कर  श्रृंगवेरपुर चले गए

वहां से वे रथ का परित्याग कर वे सभी प्रयाग गए और वहां से चित्रकूट में जाकर रहने लगे

पुत्र राम के वियोग से राजा दशरथ ने शरीर का परित्याग कर स्वर्ग पधार गए

मामा के घर से आकर भरत ने पिता का अंतिम संस्कार किया उसके बाद भरत जी दल बल के साथ भगवान श्री राम के पास पहुंचे उन्होंने विनम्रता पूर्वक अपने जेष्ठ भ्राता श्री राम से कहा आप अयोध्या लौट चलें और वहां का वहां का राज्य भार संभालें आपके बिना सब कुछ सुना सूना हैं

राम ने राज्य के प्रति अनिच्छा प्रकट कर दी और पिता को आज्ञा को सर्वोपरि मानकर वन में ही रहने की इच्छा जताई और भरत जी को अपनी चरण पादुका देकर राज्य की रक्षा करने के लिए वापस अयोध्या भेज दिया

भरत जी ने अपने भाई की आज्ञा मानकर वहां से लौटकर राम के प्रतिनिधि रूप में राज कार्य की देखभाल करने लगे तपस्वी भरत ने नंदीग्राम में ही रहकर राज्य का संचालन किया वे अयोध्या नहीं गए

राम जी चित्रकूट छोड़कर अत्रि मुनि के आश्रम में चले आए उसके बाद वहां उन्होंने सुतीक्ष्ण और अगस्त्य मुनि के आश्रम में जाकर उन्हें प्रणाम किया और उसके बाद वह दंडकारण्य वन में चले गए

वहां उन सभी का भक्षण करने के लिए शूर्पणखा नामक राक्षसी आ गई अतः रामचंद्र जी ने नाक कान कटवा कर उस राक्षसी को वहां से भगा दिया उसने जाकर खर दूषण तथा त्रिसरा नाम के राक्षसों को युद्ध के लिए भेजा 14 हजार राक्षसों की सेना लेकर उन लोगों ने राम पर आक्रमण कर दिया राम ने अपने बाणों से उन राक्षसों को यमपुर भेज दिया

राक्षसी शूर्पणखा से प्रेरित रावण सीता का हरण करने के लिए वहां त्रिदंडी सन्यासी का वेश धारण कर मृग रूप धारी मारीच को साथ में लेकर वहां पहुंचे

स्वर्ण मृग को देखकर सीता ने मन ही मन उसको लेने की इच्छा प्रकट कीप्रभु श्री राम ने हिरन का पीछा किया मारीच को मार डाला उसने मरते समय हे सीते हे !  हे लक्ष्मण ! ऐसा कहा

इसके बाद सीता जी का ध्यान रखने वाले क्ष्मण जी भी सीता जी के कहने पर प्रभु श्री राम के पास चले गए

लक्ष्मण जी को अपने पास देखकर रामजी ने कहा यह निश्चित ही  राक्षसी माया है

सीता का हरण अवश्य ही हो गया होगा इसी बीच बली रावण अवसर पाकर अंक में सीता को लेकर जटायु को क्षत-विक्षत कर लंका चला गया जटायु ने अपने प्राण रक्षा कई चिंता नही करते हुए रावण के साथ युद्ध किया तथाउसने सीता जी का संदेश प्रभु राम को दिया  

लंका पहुंचकर रावण ने राक्षसों की निगरानी में सीता जी को अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष की छाया में ठहरा दिया

रामने आकर सुनी कुटिया देखी वह अत्यंत दुखी हो उठे उसके बाद वे भाई लक्ष्मण को लेकरसीता जी की खोज में निकल पड़े मार्ग में उन्होंने जटायु का अंतिम संस्कार किया और जटायु के कहने से वे दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े उस दिशा में आगे बढ़ने पर सुग्रीव के साथ राम की मित्रता हुई उन्होंने अपने तीक्ष्ण बाण से सात ताल वृक्षों का भेदन कर  बाली को मारकर  किश्क्न्धा में रहने वाले वानरों के राजा के रूप में सुग्रीव का अभिषेक किया

और जाकर ऋषि मुख  पर्वत पर निवास करने लगे

राजा सुग्रीव ने परबत्ता का शरीर वाले उत्साह से भरे हुए वानरों को सीता माता की खोज में सभी दिशाओं में भेजा वह सभी वानर जो पूरब पश्चिम उत्तर की दिशाओं में गए खाली हाथ वापस लौट आए

किंतु जो दक्षिण दिशा में गए थे उन्होंने वन पर्वत दीप तथा नदियों के तटों को खोज डाला पर जानकी माता का कुछ भी पता नहीं चल सका अंत में हताश और निराश हो गये  संपाती के वचन से सीता जी की जानकारी प्राप्त करके कपि श्रेष्ठ हनुमान जी ने सत योजन 4 सौ कोस विस्तृत समुंद्र को लांग कर लंका में अशोक वाटिका के अंदर रह रहे सीता जी का दर्शन किया जिनका तिरस्कार राक्षसिया और रावण स्वयं करता था इन सब के द्वारा बराबर यह कहा जा रहा था कि तुम रावण की पत्नी बन जाओ किंतु वे हृदय में सदैव राम का ही चिंतन किया करती थी

हनुमान जी ने मां सीता की ऐसी दशा देखकर सीता जी को कौशल्या नंदन राम के द्वारा दी गई अंगूठी देख कर अपना परिचय देते हुए कहा कि हे माते में श्री राम का दूत हूं आप अब दुख ना करें आप मुझे कोई अपना चिन्ह दें जिससे भगवान श्री राम को मैं दे सकू | हनुमान जी का यह वचन सुनकर मां सीता ने अपनी चूड़ामणि उतारकर हनुमान जी को दे दिया और कहा कि हे कपिराज राम जितना ही शीघ्र हो सके उतना ही शीघ्र मुझको यहां से ले चले ऐसा आप उनसे कहिएगा हनुमान जी ने कहा कि मात्र ऐसा ही होगा उन्होंने कहा माँ भूख लगी हैं तब वे फल की तलाश में पेड़ गिराने लगे  वे उस दिव्य अशोक वाटिका को विध्वंस करने लगे उसे भी नष्ट कर उन्होंने रावण के पुत्र अक्षय तथा अन्य राक्षसों को मार डाला और स्वयं मेघनाथ के पास में बंदी भी बन गए

रावण के समक्ष हनुमान जी ने कहा कि है रावण ! मैं  श्री राम का दूत हनुमान हूं आप प्रभु श्री राम को मां सीता लौटा दे यह सुनकर रावण क्रोधित हो उठा उसने उनकी पूंछ में आग लगवा दी

महाबली हनुमान जी ने उस जलती हुई पूछते लंका को जला डाला और भक्त विभिष्ण के भवन को सुरक्षित रखा तथा वे प्रभु श्री राम के पास लौट आए और बताया कि मैंने मां सीता को देखा और उनसे मिलने का सोभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है तथा उसके उपरांत हनुमान जी ने सीता जी द्वारा दिया गया चूड़ामणि प्रभु श्री राम को दे दिया इसके बाद सुग्रीव हनुमान अंगद का लक्ष्मण के साथ श्री राम लंकापुरी में जा पहुंचे |

लंकापति राजा रावण का भाई विभीषण भी प्रभु श्री राम की शरण में आ गए और श्री राम जी ने विभीषण की मदद से लंकापति रावण के बारे में जानकारी प्राप्त की प्रभु श्रीराम ने नल और नील के द्वारा सेतु का निर्माण कराकर समुद्र को पार किया सुबह नामक पर्वत पर उपस्थित होकर उन्होंने लंकापुरी को देखा अनिल अंगद तथा सम्पूर्ण वानर सेना के साथ मिलकर लंकापुरी में युद्ध प्रारंभ कर दिया

विशाल शरीर वाले पहाड़ जैसे राक्षसों को अपनी वानर सेना के साथ प्रभु श्री राम ने मार गिराया तथा प्रभु श्री राम ने उन बीस भुजाओं वाले रावण को भी धराशाई कर दिया विभीषण को लंका के राज पद पर अभिषेक कर दिया |

उसके बाद मातासीता जी ने अग्नि में प्रविष्ट होकर अपने शुद्धता का प्रमाण दिया उसके पश्चात सीता जी के साथ लक्ष्मण सहित वानरों से युक्त पुष्पक विमान में बैठकर प्रभु श्री राम अपनी नगरी अयोध्या लौट |  आए वहां पर राज्य सिंहासन प्राप्त कर उन्होंने प्रजा का पुत्र व्रत पालन करते हुए राज्य करने लगे  10 अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करके राम ने गया तीर्थ में पितरों का विधिवत पूजन पिंडदान तथा ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के दान करके लव और कुश को राज्य सिंहासन सौंप दिया |

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