अशून्य शयन व्रत का महत्त्व , व्रत विधि | Ashunya shayan mahattv Vrat Vidhi

अशून्य शयन व्रत का महत्त्व , व्रत विधि | Ashunya shayan mahattv  Vrat Vidhi

अशून्य शयन व्रत का महत्त्व   

अशून्य शयन व्रत श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि  को  अशून्य शयन व्रत किया जाता हैं |  भाद्रपद कृष्ण दिव्तिया तिथि 17 अगस्त शनिवार को हैं | विष्णुधर्मोत्तर , मत्स्य पुराण , पद्मपुराण , विष्णुपुराण आदि में अशून्य शयन व्रत का उल्लेख मिलता है।

 चातुर्मास में  श्री हरि योग निद्रा में चले जाते हैं | श्रीहरि विष्णु की पूजा अर्चना कर अशून्य शयन व्रत किया जाता हैं | इस व्रत को करने से स्त्री वैधव्य एवं पुरुष विधुर होने के पाप से मुक्त हो जाता है | यह व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला  है तथा सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर अंत में श्री हरिके चरणों में स्थान प्राप्त होता हैं |   चातुर्मास के चार महीनों आषाढ़ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक  हर माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को यह व्रत किया जाता है | इस व्रत का अनुष्ठान श्रावण मास के कृष्णपक्ष की द्वितीया से शुरू होकर कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वितीया तक करने का विधान है | चातुर्मास के चार महीनों में शेषनाग की शैयापर श्रीहरि शयन करते हैं | इसीलिए इस व्रत को अशून्य शयन व्रत कहते हैं |

जिस प्रकार भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी का साथ अनादिकाल से बना हुआ है |  उसी प्रकार सात जन्मो के बंधन में बंधे पति पत्नी का साथ मिलता हैं | अशून्य शयन व्रत  से आशय है, स्त्री का शयन पति से तथा पति का शयन पत्नी से शून्य नहीं होता | दोनों का ही साथ जीवनपर्यंत बना रहता है |  जिस प्रकार भगवान विष्णु के साथ माँ लक्ष्मी का साथ अनादिकाल से बना हुआ है | दोनों में कभी वियोग नहीं होता |

 अशून्य शयन व्रत की विधि

भाद्रपद कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि के दिन लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान  मूर्ति की मूर्ति को विशिष्ट शय्या पर स्थापित कर उनका पूजन करना चाहिए |

 इस दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्य कर्मों से  निर्वत होकर संकल्प ले |

 शेष शय्या पर स्थित लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए |

लड्डू और केले का भोग लगाये |

 इस दिन सम्पूर्ण दिवस मौन धारण करे |

 संध्याकाल में दोबारा स्नान कर भगवान का शयनोत्सव मनाए मंगल गीत गाये |

नृत्य कर श्री हरी को रिझाये |

चंद्रोदय होने पर ताम्र पात्र में जल, फल, पुष्प और गंधाक्षत तथा ऋतु फल  लेकर अर्घ्य दें  |

 भगवान श्री हरि एवं श्रीलक्ष्मी जी को साष्टांग प्रणाम करे |

अगले दिन किसी ब्राह्मण भोजन करवा कर मीठे ऋतु फल , अन्न , वस्त्र  दक्षिणा देकर उसे प्रेम पूर्वंक विदा करे |

इस दिन व्रती को चाहिए की माता लक्ष्मी एवं श्रीहरि की स्तुति करे |

मन्त्र :-

लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।

शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।

ॐ विष्णुदेवाय नम;

ॐ महालक्ष्म्ये  नम:

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