स्कन्दषष्टि व्रत कथा , पूजन विधि महत्त्व 2022 | Skanda Shashti Vrat Katha , pujan Vidhi 2021

स्कन्दषष्टि व्रत कथा , पूजन विधि महत्त्व 2021  

Skanda Shashti Vrat Katha , pujan Vidhi 2021 

स्कन्द षष्टि व्रत – यह व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की षष्टि तिथि को किया जाता हैं |यह व्रत सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करने वाला व्रत हैं | इस व्रत को सन्तान षष्टि के नाम से भी जाना जाता हैं | कुछ लोग आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की षष्टि तिथि को भी स्कन्द षष्टि मानते हैं | इस दिन भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाती हैं | भगवान स्कन्द शक्ति के अधिदेव हैं देवताओ के सेनापति हैं मयूर पर सवार होने के कारण इन्हें ‘ मरूगन ‘ नाम से भी जाना जाता हैं |

स्कन्द षष्टि व्रत की विधि

स्नानादि से निर्वत होकर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा की स्थापना करे |

घी , दूध , दही ,जल ,पुष्पों से भगवान कार्तिकेय को अर्ध्य प्रदान करे |

अखण्ड दीपक जलाये |

भूमि पर शयन करना चाहिए |

इस व्रत में फलाहार करे |

ब्रह्मचर्यं व्रत का पालन करे |

इस व्रत को श्रद्धा भक्ति से विधिपूर्वक करने से आयु , आरोग्य , सन्तान , सुख शांति और मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं |

 स्कन्द षष्टि व्रत कथा

कार्तिकेय की जन्म कथा पुराणों के अनुसार जब दैत्यों का अत्याचार चरों और फैल गया और देवताओं को पराजय मिली जिस के कारण देवता ब्रह्माजी के पास गये और करुण विलाप किया और बोले हे देव ! हमें इस  तारकासुर रूपी संकट से बचाइए | तब ब्रह्माजी ने कहा – तारकासुर का वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही सम्भव हैं परन्तु सती के अंत के पश्चात देवादिदेव शिव गहन ध्यान में लीन हैं |

ब्रह्माजी सभी देवताओ के साथ भगवान शिव के पास जाते हैं तब भगवान शिव पार्वती के प्रति अपने प्रेम की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शुभ घड़ी , शुभ लग्न में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता हैं | तत्पश्चात कार्तिकेय का जन्म होता हैं कार्तिकेय तारकासुर का वध कर देवताओ को उनका स्थान प्रदान करते हैं |पुराणों के अनुसार षष्टि तिथि को भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था | इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्त्व हैं |  

 

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