धर्मराज जी की कहानी
धर्मराज जी की कहानी Dharamraj Ji Ki Kahani
एक ब्राह्मणी मरकर धर्मराज जी भगवान के घर गई | वहाँ जाकर बोली , “ मुझे धर्मराज जी के मन्दिर का रास्ता बता दो |” स्वर्ग से एक दूत आया और बोला , ब्राह्मणी आपको क्या चाहिए | वो बोली मुझे धर्मराज मन्दिर का रास्ता बता दो | आगे – आगे दूत और पीछे ब्राह्मणी मन्दिर तक गये , ब्राह्मणी बहुत धार्मिक महिला थी उसने बहुत दान – पुण्य कर रखा था उसे विश्वास था की उसके लिए धर्मराजजी के मन्दिर का रास्ता अवश्य खुल जायेगा | ब्राह्मणी ने वहाँ जाकर देखा वहाँ बड़ा सा मन्दिर , सोने का सिंहासन , हीरे मोती से जडित छतरी थी |
धर्मराजजी न्याय सभा में बठे साक्षात् इन्द्र के समान सौभा पा रहे थे और न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे |यमराजजी सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे | ब्राह्मणी ने जाकर प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं | धर्मराज जी ने चित्रगुप्त से कहा लेखा – जोखा सुनाओ | चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया , सुनकर धर्मराज जी ने कहा तुमने सब धर्म किये पर धर्मराज जी की कहानी नहीं सुनी , वैकुण्ठ में कैसे जायेगी |” ब्राह्मणी बोली – ‘ धर्मराज जी की कहानी के क्या नियम हैं ‘ धर्मराज जी बोले – “ कोई एक साल , कोई छ: महीने , कोई सात दिन ही सुने पर धर्मराज जी की कहानी अवश्य सुने |” फिर उसका उद्यापन कर दे | उद्यापन में काठी , छतरी , चप्पल , बाल्टी रस्सी , टोकरी , टोर्च ,साड़ी ब्लाउज का बेस , लोटे में शक्कर भरकर , पांच बर्तन , छ: मोती , छ: मूंगा , यमराज जी की लोहे की मूर्ति , धर्मराज जी की सोने की मूर्ति , चांदी का चाँद , सोने का सूरज , चांदी का साठिया ब्राह्मण को दान करे | प्रतिदिन चावल का साठिया बनाकर कहानी सुने |
यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली भगवान मुझे सात दिन वापस पृथ्वी लोक पर जाने दो में कहानी सुनकर वापस आ जाउंगी | धर्मराज जी ने उसका लेखा – जोखा देखकर सात दिन के लिए पृथ्वी पर भेज दिया | ब्राह्मणी जीवित ही गई | ब्राह्मणी ने अपने परिवार वालों से कहा की में सात दिन के लिए धर्मराज जी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूँ इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता हैं , उसने चावल का साठिया बनाकर परिवार के साथ सात दिन तक धर्मराज जी की कथा सुनी | सात दिन पुरे होने पर वापस धर्मराज जी का बुलावा आया और ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्री हरी के चरणों में स्थान मिला |
धर्मराज मंत्र
ॐ क्रौं ह्रीं आं वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकृते नमः ।
जो भक्त श्रद्धा भक्ति से विधिपूर्वक इस मन्त्र के सवा एक लाख जप कर लेता है| उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है | उसे भगवान श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता हैं |जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती हैं |
धर्मराज दशमी व्रत – धर्म राज दशमी के व्रत को भी यही कहानी सुनी जाती हैं |
धर्मराज जी व्रत उद्यापन विधि
बैकुंठ चोद्स को यह व्रत करे जोड़ा – जोड़ी की पौशाक , पांच बर्तन , शय्यादान , सवा किलो लड्डू , डांगडी , चप्पल जौडी , छतरी , चांदी की सिढि , चांदी का साठिया , धर्मराज जी की सोने की मूर्ति पूजा करके ब्राह्मण को दे देवें |
धर्मराज जी की आरती
Dharmraj ji ki aarti
धर्मराज कर सिद्ध काज प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी |
पड़ी नाव मझदार भंवर में पार करो , न करो देरी || धर्मराज ………….
धर्मलोक के तुम स्वामी श्री यमराज कहलाते हो |
जों जों प्राणी कर्म करत हैं तुम सब लिखते जाते हो ||
अंत समय में सब ही को तुम दूत भेज बुलाते हो |
पाप पुण्य का सारा लेखा उनको बांच सुनते हो |
भुगताते हो प्राणिन को तुमलख चौरासी की फेरी | धर्मराज …..
चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे फुर्ती से लिखने वाले |
अलग अगल से सब जीवों का लेखा जोखा लेने वाले |
पापी जन को पकड़ बुलाते नरको में ढाने वाले |
बुरे काम करने वालो को खूब सजा देने वाले |
कोई नही बच पाता न्याय निति ऐसी तेरी || धर्मराज ……….
दूत भयंकर तेरे स्वामी बड़े बड़े दर जाते हैं |
पापी जन तो जिन्हें देखते ही भय से थर्राते हैं ||
बांध गले में रस्सी वे पापी जन को ले जाते हैं |
चाबुक मार लाते , जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ||
नरक कुंड भुगताते उनको नहीं मिलती जिसमें सेरी || धर्मराज ……….
धर्मी जन को धर्मराज तुम खुद ही लेने आते हो |
सादर ले जाकर उनको तुम स्वर्ग धाम पहुचाते हो |
जों जन पाप कपट से डरकर तेरी भक्ति करते हैं |
नर्क यातना कभी ना करते , भवसागर तरते हैं ||
कपिल मोहन पर कृपा करिये जपता हूँ तेरी माला || धर्मराज …………….
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