मां सती अवतार की संपूर्ण कहानी
पतिव्रता स्त्रियों में सबसे पहले राजा दक्ष की कन्या सती का नाम लिया जाता है । वे पतिव्रता स्त्रियों की आदर्श है ।
ब्रह्मा जी के 9 मानस पुत्रों में प्रजापति दक्ष है । प्रजापति दक्ष की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के दाहिने अंगूठे से हुई थी ।
ब्रह्मा जी की आज्ञा से ही राजा दक्ष ने भगवती सती को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी
सती जन्म से ही भगवान शंकर की पूजा आराधना में ही लगी रहती थी ।
ब्रह्मा जी और समस्त देवी देवता भगवान शंकर जी के पास गए और उन्हें असुरों का विनाश करने के लिए पुत्र की प्राप्ति के लिए दक्ष कन्या सती के साथ विवाह करने की प्रार्थना की और भगवान शिव ने तथास्तु कह कर सब देवताओं को अपने-अपने लोक विदा किया
देवी सती के अखंड तपस्या को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और देवी के पास आए और बोल ही दक्षा कुमारी मैं तुम्हारी आराधना से बहुत प्रसन्न हूं बताओ किस लिए तुमने इस कठोर तप को किया है ।
तब सती बोली देवादेव महादेव आप तो घट-घट वासी हैं मेरी इच्छा को जानते हैं वह आपसे छुपी नहीं है आप स्वयं ही आज्ञा दें कि मैं आपकी क्या सेवा करूं सती के इस प्रकार के वचन सुनकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंन देवी सती को में स्वीकार किया
और शुभ समय आने पर राजा दक्ष ने ब्रह्मा जी आदि देवताओं के के सहयोग से धूमधाम से सती का विवाह शिवजी के साथ कर दिया
विवाह के बाद माता सती कैलाश धाम चली गई और वहां तन मन से केवल भगवान शिव की आराधना और उनकी सेवा करतीइसी प्रसंग में एक को रोचक कथा
एक बार त्रेता युग आने पर पृथ्वी का भार उतारने के लिए श्री हरि ने रघुवंश में अवतार लिया उसे समय पिता की आज्ञा से भगवान श्री राम दंडक वन में घूम रहे थे इसी समय रावण ने मरीज को कपटी हिरण बनाकर भेजा था औरआश्रम से सीता जी का हरण कर लिया था श्री राम जी साधारण मनुष्य की भांति अपनी पत्नी के वियोग में वन वन खोज रहे थे अपने भ्राता लक्ष्मण के साथ
उन्हीं दिनों भगवान शंकर देवी सती के साथ अगस्त्य मुनि के आश्रम में राम कथा सुन रहे थे वह राम कथा सुनकर कैलाश पर्वत के और लौट रहे थे वह तो भगवान शिव ने अपने आराध्य देव श्री रघुनाथ जी को प्रणाम किया और उन्हें प्रणाम करता देखकर माता सती के मन में संदेह उत्पन्न हो गया और शंकर जी तो देवों के भी देव महादेव है फिर यह सांसारिक प्राणियों की भांति पति पत्नी के लिए विलाप करने वाले राम को क्यों अपना आराध्य मान रहे हैं
देवी सती को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था भगवान शिव जी देवी सती के मनोभावों को समझ कर उन्हें उन्होंने देवी सती को बहुत समझाया किंतु देवी सती के मन में उनका यह बात नहीं जची
सती पर योग माया का प्रभाव हो गया था भगवान शंकर जी ऐसा जानकर सती को कहा कि यदि तुम्हें विश्वास नहीं है तो परीक्षा करके देख लो
भोली भाली सती भगवान की योग माया का प्रभाव नहीं जान सकी सती ने खूब सोच समझकर सीता जी का रूप धारण कर लिया और उसे रास्ते पर चलने लगी जहां से रामचंद्र जी जा रहे थे सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ रामचंद्र जी भगवान ने सारी बात जानकर सीता रूप धारिणी सती को प्रणाम किया और अपने और अपने पिता का नाम बता कर और हंसकर पूछा है देवी शिव जी कहां है ?
? और आप अकेली वन में कैसे ?
अब उनके मन में बड़ी चिंता हो रही थी वे सोचने लगी कि मैं क्या कर दिया अपने स्वामी का कहना नहीं माना श्री रामचंद्र जी पर ही परीक्षा लेने चल पड़ी अब मैं उनको क्या उत्तर दूंगी
बारंबार रामचंद्र जी को प्रणाम करके शिवजी के पास वापस चली आई और भगवान शिव जी ने हंस कर कुशल समाचार पूछा
देवी सच-सच बताओ किस प्रकार परीक्षा ली सती ने श्री रघुनाथ जी के प्रभाव को समझ कर भयऔर संकोच के मारे अपना सीता रूप धारण करने की बात छीपा ली
भगवान शंकर जी ने ध्यान लगाकर देवी सती ने जो किया वह सब कुछ जान लिया फिर उन्होंने श्री राम जी की माया को बारंबार मस्तक झुकाया
देवी सती ने सीता का रूप धारण किया यह जब बात शिवजी को पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने सोचा कि सती को पत्नी की भांति कैसे प्रीति करें नहीं तो भक्ति मार्ग का लोप हो जाएगा और बड़ा अन्याय होगा सती परम पवित्र छोड़ने भी नहीं बनता प्रेम करने से भी बड़ा पाप है महादेव जी प्रकट रूप में सब कुछ जान गए पर बता नहीं सके किंतु उनके मन में बड़ा दुख था
भगवान श्री राम को याद करके उन्होंने यह संकल्प लिया ।। एहि तन सतीहि भेंट मोहीं नाही /
और भगवान शिव ने अखंड समाधि लगा ली और उन्होंने देवी सती का परित्याग कर दियाऔर सती से कुछ नहीं कहा
इसी प्रसंगसे जुड़ी एक और अन्य कथा
इसी समय सती के पिता दक्ष प्रजापति पद पर अभिषेक हुआ यह महान अधिकार पाकर के दक्ष हृदय में बड़ा भारी घमंड हो गया और ब्रह्मा जी आदि महात्माओं ऋषियों और भगवान शंकर को भी तिरस्कार की दृष्टि से देखा यहां तक की शिव जी के संबंध में रखने वाली अपनी पुत्री सती का भी भाव अच्छा नहीं रह गया कुछ समय बाद एक बार प्रजापति दक्ष ने ब्रहस्पति सव नामक यज्ञ का आयोजन किया
देवी सती ने देखा कैलाश पर्वत के ऊपर से आकाश मार्ग से देवता यश गंधार सिद्ध सभी बैठे हैं और उनके साथ उनके पत्नीयां भी है और वे सभी जा रहे हैं तब देवी सती ने पूछा भगवान यह सब क्या है ? यह सब कहां जा रहे हैं? भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हारे पिता के यहां बड़ा भारी यज्ञ हो रहा है उसी में यह सब लोग निमंत्रित हैं पिता के यज्ञ की बात सुनकर सती को कुछ भी खुशी नहीं हुइ
तब देवी सती ने पूछा पिताजी के घर में यह क्या हो रहा है उसमें मेरी अन्य बहने भी आएगी माता-पिता से मिले मुझे बहुत समय हो गया इस अवसर पर आपकी आज्ञा हो तो आप और मैं दोनों वहां चले
शिवजी बोले यदि वहां तुम्हारे माता-पिता है परंतु बिना निमंत्रण के कहीं पर भी जाना ठीक नहीं है यदि तुम मेरी बात नहीं मान कर वहां जाओगी तो इसका परिणाम शुभ नहीं होगा
शंकर जी ने बहुत प्रकार से समझाएं पर सती के मन में जाने की लगन लगी थी तब महादेव जी ने अपने प्रधान-प्रधान पार्षदों को साथ देकर सती को अकेले ही विदा कर दिया सती जब पिता की यज्ञ शाला में पहुंची तो उन्होंने शिव जी का यज्ञ में कोई भाग नहीं देखा और उनके माता-पिता और बहनों ने भी उनका तिरस्कार किया तब सती के मन में बड़ा क्रोध हुआ और उनकीआंखें लाल हो गई और ऐसा क्रोध आया मानो वह संपूर्ण जगत कोई भस्म कर डालेगी
देवी सती ने अपने भगवान शिव का ध्यान करके योग में जलकर भस्म हो गई
इस प्रकार पति प्रिय पति प्राण प्रिय सती की यह लिला पूर्ण हो गई
देवी सती ने जीवन भर भगवान शिव की आराधना कि उन्हें अपना सब कुछ माना और अंत समय में भगवान शिव से यह बात मांगा कि प्रत्येक जन्म में मेरा आपसे अनुभव को इसीलिए दूसरे जन्म में गिरिराज हिमालय के यहां पार्वती रूप में प्रकट हुई और भगवान शंकर जी को ही पति रूप में प्राप्त किया ।
ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय
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