राजा नल की कहानी
एक नल राजा और दमेती रानी थी। दशा माता का दिन आया, दमेती रानी ने दशा माता की पुजन श्रद्धा पूर्वक की और व्रत किया, दस कहानीयां सुनी और वेल गले में बांधी। राजा ने गले में सुत का धागा देख कहां कि रानी तुमने यह सुत का धागा क्यों गले में डाल रखा है। यह कहकर धागे को राजा ने तोड़ दिया। रानी ने आग से धागे को निकालकर दूध में ठण्डा कर दिया। सुबह होते ही रानी को खल की भावड़ आई और राजा को भुगड़ा की, रानी ने खल खाई राजा ने भुगड़ा खाये, आधी रात के समय दशा माताजी रानी के सपने में आये और कहां, मैं जा रही हूँ। और औदसा ने कहां की में आ रही हूं।
रानी की नींद खुली और राजा से कहा कि कही दूसरे राज्य में चलो, वहां से राजा-रानी मलाक री धोरी ओर हासलो गोड़ों एवं सायर नीर कंवर चले गये। रास्ते में एक पीपल का पेड़ आया वहां विश्राम लिया। तभी हासलों गोडा पीपल के पेड़ में चला गया, दासी मलाकारी भी चली गई सायर नीर कंवर भी एक वणजारा री बालद में चले गये, सवा मण का हीरा रो इडो भी नदी मे चला गया। नदी उलटी बहने लगी। जब रानी की नींद खुली तो दोनों ही रहे, राजा रानी वहां से निकले एक कुम्हार के घर गये, उनसे कहां की हम यहां ठहर सकते है। कुम्हार ने कहां की आराम से ठहरो। कुम्हार के यहा जो मटका का आवड़ा पका रहे थे, वे सब फूट गये। कुम्हार-कुम्हारी दोनों आंखों से अंधे हो गये, उनके दो बेटे पिली लेने गये थे, वो आये ही नहीं। रानी ने राजा से कहां कि राजा यहां से चलो अभी कुम्हार आयेगा तो लड़ाई करेगा।
राजा रानी वहां से चले गये, एक बाग आया, राजा ने बाग वान से पूछा की आज हम बाग में ठहर सकते है। बागवान ने कहां ठहर जाओ पूरा बाग सुख गया, रानी ने राजा से कहां चलो, यहां अभी बागवान गालियां देगा। राजा रानी वहां से चले गये।
आगे बहिन कि नगरी आई। एक कुंए पर बैठ गये, दासीया पानी भरने आई तो देखा कि ये लोग रानीसा के भाई भाभी जैसे लगते है। दासीया घर जा कर रानी जी से कहां कि कुंए पर आप का भाई भाभी आये है।
बहिन ने पूछा कि कैसे के लवाजमें में आये है दासीयों ने कहां की भन-भन मक्खियां पड़ रही है और फटे कपडे पहने हुये हैं। बहिन कांदा हांदा लेकर कुंए पर गई भाई को रखा भाई तो मोले मन के थे सो जिम लिए पर भाभी ने खाने को खड्डा खोद के डाल दिया।
वहां से चलते-चलते एक नगरी आई। वहां पर नगर का खाना था, रानी तालाब पर बैठ गई और राजा नगर में गये। वहां पर लोगों ने कहां कि इसे भी बैठा कर जिमाओं, राजा ने कहां की मुझे पातल में डाल दो। राजा पातल लेकर आ रहे थे कि रास्ते में एक नदी आई और राजा के हाथ से पतल को हावली ने जापट मार कर गिरा दिया। रानी तालाब के किनारे मासला भून रही थी पर वो बार-बार तालाब में गिर जाते। रानी ने राजा ने पूछा आप जिम लिया तो राजा ने कहां जिम लिया, राजा ने रानी से कहां तुम जिमली रानी ने कहां की जिम ली। दोनों मन ही मन समझ गये।
राजा रानी वहां से एक भाईला भाई के वहां गये। भाईला भाई ने उनका स्वागत किया और कहां की मेरे भाई की दशा ओती है। इसलिए यहां पर आये है। तैतीस तरकारी बतीस भोजन बनाये और राजा रानी जिमने बैठे, वहां पर एक चतरावली मोडी पर सवा लाक का हार टंका हुआ था, चतरावली मोली हार को निगल रही थी, रानी राजा से कहां की चलो यहां से, नहीं तो चोरी माथे आयेगी। राजा रानी वहां से चले गये। जब भाईला भाई की पत्नि को खोटी पर हार नहीं मिला तो उसने कहां कि आप के भाई मेरा हार ले गये, भाई ने कहां की मेरा भाई ऐसा नहीं है, वो हार नहीं ले गये तुम उसे झूठा बदनाम मत करो।
राजा रानी एक शहर में गये जहां पर राजा को कोई नहीं पहचानता था। रानी ने राजा से कहां की यहां पर मजदूरी करके गुजारा करेंगे। राजा जंगल से लकड़ी काट कर लाते और सेठ के घर डालता और वहां से डेढ़ टका मिलते उससे अपना गुजारा करते। रानी एक वेस्या के घर गहने धोने गई पर रानी की दशा ओतने के कारण वे गहने बाजोट ने निगल लिये। वेस्या ने रानी से कहां कि अब गहना नही धोना ऐसे करते एक वर्ष पूरा हो गया और होली का दिन आया, रानी ने राजा से कहां की आज आप दो टका
लाना एक टके की कुकड़ी लाना क्योकि दशा माता का अगता आये है हम दस दिन कहानीयां सुन कर पूजा करेंगे। राजा से सेठ से कहां कि आज मुझे दो टका देना। सेठ ने दो टका दिया। एक टके में तो। खाने का सामान और एक टके का सुत की कूकड़ी लाये। होली की जाल में कुकड़ी को निकाली और वेल बनाई, राजा रानी मिल कर कहानीयां कहते और फिर रोटी खाते नौ दिन कहांनियां कही और दसवें दिन राजा रानी ने व्रत करके पूजा कि और गले में वेल बांधी।
आधी रात को दशामाता पधारे और कहां कि मुझे आने दो मैं साल भर से परेशान हो रही हूं, रानी ने कहां की आप हमारी जवान अवस्था में गये तो घुम फिरके ही दिन पूरे किये पर यदि आप बुढ़ापे में चले जाओगे तो क्या करेंगे। इस पर दशामाता ने वरदान दिया कि मैं तुम्हारे घर में सात पिंड़ीया तक रहूंगी। इतने मे औदसा बोली की मैं जा रही हूं रानी ने कहां की तुम फिर आओंगी तब ओदसा ने कहां कि मैं तुम्हारे घर सात पिड़ियों तक नहीं आऊंगी।
उस नगर के राजा की कन्या बड़ी हुई तो राजा ने एक हथनी सरगारी ओर कहां कि जिसके गले में यह माला डालेगी वो ही कन्या का वर होगा। बड़े-बड़े राजा वहां पर आये हुए थे नल राजा भी वहां देखने गये। नल राजा को वहां पर काठ कबाड़ीया कहते थे। हथनी ने माला काठ कबाड़ीया के गले में डाल दी। लोगों ने कहां हथनी चुकी रे चुकी। दूसरे दिन हथनी को फिर सरगारी, हथनी घुमती-घुमती फिर काठ कबाड़ीया के गले में डाली तीसरे दिन भी घुमती-घुमती काठ कबाड़ीया के गले में माला डाली। लोगों ने कहां कि आज चौथा दिन है जिसके भी गले में माला डालेगी वो ही कन्या का वर होगा। हथनी घुमती-घुमती जंगल में गई जहां राजा लकड़ी काट रहे थे। हथनी वहां जाकर फिर काठ कबाड़ी के गले में माला डाली। राजा ने कहां की कन्या के भाग मे काठ कबाडीया ही लिखा है हम क्या करें। वहां से काठ कबाड़ीय को बुलाया और हजामत कराई और नये कपड़े पहनाये। फेरे में कन्या की आंखे दुखनी आई। तो कन्या सिर फोड़ने लगी। राजा ने लड़कियों से कहां की उनके घर पर पूछ के आओ की तुमारे देवता के काई चढ़े। लड़किया उसके घर पर जाकर बोली ओ काठ कबाड़ी की लुगाई तुमारे देवता के क्या चढ़ता है उन्होंने कहां कि मेरे देवता तुमारे वणे मे नहीं आयेगा।
तुमारी जो इच्छा हो वो चढ़ा दो राजा ने कहां की कोई समझदार को भेजो जो पूछकर आयें फिर दानी बूडी महिला गई और कहां कि बाईसा आप के देवता के काई चढ़े, दमेती को वहां पर दमली कहते, थे. उसने कहां की हमारे देवता के सवामण अणविन्दया मोती चढ़े, सोना रूपारा नालेर चढ़े और रेसम मसूर रा कपड़ा चढ़े। बुढ़ी ने कहां की अत्तरा तो नल राजा और दमती रानी के देवता की चढ़े। दमती रानी ने कहां कि हमारी दशा ओती तब हम यहां पर आये। बुदी महिला ने राजा को बताया की बाईसा का तो भाग्य खुल गये नल सजा जैसा वर मिला। राजा ने रथ भेज कर रानी को बुलाया रानी चाले तो कंकु का पगल्या मंड्या, बोले तो फेफरा फुल गिरा, नाक हीकें तो सोने री हलीया पड़े। बाईसा तो चमलो फूले जैसे फुलने लगे। नल राजा जैसा वर मिला, निचा नेचान उचो हो गया, खुब आनन्द से शादी हुई।
जिस सेठ के घर लकड़ी डालते वे सेठ आये और कहां की ये लो घर की चाबी और मुझे देश निकालो देवो। नल राजा ने कहां कि आप की कोई गलती नहीं है। आप आराम से रहो सेठ ने कहां की मेरी कन्या से भी शादी करो। नल राजा ने सेठ की लड़की से शादी की और आराम से रहने लगे। दमेती रानी वेस्या के घर गई और कहां की बहिन कोई गहना हो तो देओ में धो देती हूं। वेस्या ने गहना दिया जोहि गहने धोने लगी तो बाजोत गहने निकालने लगे। उसने वेस्या को कहां कि मारी दशा ओती सो तुमारी भी ओती। वे गहने वेस्या को दिये और बहुत धन दिया।
रानी ने राजा से कहां की अब यहां से चलना चाहिये, राजा रानी वहां से सिख लेकर रवाना हुए। चलते-चलते भाईला भाई के यहां गये, भाईला भाई ने आदर सत्कार किया और तैसीस तरकारी बतीस भोजन बनाये। राजा रानी उसी कमरे में भोजन जिमने बैठे तो रानी की नज़र बार-बार उस मोडी पर जा रही थी जैसे ही मोडी हार उगलने लगी रानी ने भाईला की पत्नी को बुलाया और कहां की देखो मोडी हार उगल रही है। मेरी दशा ओती सो मोडी ने भी हार निगला। वहां भी धन रूपया दिया।
आगे चलते उसी बाग में आये, बाग में पैर रखते ही बाग हरीया भरीया हो गया, बागवान कहने लगा कि पहले कोई ठाला
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भूला हठकारिया आया सो बाग सुख गया। राजा ने कहां कि पहले ही हम ही आये थे. हमारी दशा ओती सो तुमारी भी ओती। बागवान को भी बहुत धन दिया। आगे कुम्हार का घर आया यह कुम्हार के मटके ताबा पीतल के हो गये। कुम्हार कुम्हारी आंखों से यहां पर ठहरे तो देखने लगे। दो बच्चे जो पिली लेने गये थे वो भी आ गये। कुम्हार ने कहां की पहले कोई आये तो मेरे सारे मटके फूट गये राजा ने कहां की पहले भी हम ही आये थे, हमारी दशा ओती सो तुमारी भी ओती । कुमार को भी बहुत धन दिया।
वहां से बहिन के गांव मे गये परगट पर बैठ गये दासीया पानी लेने आई घर जो कर बाईसा से कहां आप का भाई भाभी आये है। तैंतीस तरकारी बतीस भोजन लेकर गये भाई तो जिम लिए, भाभी नही जीमे। भाभी ने हाथ के गहने खोल कर कहने लगी जीम मेरा आगला जीम मारा पाछला। नणद ने कहां गहने भी जीमते है क्या ? रानी ने कहा कि मने जिमाता तो पहले ही जिमाता। गड्डा खोद कर कांदा हांदा निकाला जो सोने का हो गया था वह नणद को दे दिया ओर धन भी दिया।
आगे चलते-चलते उस पीपल के वहां ठहरे पीपल में से हांसलो गोडा आया, दासी पानी लेकर आई और कहां कि बाईसा पानी पीओ, सवामण हीरा रो इंडो नदी से आ गया। राजा रानी वहां पर रूके थे। राजा को तो नींद आ गई पर रानी को नींद नहीं आ रही थी, वहां सायर नीर कवर बालद कि चौकी लगा रहे थे। सायर ने कहां की नीर बात कहो, तो नीर ने कहां घर विती कहूं की पर विती, परविती में काई। मले, घर विती कहो, कहां नल राजा कहां दमेती रानी, कहां हासलों गोडो कहां मलागरी चोरी, रानी के ये शब्द कान में पड़े तो रानी ने राजा को जगाया और कहां की राजा मेरा दोनों कवर इस बालद की चौकी मे है।
राजा ने कहां की कैसे लेंगे। रानी ने कहां की न्याय से लेगे। राजा ने बालद को नूता दिया की आप सब मेरे यहां जिमने आना। सब लोक जिमने आ गये पर रानी के दोनों बेटे जिमने नही आये। बंजारी ने कहां की मेरे दो नौकर नही आये है सो बाज गाल दो। रानी ने कहां की उनको यहां पर भेज देना, दोनों कंवर आये, रानी ने वाईरा करते-करते। दोनों को जिमाया। वो जाने लगे तो रानी ने रोक लिया और कहां की तुम
दोनों मेरे बेटे हो, इतने में बनजारी आई और कहा की तुम जिमा कर मेरे बेटे लेती हो तब रानी ने कहां की यो न्याव सुरज बावजी करसी । रानी ने खलडे की काचली पहनी बंजारी ने रेशम की और सुरज भगवान के सामने खड़ी हो गई। रानी की खालडे की काचली फाट कर दोनों कवरों के मुह में दूध की हेर गिरी। बंजारी ने कहां की बेटा आपका है। रानी राजा से कहां अब अपनी नगरी में चलो। नगर में समाचार भेज दिये की राजा रानी पधार रहे है। नगर के लोग राजा को लेने गये। लोटा भर पानी और धोब लेकर राजा रानी को वंदा
कर राज महल में ले आये और आनन्द से रहने लगे। उनके दशामाता घर में पधारे वैसे सब के घर पधारना और युगो-युगो तक माता घर में रहना और घर में आनन्द मंगल करना।
जय दशामाता जी की !
ANY KAHANIYA