भगवती श्री दुर्गा माँ Maa Durga Ki Janam Katha

माँ दुर्गा की उत्पति की कथा

पूर्व समय में दुर्गम नाम का एक महाबली असुर था | उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या कर अदभुद वरदान प्राप्त कर लिया | वरदान के प्रभाव से दुर्गमासुर ने वेदों का अपहरण कर लिया जिससे सारी धार्मिक क्रियाये भावनाये लुप्त हो गई हैं | दुर्गमासुर ने अहंकार के वश होकर संसार को अपमानित और पीड़ित कर रखा था | घोर अकाल पड़ गया , जीव अन्न और जल के लिए छटपटाने लगे | तीनों लोको में त्राहि त्राहि मची थी , देवता भी यह सब देख डरे हुए थे |

सभी देवता माँ भगवती की शरण में गये और प्रार्थना करने लगे | हे माँ भगवती ! आप असुरो का संहार करने वाली आपने शुम्भ निशुम्भ , चंड मुंड , मधु कैटभ , महिसासुर आदि दैत्यों का वध कर हमारी रक्षा की उसी प्रकार हे भगवती दुर्गमासुर का वध कर हमारी रक्षा कीजिये |

देवताओ की विनती से प्रसन्न होकर माँ भगवती ने जल की अनन्त धाराए प्रवाहित कर चारो और जल ही जल प्रवाहित कर दिया | गायो के लिए घास अन्य जीवों को अन्न , जल से तृप्त किया | समस्त संसार की रक्षा कर सुरक्षा चक्र का घेरा बनाकर स्वयं बाहर आकर बैठ गई | दुर्गमासुर ने यह सब देख चिन्तित होकर देवी माँ पर असुरो की सेना ने आक्रमण कर दिया तभी सुंदर सलोनी माँ भगवती ने अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर विराट रूप धारण कर समस्त असुरो का वध कर त्रिशूल से दुर्गमासुर का वध कर संसार में धर्म की स्थापना की | दुर्गमासुर का वध करने के कारण माँ भगवती इस संसार में दुर्गा के नाम से विख्यात हुई |

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