परशुराम जयंती
Parshuram Jayanti
बुधवार 18 अप्रैल को परशुराम जयंती हैं | इस वर्ष परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में पुरे राज्य में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया हैं | सर्व ब्राह्मण समाज की मांग पर मुख्यमंत्री राजे ने अवकाश घोषित किया | इस वर्ष से हर वर्ष परशुराम जयंती पर अवकाश रहेगा |
भगवान परशुराम का जीवन परिचय
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श्री परशुराम जयंती परशुराम श्री भगवान विष्णु के अवतार हैं | ये ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के पुत्र हैं | इनकी माता का नाम रेणुका हैं | परशुराम जी भगवान शंकर के परमभक्त हैं | भगवान शंकर ने परशुराम जी को एक अमोघ अस्त्र – परशु प्रदान किया | इनका वास्तविक नाम राम था , वरदान रूप में परशु धारण करने के कारण इसका नाम परशुराम पड़ा | परशुराम जी अपने पिता के परम् भक्त थे | इन्होने अपनी पिता की आज्ञा से माता का सिर काट डाला था , पुन: पिता के आशीर्वाद से माता की स्थिति यथावत हो गई |
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भगवान परशुराम जी की कथा
परशुराम जी के पिता जमदग्नि के आश्रम में कामधेनु गाय थी , जिससे मनचाहा वर प्राप्त कर सकते थे | कामधेनु गाय सभी मनोकामनाये पूर्ण कर देती थी | कामधेनु गाय की अलौकिक एश्वर्य शक्ति को देखकर कार्तवीर्याजुन उसे प्राप्त करने के लिए बल प्रयोग किया और उसे माहिष्मती ले आया |
जब परशुराम जी को समाचार मिला तो उन्होंने कार्तवीयार्जुन तथा उसकी सम्पूर्ण सेना का विनाश कर डाला | किन्तु परशुराम जी के पिता ने चक्रवती सम्राट के वध को ब्रह्म हत्या के समान बतलाते हुए परशुराम जी को तीर्थ यात्रा पर जाने का आदेश दिया | वापस आने पर माता पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया | सहस्त्रार्जुन के वध से उसके पुत्रो के मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी | एक दिन उन्होंने रूप बदलकर परशुराम जी के पिता का सिर काट डाला और उसे लेकर भाग गये |
परशुरामजी जी ने यह समाचार सुनते ही अत्यंत क्रोधित होकर आग बबूला हो उठे और पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की प्रतिज्ञा कर ली , तथा इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया |]
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फिर पिता के सिर को घड से जौडकर कुरुक्षेत्र में अन्तेयष्टि संस्कार किया | पूर्वजो ने इन्हे आशीर्वाद दिया और उन्हीं की आज्ञा से इन्होने सम्पूर्ण पृथ्वी प्रजापति कश्यपजी को दान में दे दी और स्वयं महेन्द्राचल पर तपस्या करने चले गये |
सीता स्वयंवर में श्री राम द्वारा धनुष भंग करने पर महेन्द्राचल से शीघ्रता से जनकपुर लौटे किन्तु श्री राम से वार्तालाप कर प्रसन्न मन से अपना धनुष उन्हें देकर पुन: तपस्या के लिए महेंद्राचल पर वापस चले गये |
भगवान परशुराम भक्तो का कल्याण करने वाले हैं | सम्पूर्ण भारत में परशुराम जी के अनेक मन्दिर हैं | जहा उनके शांत , मनोरम , तथा उग्ररूप मूर्ति के दर्शन होते हैं |
|| जय बोलो परशुराम जी की जय हो ||