दशामाता दियाडा बावजी की कहानी 6

दशामाता

दशामाता दो देवरानी जेठानी थी  । जेठानी के घर में बहुत अच्छा था। देवरानी के घर में कुछ नहीं था।

देवरानी जेठानी के घर पर काम करती थी, झाडू पोछा करती और अपने घर का गुजारा करती, ऐसे करते-करते बहुत दिन हो गये।

दशामाता का दिन आया, वो थाली में पूजा का सामान लेकर निकली रस्ते में गजानन्दजी लडडु बिखेर ने बैठे थे।

गजानन्दजी ने कहा, मेरा लड्डु समेट कर दे। उसने जल्दी से लड्डु समेट कर दिया।

आगे चली तो पथवारी माता कंकर पत्थर बिखेर ने बैठे थे। पथवारी माता ने कहाँ की ओ जाने वाली  मेरा कंकर पत्थर समेट कर जा।

उसने कंकर पत्थर समेट दिया, और आगे धर्मी राजा ने किताबा कोपियां बिखेर ने बैठे थे, ये जानेवाली मारा कोपी पन्ना समेट थी  जा।

उसने किताबा कोपियां समेट दी आगे चलते सुरज भगवान ने कहां ये जाने वाली मारो सांड पाछो फेरती जा। उसने साड्या को फेर दिया,

आगे चल कर पीपल माता दशामाता दियाडा बावजी की श्रद्धा से पूजा की। तो माताजी ने वरदान दिया आगे गई तो सुरज

भगवान ने कहां की ओ साड लेती जा, थारा बच्चे बैठने घुमी। साड ले लिया, धरमी राजा ने कही की थोड़ा पोती किताब लेती जा

, थारा बच्चा पढ़ी, पथवारी माता ने कहां की थोड़ा कंकर पत्थर लेती जा कंकर पत्थर ले लिया, गणपती बाबा ने कहा की थोड़ा लड्डु लेती जा।

थारा बच्चा खाई। लड्डु ले लिया, घर गई कंकर पत्थर कोठा मे रखीया तो हीरे मोती बन गये, दशामाता

, दियाडा बावजी की सब देवता की कृपा से घर मे बहुत धन वैभव हो  गये।

दूसरे दिन जेठानी के घर काम करने नहीं गई, तो जेठानी ने दो बच्चो से कहां की काकी को बुला कर लाओ की काम मे देर हो गई ।

, बच्चे गये और कहां की आप को मम्मी बुला रही है। उस ने कह की काम अब करूंगी नहीं। लो लड्डू खाओ,

बच्चे लड्डू लेकर मां के पास गये, और कहां की मां काकी के तो खुब  धन्  हो गये।

 

 

 

दौडी-दौडी जेठानी आई और कहां, कि देवरजी ने क्या किया चोरी कि या अन्यायी कि इतनो धन  कैसे हुआ।

देवरानी बोली की चोरी अन्याय नहीं किया ये तो , दशामाता दियाडा बावजी की कृपादृष्टि हुई है।

दूसरे दिन जेठानी भी थाल में पूजापो लेकर दशामाता दियाडा बावजी पूजने निकली, रास्ते में गणेशजी लाडू बिखेर ने बैठे थे

गणेशजी बावजी ने कहां ओ जाने वाली मानवण ये लड्डु समेट ती जा उसने कहां, की तुम ही करलो, मेरे तो देर हो रही है।

आगे पथवारी माता कंकर पत्थर बिखेर ने बैठे थे। माता ने कहां की मेरे कंकर पत्थर समेट ती  जा उसने कहा की आप ही कर लो.

आगे धरमी राजा किताबा पोथी बिखेर ने बैठे थे। भगवान ने कहा की मेरे किताब पन्ना समेट ती जा। उसने कहां आप तो फालतु बैठे है

सो कर लो। आगे सुरज बावजी ने कहां की ओ जाने वाली, मारो सांड पांचों मोड़ती जा उसने कहा की तु ही तो बैठे हो

कर लो, आगे दशामाता दियाडा  बावजी की बिना श्रद्धा सूं पूजा की।

आगे सुरज बावती सांड लेईने बैठे थे। उसने कहां सांड में ही घर ले जाऊ बच्चे बैठी, सूरज बावजी ने कहां की हाथ मत लगा,

थने कीयोक सांड अटीने गेर थे निगेरीया। आगे धरमी राजा किताब पोथी लेईन बैठे थे किताब लेने लगी तो धरमी राजा बोले,

किताब के हाथ मत लगा, थने कहां कि किताब भेली कर जो, नही कीदी। आगे पतवारी माता कंकर लेन बैठे वो कंकर लेने लगी

माता ने कहां हाथ मत लगा, आगे गणपतजी लाडू लेईने बैठे थे। उसने लाडू के हाथ लगाने लगी, गणपतजी ने

कहां लाडू के हाथ मत लगा। थने कहा की लाडू भेला कर सो कीदा क्या।

 

 

 

घर आई तो चारो तरफ पत्थर ही पत्थर है उस ने कहां कामणी ठीमणी या देवरानी है, उससे लड़ाई करने लगी उसने कहां की

आप को रस्ते में कोई मिले थे क्या, उसने कहां हा मिले, पर मैने उनका काम नही किया, देवरानी ने कहां मैंने उन सब का काम

किया वो कोई साधारण मनुष्य नहीं है वो तो देवता है इसलिए मुझे टूटे है इसमें लडाई का काई काम नहीं है आप माफी मांगों मेंने

तो श्रद्धा से किया आप ने लालच में किया ।, देवरानी ने सब से माफी मांगी । दशा माता जी ने कहा  थारा घर में जो है वो सब आधा

  देवरानी ने देवे तो समेट जायेगा । उसने सब चिजे में से आधी देवरानी को दिया और सब कुछ समेट गया। दशामाता दियाडाबावजी

सब देवता देवरानी पर कृपा करी वे से सब पर कृपा करना । कहानी कहने सुनने वालों पर कृपा करना।

ANY KAHANIYA

RAJA NAL KI KATHA