दशामाताजी की कहानी

एक सेठ सेठानी थी उसके दशामाता का NIYAM  था वो रोज कहानी कहती और हंस को मोती चुगाती थी। एक दिन मोती नहीं थे वह पडोसन से मुट्ठी भर मोती लाई और कहां कि कल वापस दे दूंगी। वह रामत को सोई तो निंद आई कि कल के माती कहां से लाऊंगी। पड़ोसन को मोती कैसे दूंगी इस चिंता में सो रही थी रात को माताजी पधारे और कहां चिंता मत करो सुबह तुमारे घर के बाहर वाडे में एक पेड़ उगेगा वह सवा पेर दिन निकले, मोती खरेंगे सो दे देना। सुबह वो जगी और बाहर देखा तो छोटा सा पेड़ उगा हुआ था सवा पेहर होते ही मोती खरने लगे मोतीयों का ढेर लग गया। उसने साजला भर कर मोती पड़ोसन को दिया । उसने कहां कि इतने मोती कहां से आये है। उसने कहां दशामाता ग्याडा बावजी की कृपा से मोतीयों का जाड़ लग गया है। वह पड़ोसन राजा के पास गई और कहां कि उस सेठानी के घर मोतीयों का जाड़ लगा है सो वो राज दरबार में सोवे। राजा ने जाड़ को मंगवा लिया और मेलो में लगा दयिा पेड़ कांटे ही कांटे हो गये पूरे महल में कांटे हो गये।

 

राजा ने उस पडोसन को बुलाया और कहां कि यह क्या है। परे महल में कांटे हो गये उसने कहां में क्या जाणे यह तो वो डोकरी ही बतायेगी उस डोकरी को बुलाया और कहां की तुमारे तो मोती खरते है। तो यहां कांटे कैसे हुआ। उसने कहां कि मे तो निरधन हूं सो दशा माता टूटा है आपको नही खटिया सो आप मंगवा लिया। डोकरी ने हाथ जोड़कर कहां हे दशामाता मैं को सत मन से टूटा हो तो यह कांटा मेट करो और मोती खेर दो। वह कांटा मेट हो गया और मोती खेरे। राजा ने वह जाड़ उसको वापस दिया और बहुत धन दिया उसके घर में बहुत धन धान्य हो गया खूब आनन्द मंगल हो गया। माता उसको टूटा वैसा सबको टूटना मेरे को भी टूटना मेरी भी चिन्ता दूर

करना । जय दशामाता की जय ग्याड़ा बावजी की जय हो। 

ANY KAHANIYA

DASHAMATA VRAT KI KAHANI 6