Vijaya Ekadashi 2023- कब है?

  • विजया एकादशी डेट 2023 : 16 फ़रवरी 2023 गुरुवार
  • पारणा मुहूर्त- Feb 17, 08:01 AM to 09:13 AM
  • हरी वसार : Feb 17 at 08:01 AM
  • Vijaya Ekadashi date starts:  Feb 16, 2023 at 05:32 AM
  • Vijaya Ekadashi date ends:  Feb 17, 2023 at 02:49 AM
  • Vaishnava Vijaya Ekadashi Date:  Friday, February 17, 2023

विजया एकादशी, जानें पूजन विधि और शुभ मुहूर्त

विजया एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा कैसे करें?

भक्तिपूर्वक श्रद्धा से स्त्री या पुरुष फाल्गुन कृष्ण एकादशी  को उपवास करे | प्रात: काल स्नानादि से निर्वत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर , भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प ले |

 विजया एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निर्वतहोकर भगवान श्री हरी विष्णु की पूजा के लिय कलश स्थापित करे |

विजया एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विधि विधान से पूजा अर्चना करे |

श्री हरि मस्तक पर सफेद चन्दन से तिलक लगाये |

पंचामृत, पुष्प और ऋतु फल , केशर , चन्दन , वस्त्र ,भगवान जनार्दन को अर्पित करें |

ब्राहमण को पूजन सामग्री तथा अन्न दान करे |

फलाहार करे |

रात्री जागरण करे | भजन कीर्तन करे |

क्रोध नहीं करे |

कम बोले , मन ही मन भगवान विष्णु का ध्यान करे |

विजया एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त

विजया एकादशी पारणा मुहूर्तFeb 17, 08:01 AM to 09:13 AM

विजया एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले – हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? इस व्रत को करने से क्या फल मिलता हैं  कृपा करके आप मुझे बतलाइये |

श्री भगवान बोले हे राजन् – फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत को करने से  मनुष्‍य कोअसम्भव से असम्भव कार्य में  विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम और श्रेष्ठ व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण करने मात्र  से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का महात्म्य  कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत  पापों को नाश करने वाला , विजय दिलाने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि बतलाता हूँ ध्यान से सुनों । यहविजया एकादशी समस्त मनुष्यों को विजय दिलाने वाली  है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गय | तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।

श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।

वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की  विजया एकादशी का उत्तम व्रत करने भगवान जनार्दन की कृपा से  से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
इस विजया एकादशी व्रत  की उत्तम विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर भगवान श्री हरि की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस विजया एकादशी व्रत को सम्पूर्ण सेना सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस विजया एकादशी व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय प्राप्त की ।
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य श्रद्धा एव विश्वास से  विधिपूर्वक इस विजया एकादशी व्रत को करेगा  उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई विजया एकादशी व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

अन्य एकादशी व्रत का महात्म्य :-

मोहिनी एकादशी  || वरुधिनी एकादशी || अपरा एकादशी || निर्जला एकादशी || योगिनी एकादशी ||  देवशयनी एकादशी ||  कामिका एकादशी पुत्रदा एकादशी ||  अजा एकादशी || कामदा एकादशी || जया एकादशी ||  पापाकुंशा एकादशी