Putrada Ekadashi Vrat [ Sawan Maas Shukl Paksh ] Ka Mahatmy

पुत्रदा एकादशी व्रत [ श्रावण मास शुक्ल पक्ष ] का माहात्म्य

युधिष्ठर ने पूछा – हे मधुसुदन ! गोविन्द ! आपको नमस्कार हैं | श्रावण शुक्ल पक्ष की कौनसी एकादशी होती हैं ? उसका वर्णन कीजिये |

भगवान वासुदेव बोले –राजन ! सुनो , मैं तुम्हे एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ , जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी को सुनाया था |

नारद जी ने प्रश्न किया – भगवन ! कमलासन ! में आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रावण के शुक्ल पक्ष   की जो एकादशी होती हैं , उसका क्या नाम हैं , उसके कौन से देवता हैं तथा पूण्य की प्राप्ति कैसे होती हैं ? प्रभो ! यह सब बतलाइये |

 

ब्रह्माजी ने कहा – हे मुनि श्रेष्ठ ! सुनो – मैं सम्पूर्ण लोको के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ | श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘ पुत्रदा एकादशी ‘ के नाम से जानते हैं | इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता हैं | प्राचीन समय में द्वापरयुग के प्रारम्भ में महिष्मपूरी में महिजित नाम का राजा राज्य करता था |उसके पुत्र नहीं था |इससे उसका नम बड़ा व्याकुल रहता था | बिना पुत्र के इस लोक और परलोक सुख नहीं मिलता | पुत्र की प्राप्ति के लिए अनेक यत्न किये परन्तु पुत्र नहीं हुआ | अपनी आयु अधिक जान राजा को बड़ी चिंता हुई | राजा ने प्रजावर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा – प्रजाजनों ! इस जन्म में मैंने कोई पाप कर्म नहीं किया | मैंने अपने खजाने में पाप से कमाया हुआ धन जमा नहीं किया हैं ब्राह्मणों और देवताओ द्वारा कमाया हुआ धन भी मेनें नहीं लिया | प्रजा का पुत्रवत पालन किया , धर्म पर अडिग रहकर पृथ्वी पर अपना अधिकार जमाया तथा दुष्ट कृत्य करने वाले बन्धु जनों को भी दंड दिया |शिष्ट पुरुषो का सदा सम्मान किया और किसी को भी द्वेष का पात्र नहीं समझा | फिर ऐसा कौनसा कारण हैं जिससे मेरे पुत्र नहीं हुआ | आप सभी इस पर गहन चिन्तन करे |

राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितो के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया | राजा का कल्याण चाहने वाले वे सभी लोग इधर – उधर घूमकर ऋषि सेवित आश्रमों की तलाश करने लगे | इतने में ही उन्हें ऋषिश्रेष्ठ लोमेश जी के दर्शन हुए | लोमेश जी धर्म के तत्वज्ञ , सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञाता , विद्वान् महात्मा हैं | उनका शरीर लोम से भरा हुआ हैं | वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी हैं | एक – एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक – एक लोम विशीर्ण होता – टूटकर गिरता हैं ; इसलिए उनका नाम लोमेश हुआ | उन्हें निकट आया देख लोमेश जी ने पूछा – तुम किस उद्देश्य से मेरे पास आये हो ? अपने आगमन का कारण बतलाओ | तुम लोगो के लिए हितकर कार्य होगा , उसे मैं अवश्य करूंगा |’

प्रजाओं ने कहा – ब्रहमां ! इस समय महिजित नाम वाले जो हमारे राजा हैं उनके कोई पुत्र नहीं हैं , हम सभी उनकी प्रजा हैं जिसका उन्होंने पुत्रवत पालन किया हैं | उन्हें पुत्र हिन् देखकर उनके दुःख से दुखी हो हमने कठोर तपस्या करने का दृढ निश्चय करने यहाँ आये हैं | हे मुनि श्रेष्ठ ! राजा के भाग्य से हमें आपके दर्शन हुए हैं , महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं | मुने ! अब हमें उस उपाय का उपदेश दीजिये , जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो |

प्रजाजनों की बात सुन महर्षि लोमेश जी ने कुछ क्षण ध्यानमग्न हो गये | तत्पश्चात राजा के पूर्व जन्म के वृतांत जानकर कहा – प्रजाजनों ! सुनों – राजा महिजित पूर्व जन्म में मनुष्यों चूसने वाला धनहीन वैश्य था | वह वैश्य गाँव – गाँव घूमकर व्यापार किया करता था | एक दिन ज्येष्ठ शुक्ला दशमी तिथि को , जब दोपहर में सूर्य तप रहा था , वह गाँव की सीमा पर जलाशय पर पहुंचा | पानी से भरी हुई बावड़ी देख कर वैश्य ने वहां जल पीने का विचार किया | उसी क्षण वहां बछड़े के साथ एक गौ आ पहुंची | वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी वह बावड़ी में पानी पीने लगी | वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को दूर हटा दिया और स्वयं पानी पी लिया | उसी पाप कर्म के कारण राजा इस समय पुत्रहीन हैं | किसी अन्य जन्म के पूण्य के कारण राजा को राज्य प्राप्त हुआ |

प्रजाजनों ने कहा –  मुने पुराणों में सुना हैं की प्रायश्चित करने से पाप नष्ट हो जाते हैं; अत: पूण्य का उपदेश दीजिये जिससे उस पाप का नाश हो जाए |

लोमेशजी बोले – प्रजाजनों ! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती हैं उसे ‘ पुत्रदा एकादशी ‘ होती हैं | संसार में वह ‘ पुत्रदा एकादशी ‘ के नाम से विख्यात हैं | वह सब पापों का नाश करने वाली , मनवांछित फल प्रदान करने वाली हैं | तुम सभी अपने राजा के साथ  ’ पुत्रदा एकादशी का व्रत करो | यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक ‘ पुत्रदा एकादशी ‘ का व्रत और अनुष्ठान किया | सभी प्रजाजनों ने अपनी पुत्रदा एकादशी व्रत को निर्मल पूण्य राजा को दे दिया | तत्पश्चात रानी ने गर्भ धारण किया और समय आने पर रानी ने पुत्र को जन्म दिया |

हे नृप श्रेष्ठ ! इस प्रकार यह पुत्रदा एकादशी जगत में प्रसिद्ध हुई | इस लोक और परलोक के सुख की इच्छा रखने वालो पुत्रदा एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए | पुत्रदा एकादशी का माहात्म्य सुनने मात्र से मनुष्य सब पापो से छूटकर पुत्र का सुख प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त होता हैं |

|| जय बोलो पुत्रदा एकादशी की जय || || भगवान विष्णु की जय हो सदा ही जय हो ||

 

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