नागपंचमी व्रत की कथा
नाग पंचमी की कहानी , व्रत विधि
नागपंचमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उपवास कर नागों की पूजा कर नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता हैं | इस दिन नागों की पूजा करने से महापुण्य की प्राप्ति होती हैं | दिन में एक बार भोजन करना चाहिये | दीवार पर नागो का चित्र बनाकर अथवा सोने या लकड़ी का नाग बनाकर अथवा मिट्टी का नाग बनाकर पंचमी के दिन कमल ,चमेली के पुष्प, धुप ,कच्चा दूध , नेवेद्ध्य [ मिठाई ] से नागो की पूजा कर घी , खीर , लड्डू पांच ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए, इसके पश्चात आप स्वयं भोजन करे , सर्वप्रथम मीठा भोजन करे बाद में अपनी इच्छानुसार करे |
पंचमी तिथि नागो को अत्यंत प्रिय हैं , और उन्हें सुख़ देने वाली हैं | ऐसी मान्यता हैं की एक बार माता की शाप से नागलोक जलने लग गये थे | इसलिये उस जलन के दुःख को कम करने के लिए पंचमी तिथि को गाय के दूध से नागो को आज भी स्नान कराते हैं इससे सर्प के काटने का भय नहीं होता हैं |
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नागपंचमी की कथा
जब देवताओ और असुरो ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया | उस समय समुन्द्र से एक श्वेत उच्चै: श्रवा नाम का एक अश्व निकला , उसे देखकर नागमाता ने अपनी सौत विनता से कहा की देखो , यह अश्व श्र्वेत वर्ण हैं ,पर इसके बाल काले हैं | तब विनता ने कहा यह अश्व न तो लाल हैं न ही पीला यह तो केवल श्वेत वर्ण ही हैं | यदि यह अश्व काला हुआ तो मैं आपकी दासी बन जाउंगी | दोनों ने यह शर्त स्वीकार कर ली | नाग माता ने अपने पुत्रो को बुलाया और कहा की पुत्रो ! तुम अश्व के बाल के अनुरूप सूक्ष्म होकर अश्व के शरीर पर लिपट जाओ , जिससे यह अश्व काला दिखे और मैं शर्त जीत कर उसको [ सौत ] अपनी दासी बना सकूं | पर नागो ने छल करने से अपनी माता को मना कर दिया | छल से जीतना अधर्म हैं | पुत्रो का यह वचन सुनते ही नागमाता कद्रू ने शाप दे दिया ,” तुम लोग मेरी आज्ञा नहीं मानते हो इसलिये मैं तुम्हे शाप देती हूँ की ‘ पांडवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय जब यज्ञ करेंगे तब तुम उस यज्ञ में जल जावोंगे | नागमाता का शाप सुनकर सर्प ब्रह्माजी के पास गये और सारी बात बताई | ब्रह्माजी ने कहाकी वासुके ! चिंता मत करो |
यायावर वंश में बहुत बड़ा जरत्कारू नामक तपस्वी ब्राह्मण उत्पन्न होगा | उसके साथ तुम अपनी जरत्कारू नाम वाली बहन का विवाह कर देना और वह जों भी कहे तुम उसकी आज्ञा का पालन करना | उसी का पुत्र यज्ञ को रोकेगा और तुम्हारी सापों से रक्षा करेगा |यह सुनकर नाग अपने लोक में आ गये | ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को वर दिया था और पंचमी तिथि को ही नागो की रक्षा की थी ,अत : पंचमी तिथि नागो को अत्यंत प्रिय हैं |
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नागपंचमी की कथा सुनने के बाद इस प्रकार प्राथना करे —-
जों नाग पृथ्वी पर , आकाश में , तालाब में , कुवें में , जंगल में , स्वर्ग में , सूर्य के प्रकाश में , इस चराचर जगत में रहते हैं , वे सब हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखे , हम पर प्रसन्न हो हम उनको बार – बार प्रणाम करते हैं |
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नाग पंचमी की कथा
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