अनंत चतुर्दशी Anant  Chturdashi Pujan Vidhi , Vrat Katha , Mahattv

अनन्त चतुर्दशी व्रत का महत्त्व

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी के नाम से जाना जाता हैं | इस वर्ष यह व्रत 28  सितम्बर गुरुवार  को हैं | अनन्त चतुर्दशी का व्रत सब दोषों का शमन करने वाला एवं समस्त मंगलो की वृद्धि करने वाला हैं | सभी संकटो को दूर करने वाला अनन्त सूत्र बंधन का त्यौहार अनन्त चतुर्दशी हैं | अनन्त अर्थात जिसका आदि अन्त ना हो वह हैं अनन्त अर्थात भगवान श्री हरी |

 

 

 

 

अनन्त भगवान कृष्ण का ही नाम हैं और भगवान कृष्ण श्री विष्णु के अवतार हैं |

 

अनन्त चतुर्दशी व्रत में भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं |  यह व्रत अनन्त फलो को देने वाला हैं 14 साल तक निरंतर व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं |पौराणिक मान्यता के अनुसार जब पांडव जुए में हार कर कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने को कहा | धर्मराज युधिष्टर ने भाइयों तथा द्रोपदी के साथ इस व्रत को किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया |जैन धर्म में पर्युषण पर्व का आखरी दिन होता हैं | अनन्त चतुर्दशी मुख्य रूप से जैन धर्म का त्यौहार हैं | 

 

 

अनन्त चतुर्दशी व्रत पूजन विधि

प्रातकाल स्नानादि से निर्वत होकर पवित्र वस्त्र धारण करे | अक्षत , दूर्वा , शुद्ध सूत की कुकडी से बने रक्षा सूत्र को हल्दी की गाँठ से रंगे हुए चौदह गांठ युक्त रक्षा सूत्र को सामने रखकर अनन्त स्वरूप भगवान विष्णु की गन्ध , पुष्प , धुप , दीप पूजन कर कथा सुने | भगवान श्री हरी को नेवैद्ध्य [ प्रसाद ] अर्पित करे | नेवैद्ध्य का आधा भाग ब्राह्मण को देवे आधा प्रसाद रूप में स्वयं ग्रहण करे | रक्षासूत्र को महिलाये अपने बांये हाथ पर तथा पुरुष अपने दाहिने हाथ पर बांध लेवे | रक्षा सूत्र बंधने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना चाहिए |

  

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा

सत्ययुग में सुमुन्तुनाम के एक मुनि थे | सुमुन्तु मुनि ने अपनी कन्या का विवाह कौडिन्य मुनि से कर देते हैं | उनकी पत्नी शिला अनन्त व्रत का पालन किया करती थी अत: विवाह के उपरान्त भी वह अनन्त भगवान का पूजन कर रक्षासूत्र बांधती हैं | व्रत के प्रभाव से शिला का घर धन धान्य से परिपूर्ण हुआ | परन्तु एक दिन कौड़ीन्य मुनि की द्रष्टि पत्नी के हाथ पर बंघे अनन्त सूत्र पर पड़ी और एश्वर्य के  मद में चूर कौडिन्य मुनि ने अनन्त भगवान का रक्षासूत्र तौड दिया और आग में डाल कर जला दिया | अनन्त रक्षा सूत्र तौड़ने के जघन्य कर्म के कारण उनकी सारी सम्पति नष्ट हो गई | अत्यन्त दीन – हीन हालत में अपना समय गुजारने लगे | कौड़ीन्य मुनि ने अपने पापों का प्रायश्चित करने का निश्चय कर अनन्त भगवान की खोज में वन चले गये | कौड़ीन्यमुनि को जो कोई भी रस्ते में मिलता मुनि अनन्त भगवान का पता पूछते हैं | कई दिनों तक भूखे प्यासे कौड़ीन्य मुनि अनन्त भगवान को खोजते रहे पर प्रभु कही नहीं मिले |अंत में कौड़ीन्यमुनि ने अपना धीरज खो दिया और अपने प्राण त्यागने को उद्धत हुए | तभी अनन्त भगवान ने ब्राह्मण का रूप धारण कर कौड़ीन्यमुनि को गुफा में ले गये और अपने विराट रूप में दर्शन दिए |

भगवान ने मुनि को कहा – तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया यह सब उसी का फल हैं | इसके प्रायश्चित के लिए तुम्हे निरंतर चौदह वर्ष तक अनन्त चतुर्दशी व्रत का पालन करो | इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पति तुम्हे पुन: प्राप्त होगी और तुम स्वयं संसार में पुत्र पौत्र का सुख भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करोगे | प्रभु आज्ञा से कौड़ीन्यमुनि ने घर आकर पत्नी शिला के साथ चौदह वर्ष तक अनन्त चतुर्दशी व्रत का पालन किया और खोई हुई सम्पति प्राप्त कर धर्म के पथ पर चल कर मोक्ष को प्राप्त किया |

जो व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से विधिपूर्वक इस व्रत को करता हैं और अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा को सुनता हैं जीवन में सुख भोग कर अंत में श्री चरणों में स्थान प्राप्त करता हैं |

 

 

 

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा