दुर्गाशतनामस्तोत्रम
दुर्गाशतनामस्तोत्रम का नित्य पाठ करने मात्र से ही अदभुद सुख़ की प्राप्ति होती हैं | जीवन में जों भी कामना की हो पूर्ण हो जाती हैं | परम् कल्याण और उल्लास की स्वरूपा माँ भगवती को नवरात्रि के नौ दिन अत्यंत प्रिय हैं | नवरात्रि में की गई पूजा से माँ भगवती प्रसन्न होकर मन मनवांछित फल प्रदान करती हैं |
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दुर्गाशतनामस्तोत्रम
शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रनुष्व कमलानने | यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता सदा भवेत, ||
सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी | आर्या दुर्गा जया भद्रा त्रिनेवा शूलधारिणी ||
पिनाकधारिणी चित्रा चन्द्रघंटा महातपा: | मनोबुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चिति: ||
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी | अनन्ता भाविनी भव्या भवाभव्या सदागति: ||
शम्भुपत्नी देवमाता चिन्तारत्नप्रिया सदा | सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ||
अर्पणा चैव पर्णा च पाटला पटलावती | पीताम्बरपरिधाना कलमंजीररजिज्नी ||
अमेया विक्रमा क्रूरा सुन्दरी कुलसुन्दरी | वनदुर्गा च मातंगी मतंगमुनिपूजिता ||
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा | चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मी च पुरुषाकृति: ||
विम्लोत्कषिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च वाक्प्रदा | बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ||
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी | मधुकैटभहन्त्री च चंडमुंड विनाशिनी ||
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी | सर्वशांतमयी विद्धा सर्वास्त्रधारिणी तथा ||
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रविधारिणी | कुमारी चैव कन्या च कौमारी युवती यती: ||
अप्रोढा चैव प्रोढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा | महोदरी मुक्तकेशी घोररुपा महाबला ||
अग्निज्वाला रोद्र्मुखी कालरात्रिस्तपसिवनी | नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ||
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी | कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मावादिनी ||
य इन्द्र च पठेत् स्त्रोत्रं दुर्गानामशताष्टकम | नासाध्यं विद्यते देवी त्रिषु लोकेषु पार्वति ||
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तीनमेव च | चतुर्वर्ग तथा चान्ते लभेन्मुक्ति च शाश्रचितिम ||
कुमारी पूजयित्वा च ध्यात्वा देवी सुरेश्रचरीम | पूज्यते परया भवत्या पठेन्नामशताष्टकम ||
तस्य सिद्धिभर्वददेवी सर्वे: सुरवरेरपि | राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रीयमवाप्रयात ||
गोरोचनालक्तककुकुमेन सिंदूरकर्पूरमधुन्नयेण | विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत सदा धारयते पुरारि: |
भौमावास्यानिशाम्ग्रे चन्द्रे शतभिषा गते | विलिख्य प्रपठेत स्त्रोत्रं स भवेत सम्पदाम्पद्म||
{ इति श्री दुर्गाशतनामस्तोत्रम }
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