श्री पंचमी व्रत कथा व्रत पूजन विधि

 श्री पच्चमी व्रत श्री पञ्चमी व्रत किस विधि से किया जाता

है? कब से प्रारम्भ करना चाहिए। और पारण

विधि –

श्री पंच्चमी व्रत मार्गशिर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पच्चमी तिथि

को किया जाता है।
श्री पंञ्चमी व्रत विधि – प्रातःकाल स्नानादि से निर्वत होकर व्रत

उसके बाद माँ भगवती लक्ष्मी का पूजन करे ।

का नियम (संकल्प) ग्रहण करना चाहिए हित पितृ तपर्ण और पूजन करे । माँ लक्ष्मी कि कमल के आसन पर विराजमान हाथ में कमल पुष्प धारण किये हुए हो तो अति उत्तम है।

भगवती लक्ष्मी को आभूषणों से सजाएं चुन्दडी ओढ़ाये।
 निम्नलिखित मन्त्रों से माँ भगवती लक्ष्मी का पूजन करे :-

ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि, ॐ -पच्चलायै नमः जानुनी पूजयामि, ॐ कमलवासिन्यै नमः कटि पूजयामि, कँ ख्यात्यै नमः नाभि पूजयामि, ऊँ मन्यथवासिन्यै नमः स्तनौ पूजयामि ॐ ललितायै नमः भुजद्वयं पूजयामि, ॐ उत्कण्ठितायै नमः कण्ठ पूजयामि, ऊँ माधव्यै नमः मुखमण्डल पूजयामि तथा ॐ प्रिये नमः शिरः पूजयामि ।

आदि मन्त्रों से माँ भगवती लक्ष्मी जी कि चरण से लेकर सिर तक पूजन करे। धूप, दिप, पुष्प, पुष्प, कुमकुम, वैध्य से देवी का पूजन करे। अंकुरित थान तथा नैवेध्य से देवी को भोग लगाये। पुष्प तथा कुमकुम से सुहागिन स्त्रियों का पूजन करे। इस व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियों के पुजन व भोजन करवाने से कृपा प्राप्त होती है। ब्राह्मण को घी  तथा-चावल से भरा पात्र दान करना चाहिए।
 स्वयं भोजन करे।

प्रत्येक माह  कि पच्चमी को यह व्रत करना चाहिए। 

श्री पंचमी व्रत के दिन माँ लक्ष्मी के इन बारह नामों का जप करे — श्री, लक्ष्मी, कमला, सम्पत, रमा, नारायणी, पद्मा, धृति स्थिति ,पुष्टि, ऋद्धि, सिद्धि  ।

जमीन पर शयन करे।

 इस व्रत के  दिन अनावश्यक नहीं बाल मौन व्रत रखे ।

इस विधि से जो व्रती श्री पच्चमी व्रत करता है वह अपने पितृ जनों के साथ लक्ष्मी लोक में निवास करते हैं। जो सौभाग्यवति स्त्री इस व्रत को करती है वह अपने पति को अत्यन्त प्रिय होती है।

श्री पंचमी व्रतकथा

प्राचीन समय में भृगु मुनी पत्नी जिनका नाम ख्याति था | उनसे देवी लक्ष्‌मी का जन्म  हुआ। भृगु मुनि  ने श्री विष्णु भगवान के साथ देवी लक्ष्मी का विवाह कर दिया | देवी  लक्ष्मी भी भगवान विष्णु के साथ अत्यन्त प्रसन्न थी। चारों तरफ खुशहाली छा  गई । ब्राह्मण वैदिक मन्त्रों से पूजन करने लगे |

देवताओं के एश्वर्य को देखकर दानव भी लक्ष्मी को पाने के लिए जप तप और घौर तपस्याऔर यज्ञ करने लगे | इस तरह चारो और शांति हो गई | कुछ समय पश्चात देवताओ को लक्ष्मी प्राप्ति का घमंड हो गया | देवताओ के घमंड में चूर होने केकारण उत्तम आचरण समाप्त होने लगे | देवताओ के घमंड आते ही देवी लक्ष्मी दानवो पर प्रसन्न होकर दानवो के पास चली गई | और समस्त देवता श्री विहीन हो गये | दैत्य लक्ष्मी को पाते ही चारो और हाहाकार मच गया दानव सब पर अत्याचार करने लगे | दानव स्वयं को ही परमेश्वर मानने लगे | यह सब देखकर देवी लक्ष्मी स्वभाव से ही चंचल जहा अशांति हो वहा एक पल भी नहीं रूकती इसलिए लक्ष्मी क्षीर सागर में चली गई | देवी लक्ष्मी  के क्षीर सागर में जाते ही तीनो लोको में हाहाकार मच गया |

 

 

तब समस्त देवगण देवगुरुबृहस्पति की शरण में गये और लक्ष्मी को पुन: पाने का उपाऊ पूछा तब देवगुरु ने देवताओ से कहा की श्री पंचमी व्रत नियम पूर्वक करने से लक्ष्मी को वापस प्राप्त क्र सकते हैं | देवताओ को व्रत करता देखकर दानव , यक्ष , ब्राह्मण , समस्त संसार के जिव इस महान कल्याणकारी व्रत को करने लगे | व्रत के प्रभाव से उत्तम तेज और बल पाकर समुन्द्र मंथन किया और अमृत और लक्ष्मी को प्राप्त किया | भगवान विष्णु जी को लक्ष्मी , देवराज इंदर को एश्वर्य , राजाओ को अचल राज्य , ब्राह्मणों को जगत का कल्याण करने की शक्ति , दानवो ने तामसिक भाव से व्रत किया इसलिए उन्हें एश्वर्य पाकर भी वे एश्वर्य विहीन हो गये | इस व्रत के प्रभाव से संसार लक्ष्मी युक्त हो गया | व्रत के दिन कहानी सुने बिना व्रत सम्पूर्ण नहीं होता हैं ||

जय माँ लक्ष्मी ||

|| जय श्री विष्णु भगवान ||

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