हरकाली व्रत कथा

हरकाली व्रत ● किस माह में किस दिन किया जाता है इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है? यह हरकाली देवी कौन है ?

हरकाली व्रत यह व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष कि तृतीया तिथि को किया जाता है।

हरकाली व्रत का फल ⇒ जो स्त्री अथवा पुरुष विधि पूर्वक हर साल इस व्रत को करता है। वह आरोग्य, दिर्घायूँ (लम्बी आयु अखण्ड सौभाग्य, पुत्र, पौत्र, पुत्री, पौत्री, धन, बल, ऐश्वर्य को सहज ही प्राप्त कर लेता है।

हरकाली देवी कौन है? → महाराज दक्ष प्रजापति की एक कन्या हरकाली देवी है।

हरकाली व्रत पुजन विधि

→ ब्रह्म मुहुर्त में जागकर स्नानादि से निर्वत होकर नवीन वस्त्र धारण करे।

व्रत का नियम ग्रहण करे। हरि दुर्वा पर भगवती हरकाली कि प्रतिमा स्थापित करे।

गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, मोदक, हलवा अमरनैवेध्य से देवी भग

हरकाली का पूजन करे। रात्री जागरण कर माँ भगवती के भजन, मन्त्र गाये

नाच गान करे। देवी को बारम्बार प्रणाम करें।

प्रात: काल सुहागिन स्त्रियों पवित्र तालाब में प्रतिमा का विसर्ज करे –

 हरकाली व्रत कथा

हरकाली नाम वाली प्रजापति दक्ष की कन्या थी। उस कन्या का वर्ण नील कमल के समान काला था। भगवती काली

का विवाह भगवान शंकर से हुआ | इसलीए के हरकाली के नाम से विख्यात हुई। विवाह के बाद देवादिदेव शिव व माँ काली प्रसन्नता से रहने लगे। एक दिन भगवान शिव मे भगवान विष्णु जी के साथ बैठे थे। उस समय शिवजी ने हँसकर भगवती काली को बुलाया और कहा- हे प्रिय गोरी यहाँ आयो । शिवजी के ऐसे वचन सुनकर भगवती काली क्रोधित हो गई और रोने लगी। भगवती काली ने कहा मेरा वर्ण काला है। इसलिए आपने मुझे गौरी कहकर मेरा परि किया है। अत: मैं इस देह का त्याग करूगी। भगवान शिवजी ने रोकने का प्रयास किया परन्तु वे सफल नहीं हुए। भगवती • काली ने अग्नि में प्रवेश कर अपनी देह का त्याग किया। और पुन: राजा हिमाचल के घर में जन्म लेकर गौरी नाम से शिवजी के नाम भाग में विराजमान हुई। इसी दिन से भगवती हरकाली नाम से संसार का कल्याण करने लगी।

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