दशामाताऔर  दियाडा बाव्जी की कथा

दशामाता और दियाडा बाव्जी की कथा एक ब्राह्मण नित्य भिक्षा मांगकर जीवन यापन करता था | उसकी आजीविका का एकमात्र यही साधन था | वह एक गाँव जाता तब भी एक सेर बाजरी लाता और चार गाँव जाता तब भी एक सेर बाजरी लाता | ऐसे करते करते बहुत समय गुजर गया | एक दिन ब्राह्मणी बोली पतिदेव आप एक गाँव जाते हैं तब भी एक सेर बाजरी लाते है और चार गाँव जाते हैं तब भी एक सेर बाजरी लाते हैं ऐसे तो केसे काम चलेगा अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं | आप थौड़ा आगे और क्यों नहीं जाते जिससे कोई नई चीज मिले | ब्राह्मण को पत्नी की बात सही लगी |

 

दुसरे दिन जल्दी उठकर पत्नी ने खाना बना कर साथ बांध दिया | ब्राह्मण जल्दी सुबह ही निकल गया | ब्राह्मण चलता गया चलते चलते जंगल आ गया | उसे कुछ नही मिला | वह एक मन्दिर में पीपल के पेड़ के निचे बैठ गया | खाना खाया | वहा माताजी और दियाडा बाव्जी चौपड़ पासा खेल रहे थे | माताजी ने कहा हमारी जीत हार की साख कौन भरेगा | तो दियाड़ा बाव्जी ने पूछा ब्राह्मण हमारी जीत हार की साख भरेगा क्या | तो ब्राह्मण ने हा भर ली और खेल देखने लगा | उसने सोचा माताजी तो इतने सारे गहने पहनी हैं कुछ ना कुछ तो अवश्य देगी | मुझे माताजी को जीताना चाहिए | और ब्राह्मण ने कहा माताजी जीती हैं | माताजी ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को सोने की मुदडी दे दी | ब्राह्मण ने सोचा अब तो घर जाना चाहिए समय भी बहुत हो गया हैं | ब्राह्मण घर जाने लगा रस्ते में उसे प्यास लगी वह एक बावड़ी के पास रुका मुदडी वही रख कर पानी पिने लगा पानी पीकर देखा तो मुंदडी नही थी क्यों की एक मछली मुंदडी निगल गई थी |

 

ब्राह्मण चिता करने लगा | उदास मन से घर आ गया | आते ही पत्नी ने पूछा क्या लाये तो ब्राह्मण ने नहीं में गर्दन हिला दी | ब्राह्मणी ने कहा चिंता मत करो कल फिर जाना कुछ न कुछ तो अवश्य मिलेगा | ब्राह्मणी जल्दी उठी और ब्राह्मण के लिए पुडी बना कर बांध दी | ब्राह्मण उसी मन्दिर में गया पीपल के पेड़ के नीचे बैठा | पुड़ी खाई |  वहा माताजी और दियाडा बाव्जी चौपड़ पासा खेल रहे थे | माताजी ने कहा हमारी जीत हार की साख कौन भरेगा | तो दियाड़ा बाव्जी ने पूछा ब्राह्मण हमारी जीत हार की साख भरेगा क्या | तो ब्राह्मण ने हा भर ली और खेल देखने लगा | उसने सोचा माताजी ने कल अगुठी दी थी वो तो खो गई पर माताजी आज भी कुछ तो देगी | मुझे माताजी को जीताना चाहिए | और ब्राह्मण ने कहा माताजी जीती हैं | माताजी ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को हीरे से जडित कंगन दे दीये | ब्राह्मण ने सोचा आज तो में रास्ते में कहि नहीं रुकुगा सीधा घर जाऊँगा | ब्राह्मण घर पहुचा ब्राह्मणी | ब्राह्मणी पानी लेने गई हुई थी |

 

 

ब्राह्मण ने कंगन चूल्हे के पीछे रखे और बाहर चोपाल पर  चला गया | इतने में एक पड़ोसन चूल्हे की आग लेने आई उसने देखा घर में कोई नहीं हैं वह चूल्हे के पीछे रखे कंगन भी ले गई | ब्राह्मणी पानी लेकर आये ब्राह्मण भी आ गया | ब्राह्मणी बोली क्या लाये पतिदेव | पति ने चूल्हे के पीछे देखा तो कुछ भी नही था | उसने सोचा आज कंगन कहा चले गये | उसने ब्राह्मणी को मना कर दिया | ब्राह्मणी नाराज हुई पहले एक सेर बाजरी तो लाते थे अब तो कुछा नहीं ला रहे अब में क्या करू | कल और जाना कुछ तो मिलेगा | ब्राह्मणी ने पड़ोसन से उधार आटा लाकर तीसरे दिन भी ब्राह्मण के लिए पुडी बना दी | ब्राह्मण सुबह जल्दी जल्दी चला | उसी मन्दिर में गया | पुड़ी खाई |  वहा माताजी और दियाडा बाव्जी चौपड़ पासा खेल रहे थे | माताजी ने कहा हमारी जित हार की साख कौन भरेगा | तो दियाड़ा बाव्जी ने पूछा ब्राह्मण हमारी जीत हार की साख भरेगा क्या | तो ब्राह्मण ने हा भर ली और खेल देखने लगा | उसने सोचा माताजी ने कल सोने के कंगन दिए थे | वो तो घर से ही कोई ले गया | पर माताजी आज भी कुछ तो देगी | मुझे माताजी को जीताना चाहिए | और ब्राह्मण ने कहा माताजी जीती हैं | माताजी ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण सवा लाख का हार दे दीया | ब्राह्मण घर पहुचने ही वाला था इतने में एक चील आई और सवा लाख का हार ले गई | ब्राह्मण चिंता करने लगा आज तीन दिन हो गये कुछ नहीं मिला जो मिला वह भी लुट गया अब में ब्राह्मणी को क्या बोलूँगा घर आया ब्राह्मणी ने पूछा आज कुछ मिला क्या ? ब्राह्मण ने नही कह  दिया | ब्राह्मणी ने क्या बात हैं मुझे सारी बात बताओ ब्राह्मणी जिद्द करने लगी तब ब्राह्मण ने सारी बात बताई की एक माताजी और दियाडा बाव्जी चौपड़ खेलते हैं और मेने जीत हार की साख भरी माताजी ने खुश होकर मुझे मुदडी , सोने के कंगन , सवा लाख का हार दिया और सारी बात पत्नी को बताई तो पत्नी ने कहा आप कल फिर जाना और दियाडा बाव्जी को जिताना क्यों की नर की कमाई में ही रिद्द सिद्ध होती हैं नारी की कमाई में नही |  ब्राह्मणी फिर पड़ोसन से उधार आटा लाकर चौथे दिन भी ब्राह्मण के लिए पुडी बना दी |

 

 

ब्राह्मण सुबह जल्दी जल्दी चला | उसी मन्दिर में गया | पुड़ी खाई |  वहा माताजी और दियाडा बाव्जी चौपड़ पासा खेल रहे थे | माताजी ने कहा हमारी जीत हार की साख कौन भरेगा | तो दियाड़ा बाव्जी ने पूछा ब्राह्मण हमारी जीत हार की साख भरेगा क्या | तो ब्राह्मण ने हा भर ली और खेल देखने लगा | वह सोच रहा था दियाड़ा बाव्जी के पास तो देने के लिए कुछ नही हैं पर ब्राह्मणी ने कहा हैं तो आज तो मै दियाड़ा बाव्जी को ही जीताउंगा | खेल पूरा हुआ | ब्राह्मण बोला आज तो दियाडा बाव्जी जीते हैं | तो दियाडा बाव्जी ने कहा ब्राह्मण आज तो तेरे फेसले में चुक हो गई | ब्राह्मण बोला नहीं बाव्जी आज तो आप ही जीते हैं | तब दियाडा बाव्जी ने एक टका ब्राह्मण को दे दिया | ब्राह्मण ने सोचा इससे तो कुछ नहीं आएगा | ब्राह्मण वहाँ से घर जाने गया और एक टका वही रख कर पास ही के एक मन्दिर में जाकर बैठ गया | ब्राह्मणी घर आती हैं देखती हैं |

 

चील सवालाख का हार गिरा कर चली गई | पड़ोसन आती हैं और कहती हैं की ये ले ब्राह्मणी तेरे कंगन में एक दिन तेरे से मजाक करने के लिए ले गई थी पर तू तो लेने ही नही आई | ब्राह्मणी ने कंगन ले लिए | एक मछली वाली आई और मुंददी दे गई | ब्राह्मणी  कंगन बेच के बहुत सारे खाने पीने के सामान ले आई और लापसी चावल बना कर बच्चो को बोली जावो पिताजी को बुला कर लावो बच्चे पिताजी को बुलाकर लाये ब्राह्मण ने सोचा आज तो मेरी खेर नहीं पर घर तो आना ही था सो घर आ गया | आकर देखता हैं जिस कोने में दियाडा बाव्जी का दिया टका डाला था वहां हीरे मोती जगमगा रहे | ब्राह्मणी बोली अपने तो दियाडा बाव्जी और माताजी की कृपा से अन्न धन के भंडार भरे हैं | ब्राह्मण परिवार सहित दियाडा बाव्जी व दशामाता का पूजन कर धन्याद किया | हे माताजी दियाडा बाव्जी जैसे आपने ब्राह्मण ब्राह्मणी के अन्न धन के भंडार भरे वैसे सबके भरना |

 

||जय बोलो दियाडा बाव्जी की जय ||

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