माँ सीताजी का देवी अनसूया से मिलना और अनुसूया जी के द्वारा पतिव्रत धर्म का उपदेश
देवी सीता और देवी अनुसूया की कथा परम् शीलवती और विन्रम सीताजी ऋषि अत्री की भार्या अनसूया जी चरण पकड़ कर उनसे मिली | ऋषिपत्नी के मन में अत्यंत सुख की अनुभूति हुई | देवी अनसूया ने प्रेम पूर्वक सीताजी को आशीष प्रदान कर अपने पास बिठा लिया और माँ सीता को दिव्य वस्त्र और आभुषण पहनाये जो नित्य नवीन और निर्मल स्वच्छ रहेंगे वो वस्त्र और आभुषण कदापि मलिन नहीं होंगे | फिर ऋषि पत्नी अनसूया ने सीता जी को मधुर और कोमल वाणी से स्त्रियों के हित के लिए उपदेश दिया | हे देवी सीता ! सुनिए – माता पिता और भाई सभी हित चाहने वाले हैं | परन्तु वे सब स्त्री के जीवन में कुछ समय तक ही सुख देने वाले हैं | परन्तु हे जानकी ! पति तो जीवन साथी हैं सुख और दुःख दोनों का साथी हैं | वह स्त्री अभागी हैं जो विपत्ति के समय में अपने पति की सेवा नहीं करती |
धैर्य , धर्म , मित्र और स्त्री इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है | वृद्ध , रोगी , मुर्ख , अँधा , बहरा , क्रोधी और अत्यंत दीन ऐसे ही पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर की भातिं दुःख प्राप्त करती हैं | तन , मन , धन से पति की सेवा करना यही पत्नी का परम कर्तव्य हैं | रामायण में चार प्रकार की पतिवर्ता स्त्रियों का वर्णन हैं | वेद , पुराण , और ज्ञानी जन के खे अनुसार उत्तम श्रेणी की पतिव्रता स्त्रियों के मन में पति को परमेश्वर का स्थान होता हैं | उनके लिए उनका पति ही सर्वश्व होता हैं | मध्यम श्रेणी की पतिव्रता स्त्रियाँ पराये पुरुष को पिता , भाई अथवा पुत्र के समान मानती हैं | जो धर्म और समाज और कुल की मर्यादा को अपना धर्म मानती हैं | और जो स्त्री भय वश पति को सम्मान प्रदान करती हैं उस स्त्री को अधम माना हैं | जो स्त्री अपने पति को धोखा देनें वाली तथा पराये पुरुष से रति करती हैं वह स्त्री सौ कल्प तक नरक में निवास करती हैं | जो स्त्री पति सेवा करती हैं वह शुभ गति को प्राप्त करती हैं |
हे सीता ! सुनों , तुम्हारा नाम लेकर युगों युगों तकस्त्रिया पतिव्रत धर्म का पालन करेगी | माँ सीता के हृदय को अनसूया जी का उपदेश सुनकर परम् सुख की प्राप्ति हुई |
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