शिवपुराण के अनुसार गणेशोत्पति की कथा

shivPuraan Ke Anusar Ganesh Bhagwan Ki Janm Katha

 शिवपुराण भगवती पार्वती की दो सखिया थी एक जया और दूसरी विजया उन्होंने माँ पार्वती से कहा – “ हे सखी “ ये सभी रूद्र गण हैं जो प्रभु की आज्ञा में सदैव तत्पर रहते हैं | असंख्य गणों में भी हमारा कोई नहीं हैं ये सभी रूद्र गण शिव की अनन्य भक्ति के कारण ही यहाँ उपस्थित हैं |वे सभी हमारे साथ हैं परन्तु आप हम सभी के लिए भी एक गण की रचना कर दीजिये | माता पार्वती ने सखियों की बातें सुन कर मन ही मन विचार करने लगी |

एक दिन की बात हैं | माँ पार्वती स्नानागार में थी | भगवान शिव अपनी प्राण प्रिया से मिलने गये उस समय माता स्नान कर रही थी | नंदी ने भगवान से निवेदन किया परन्तु  नंदी के निवेदन को अनदेखा कर भगवान शिव सीधे स्नानागार में चले गये | माँ पार्वती  यह देख मन ही मन बहुत दुखी हुई और चकित हो गई |  तब माता ने मन ही मन विचार किया कीमेरी सखिया जया विजया ठीक ही कह रही थी |यदि शिव प्रिया ने मन ही मन विचार किया यदि द्वार पर मेरा कोई गण होता तो मेरे प्राण प्रिय स्वामी नहीं आ पाते |इन गणों  पर मेरा सम्पूर्ण अधिकार नही हैं इस प्रकार विचार कर मन ने अपने उबटन के मेल से एक चैतन्य बालक का निर्माण किया वह शुभ लक्षणों से युक्त था उसके सभी अंग दोष रहित एवं सुन्दर थे उसका वह शरीर गौरवर्ण सुन्दर विशाल और अतुल्य पराक्रम से सम्पन्न था | माँ भगवती ने अपनी मन्त्र शक्ति से उसमें प्राण डाले और आशीर्वाद दिया और कहा – आज से तुम मेरे पुत्र हो तुम्हारे सिवा दूसरा मेरा प्रिय कोई नहीं हैं |

उस चेतन्य रूप बालक  ने माँ भगवती को प्रणाम किया और कहा – माता आपका प्रत्येक आदेश स्वीकार्य हैं |आप आज्ञा दे मैं सदैव आपकी आज्ञा का पालन करूंगा | देवी पार्वती ने कहा तूम  मेरे प्रिय पुत्र हो | एक दिन माता ने पुत्र  से कहा मेरे अन्त: पुर में किसी को मत आने देना इसका ख्याल रखना | इसके बाद माँ भगवती अपनी सखियों के साथ स्नान करने चली गई |

कुछ समय पश्चात भगवान शिव आये और माँ पार्वती से मिलने की इच्छा दे अंदर जाने लगे परन्तु दंडधारी  गजानंद  ने कहा माता स्नान कर रही हैं उनकी आज्ञा के बिना कोई भी अंदर नहीं जा सकता | मैं यहाँ माता का द्वार रक्षक हूँ |

भगवान शिव माता के प्रिय पुत्र से सर्वथा अंजान थे | वे उस हठी बालक पर क्रोधित हो गये और अपने गणों को आज्ञा दी औरयुद्ध शुरू हो गया परन्तु माता पार्वती के  सर्वगुण बलशाली पुत्र से कौन जीत सकता था | सभी गणों का तेज क्षीण हो गया | भगवान शिव का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था | इससे क्रोधित होकर भगवान के अपना त्रिशूल फेका जिससे माँ के प्रिय गजानंद पुत्र का सिर दूर कट कर गिर गया |

पुत्र का सिर कटते ही माँ भगवती क्रोधित हो गई और उन्होंने सहस्त्रों रोद्र शक्तियों को उत्पन्न कर दिया | सर्वत्र हाहाकार मच गया | देवता ऋषि मुनि समस्त स्रष्टि भयभीत हो गई | देवता ऋषि मुनियों देवगणों सप्त ऋषियों ने माँ की स्तुति की जिससे करुणा मयी माँ भगवती के  क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव ने समस्त देवगणों से कहा उतर दिशा की और जो भी बाजिव मिले उसी का मस्तक बालक के शीश पर लगाया जाए |

 

उत्तर दिशा में कुछ दुरी पर जाते ही एक गज मिला जिसके एक ही दन्त था उसका धड़ लगाया गया अभिमंत्रित जल से छिटका देवादिदेव महादेव की इच्छा से बालक में चेतना आ गई उस समय की शोभा अत्यंत निराली थी उसका वर्णन करना दुर्लभ हैं | सभी देवताओ ने प्रसन्न मन से आशीष प्रदान की और अपने अपने स्थान चले गये | भगवान शिव ने प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया और इस संसार में गणेश के नाम से विख्यात्त हुए |

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