द्रोपदी का  सत्यभामा को सती स्त्री के कर्तव्य की शिक्षा देना |

स्त्री के कर्तव्य  वैशम्पायन जी कहते हैं – जनमेजय ! जब पाण्डव तथा विद्वान् ब्राह्मण धर्म चर्चा कर रहे थे , उसी समय द्रोपदी और सत्यभामा भी एकांत स्थान पर बैठकर हास्य विनोद करने लगी | भगवान श्री कृष्ण की पटरानी सत्यभामा ने द्रोपदी से इस पूछा – ‘ शुभे ! तुम किस प्रकार पांड्वो के हृदय पर अधिकार रखती हो और तुम काया करती हो जिससे वे तुम पर कभी क्रोध नहीं करते | सखी ! क्या कारण हैं की वे तुम्हारा इतना सम्मान करते हैं |इसका रहस्य मुझे बताओं | जिससे सौभाग्य की वृद्धि हो और श्याम सुन्दर सदैव मेरे होकर रहे |ऐसा कहकर सत्यभामा शांत हो गई | तब महाभागा द्रोपदी ने इस प्रकार कहा – ‘ इस प्रकार का प्रश्न तुम्हारे जैसी साध्वी स्त्री के लिए कदापि उचित नहीं हैं | चूँकि तुम बुद्धिमती होने के साथ साथ स्याम सुन्दर की प्रियतमा भी हो |

जब पति को यह भान हो जाए की उसकी पत्नी उसे वश में करने के लिए मन्त्र तन्त्र और जड़ी बूटी का सहारा ले रही हैं उसका पति कभी भी उसके वश में नहीं होता हैं | हे सत्यभामा ! मैं स्वयं महात्मा पांड्वो के साथ जैंसा बर्ताव करती हूँ वह सब सच सच सुनती हूँ | सुनो – मैं अहंकार और काम क्रोध को छोडकर सदा पूरी सावधानी से सब पांड्वो की सेवा करती हूँ |

 

द्रोपदी का सत्यभामा मैं अपने मन को सदैव सेवा की इच्छा से अपने पतियों का मन रखती हूँ | कभी मेरे मुख से कतु वचन न निकले इसका सदैव ख्याल रखती हूँ | कहि खड़ी नहीं रहती , निर्लज्ज की तरह कसी और दृष्टि नहीं डालती , मैं सदैव सावधान रहती हूँ | पतियों के संकेत का सदैव अनुसरण करती हूँ | कुंती देवी के पांचो पुत्र ही मेरे पति हैं |वे सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी हैं चन्द्रमा के समान शीतल , महापराक्रमी ,  शत्रुओं को दृष्टि मात्र से ही पराजित करने की क्षमता रखने वाले हैं | मैं सदैव उनकी सेवा में लगी रहती हूँ |

मैं अपने स्वामियों तथा ब्राह्मणों उनके अनुचरो के भोजन के पश्चात ही स्वयं भोजन करती हूँ | पतियों के शयन के पश्चात ही स्वयं शयन करती हूँ |बाहरी कार्य सम्पन्न कर जब भी मेरे पति घर आते हैं मैं उस समय खड़ी होकर उनका अभिनन्दन करती हूँ तथा आसन और जल अर्पण कर उनके स्वागत सत्कार में लग जाती हूँ | मैं घर के सभी कार्य सफाई से करती हूँ स्वच्छता का भी विशेस ख्याल रखती हूँ | दुष्टप्रवृति के लोगो से मैं सदैव दूर रहती हूँ |आलस्य को कभी पास नहीं आने देती सैदेव पतियों की सेवा में लगी रहती हूँ |मैं कभी परिहास नहीं करती , अकेले भ्रमण नहीं करती , पुरुषो से वार्तालाप नहीं करती क्रोध का अवसर नहीं देती सदैव सत्य बोलती हूँ और प्री सेवा में लगी रहती हूँ | मेरे पतियो  के चित के अनुकूल ही मैं चलने का प्रयास करती हूँ | मेरे पतियों को जो प्रिय नहीं हैं उसका मैंने भी सदैव त्याग किया हैं | मेरी सासु माँ ने जो अपने परिवार के योग्य जो उपदेश मुझे दिया हैं उसी का पालन मैं करती हूँ |मैं यह मानती हूँ की पतियों के सानिध्य में रहना पतिव्रता स्त्रियों के लिए हितकर हैं | मेरी सास कुंती देवी पृथ्वी के समान क्षमा शील हैं मैं कभी उनकी निंदा नहीं करती औने खान पान व जरूरत की सभी वस्तुओ का ध्यान स्वयं रखती हूँ || महाराज युधिष्ठर के सभी ब्राह्मण जनों के भोजन का पूजन करती  हूँ | वैशम्पायन जी कहते हैं – जनमेजय ! द्रोपदी की ये धर्म युक्त बातें सुनकर सत्यभामा ने उस धर्मपरायण द्रोपदी का आदर करते हुए कहा – ‘ हे पांचाली मैं तुम्हारी शरण आई हूँ मैंने जो अनुचित प्रश्न किया उसके लिए क्षमा करे |

पतिदेव को अनुकूल करने का उपाय – पति की अनन्य भाव से सेवा

द्रोपदी बोली – सखी ! मैं स्वामी को अपनी और आकृषित करने के लिए एक उपाय बतला रहीं हूँ , जिसमे भ्रम , छल , कपट के लिए तनिक भी स्थान नहीं हैं |यदि कोई भी स्त्री इस मार्ग पर चलेगी तो सदैव अपने पति की प्रिय होगी |

हे सत्येभामा ! स्त्रियों के लिए अपने पति के समान कोई भी दूसरा देवता नहीं हैं | पति के प्रसन्न होने पर पत्नी की सभी मनोकामनाए पूर्ण हो जाती हैं | सेवा द्वारा प्रसन्न किये हुए पतियों से महान यश की प्राप्ति होती हैं |

सखी ! इस जगत में कभी सुख के द्वारा सुख नहीं मिलता पतिव्रता स्त्री दुःख उठाकर ही सुख प्राप्त करती हैं |तुम सौहार्द , प्रेम , सुन्दर वेशभूषा धारण , सुन्दर आसन , समर्पण , सुघन्धित पुष्प माला , उदारता , सुघन्धित द्रव्य एवं व्यवहार कुशलता से श्याम सुन्दर की निरंतर आराधना करती रहों |उनके साथ ऐसा बर्ताव करो जिससे वे यह समझ ले की सत्य भामा को मैं ही अधिक प्रिय हूँ यह समझकर तुम्हे ही हृदय से लगाया करे |

जब तुहे आभास हो की तुम्हारे प्रिय आये हिं तो तुम उनके सम्मान में खड़ी हो जाओं | जब भीतर आ जाये तो तो तुम यथोचित उनका सत्कार करों |उन्ही ये आभास हो जाये की सत्य भामा सम्पूर्ण मन ,कर्म ,वचन , से मेरी सेवा करती हैं | तुम्हारे पति के द्वारा जो कोई भी बात तुम्हे बताई जाये तुम उसे गोपनीय रखो | तुम सज संवर  सुघन्धित पुष्प से पूजा कर भगवान श्याम सुन्दर की आराधना करो | इससे तुम्हारे यश और सौभाग्य मेंवृद्धि होगी |तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे तथा शत्रुओं का नाश होगा |

इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अंतर्गत द्रोपदी सत्यभामा संवाद पर्व में द्रोपदी द्वारा स्त्री कर्तव्य कथन विषयक दो सौ चौतीसवां अध्याय पूरा हुआ ||२३४ ||

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