हस्त मुद्रा से करे सभी रोगों का इलाज

हस्त मुद्रा योग का ही एक भाग हैं |हस्त मुद्राये प्रभावशाली होती हैं | हस्त मुद्रा के निरंतर निश्चित समय पर करने से जटिल से जटिल बीमारियों का नाश होता हैं तथा शरीर में नई उर्जा का संचार होता हैं |हस्त मुद्रा से करे सभी रोगों का इलाज आज हम हस्त मुद्रा के द्वारा शरीर में होने वाले सभी रोगों से हमारे तन मन को स्वस्थ बनाने के लिए सभी मुख्य मुख्य हस्त मुद्रा करना सीखेगे और प्रतिदिन हस्त मुद्रा के द्वारा अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होकर हस्त मुद्रा करके बदलाब देखंगे |

प्रत्येक प्राणी का  शरीर अनन्त रहस्य मयी है। शरीर की अपनी भाषा है, जिसे करनेसे शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। हमारा शरीर पञ्च तत्त्वों के योगसे बना हुआ हैं |ये  पाँच तत्त्व  हैं-

(१) पृथ्वी

(२) जल

(३) अग्नि

(४) वायु

(५) आकाश

शरीरमें जब भी पांच तत्त्वोंका असंतुलन होता है तो हमारे शरीर में अनेक  रोग पैदा हो जाते हैं। यदि हम इनका संतुलन करना सीख जायँ तो बीमार हो ही नहीं सकते और  यदि  हम बीमार हो भी जायें तो इन तत्त्वोंको संतुलित करके अति शीघ्र  स्वस्थ हो सकते हैं |

हस्त मुद्रा से करे सभी रोगों का इलाज

हस्त मुद्राका अभ्यास करने  सभी रोगों का इलाजके अनुसार हाथ तथा हाथोंकी अँगुलियों और अँगुलियोंसे बननेवाली मुद्राओं को प्रतिदिन करके उत्तम स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त क्र सकते हैं  | हाथों की उंगलियों में पांचों तत्व होते हैं | हमारे ऋषि-मुनियोंने हजारों साल पहले हस्त मुद्रा के द्वारा  शरीर का इलाज करना  जन लिया था | मनुष्य एक बुद्दिमान प्राणी हैं | वह अपनी समझ से अपने लक्ष्य को प्राप्त क्र सकता हैं |

हस्त मुद्रा के अभ्यास के कुछ दिन में ही शरीर में परिवर्तन देखने को मिलेगा |

हस्त मुद्रा  के अभ्यास से तत्काल असर होता है |

जिस हाथमें ये मुद्राएँ बनाते हैं, शरीरके विपरीत भागमें उनका तुरंत असर होना शुरू हो जाता है।

इन हस्त मुद्राओं को करते समय बैठने का विशेष ध्यान रखना चाहिए |आप  वज्रासन, पद्मासन अथवा सुखासन में बैठ सकते हैं |

इन मुद्राओंको प्रतिदिन 30 से 35  मिनटतक करनेसे पूर्ण लाभ होता है।

यदि आप से अभ्यास एक बारमें न कर सके तो दो- तीन बार में भी क्र सकते हैं |

किसी भीहस्त मुद्राको करते समय जिन अँगुलियोंका कोई काम न हो उन्हें सीधा रखे।

इस अभ्यास के लिए ब्रह्म मुहूर्त का समय सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता हैं | इसे निरंतर बिना एक भी दिन छोड़े 21 दिन तक निरतर करके परिवर्तन देखे |

इससे बुद्धि और मन की शक्ति बढती हैं |

बीमारियों से बचने के लिए यह अदभुद उपाय हैं |लंबे समय तक अभ्यास करने से तनाव , अवसाद की समस्या सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाती हैं |

अनिंद्रा रोग पूर्ण रूप से ठीक हो जाता हैं | रात्रि में पर्याप्त सुख भरी नींद आती हैं |

वैसे तो हस्त मुद्राएँ अनेक  हैं पर कुछ मुख्य  मुद्राओं  वर्णन यहाँ किया जा रहा है, जैसे-

1  ज्ञान-मुद्रा

ज्ञान मुद्रा करने के लिए सुखासन में बैठ जाये |

अँगूठेको तर्जनी अँगुलीके सिरेपर लगा दे।

शेष तीनों अँगुलियाँ चित्रके अनुसार सीधी रहेंगी।

ज्ञान मुद्रा से लाभ — -स्मरण-शक्तिका विकास होता है  ज्ञानकी वृद्धि होती है |

पढ़नेमें मन लगता है |

मस्तिष्कके स्नायु  मजबूत होते हैं|

सिर-दर्द दूर होता है तथा अनिद्रा नामक रोग का नाश होता हैं |

स्वभावमें परिवर्तन होता हैं |

आध्यात्म शक्तिका विकास होता हैं |

क्रोध का नाश होता है।

ज्ञान मुद्रा करने से पहले सावधानी  – खान-पान हल्का व सात्विक हो |

पान , सुपारी, जर्दा इत्यादि का सेवन कदापि ना  करे।

अधिक ठंडे और अधिक गर्म  पदार्थोंका सेवन न करे।

 

 

 

2  वायु-मुद्रा

वायु  मुद्रा करने के लिए सुखासन में बैठ जाये |

तर्जनी अँगुलीको मोड़कर अँगूठेके मूलमें लगाकर हलका दबाये।

शेष अँगुलियाँ सीधी रखे।

वायु मुद्रा करने के लाभ ———   वायु शान्त होती है।

लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटनेके दर्द ठीक होते हैं।

गर्दनके दर्द, रीढ़ की हड्डी के रोगों में फायदा होता है।

वायु मुद्रा करते समय सावधानी     –  लाभ हो जानेतक ही करे।

 

आकाश मुद्रा 3 आकाश मुद्रा 3

 

(३) आकाश-मुद्रा

आकाश मुद्रा करने की विधि —  मध्यमा अँगुलीको अँगूठेके अग्रभागसे मिलाये।

शेष तीनों अँगुलियाँ सीधी रखे ।

आकाश-मुद्राकरने के लाभ — यह मुद्रा कान से समन्धित सभी बीमारियों  और  हड्डियोंकी कमजोरी दूर होती हैं |

हृदय रोगों में लाभकारी हैं |

आकाश मुद्रा करते समय सावधानिया    – भोजन करते समय एवं चलते- फिरते यह मुद्रा  का अभ्यास नहीं  करे।

हाथोंको सीधा रखे।

 

4  शून्य-मुद्रा

शून्य मुद्रा करने की विधि – मध्यमा अँगुलीको मोड़कर अंगुष्ठके मूलमें लगाये एवं अँगूठेसे दबाये।

शून्य मुद्रा का अभ्यास करने से लाभ – कानके सब प्रकारके रोग जैसे बहरापन  दूर होता हैं |

शब्द ध्वनी  साफ सुनायी देती हैं |

मसूढेकी पकड़ मजबूत होती है |

गलेके रोग एवं थायरायड रोगमें फायदा होता है।

 

 

 

 

5  पृथ्वी-मुन्द्रा

प्रथ्वी मुद्रा करने की विधि—अनामिका अंगुलीको अँगूठेसे लगाकर रखे ।बाकि सभी उगलिया सीधी रखे |

पृथ्वी-मुन्द्रा का अभ्यास करने से होने वाले लाभ |

शरीरमें चुस्ती फुर्ती , तेज आता  है।

दुर्बल व्यक्ति मोटा हो जाता हैं वजन बढ़ता है |

जीवनी शक्तिका विकास होता है।

यह मुद्रा पाचन प्रक्रिया को ठीक करती है|

सात्त्विक गुणोंका विकास करती है |

दिमाग शांत होता हैं मानसिक रोगों में लाभकारी हैं | |

विटामिनकी कमीको दूर करती है।

 

 

6  सूर्य-मुद्रा

सूर्य मुद्रा का अभ्यास करने की विधि- अनामिका अँगुलीको अँगूठेके मूलपर लगाकर अँगूठेसे दबाये ।

सूर्य मुद्रा का अभ्यास करने के लाभ —-शरीर संतुलित होता है|

वजन घटता है|

मोटापा कम होता है।

शरीरमें उष्णताकी वृद्धिहोती हैं |

मानसिक तनावमें कमीहोती हैं |

शक्ति का संचार होता हैं |

किसी भी प्रकार के कोलस्ट्रॉल कम  होता है।

यह मुद्रा मधुमेह [ सुगर ]  के दोषोंको दूर करता  है।

सूर्य मुद्रा का अभ्यास सावधानी – अधिक कमजोर व्यक्ति इसे न करे।

गर्मीमें ज्यादा समय तक नहीं  करे।

 

 

7 वरुण-मुद्रा

वरुण-मुद्रा का अभ्यास विधि – कनिष्ठा अँगुलीको अँगूठेसे लगाकर मिलाये।

वरुण-मुद्रा  का अभ्यास करने के लाभ    –   यह मुद्रा शरीरमें रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है|

त्वचा को  चमकीला  तथा मुलायम बनाती है।

इस मुद्रा का अभ्यास करने से चर्म- रोग, रक्त-विकार एवं जल-तत्त्वकी कमीसे उत्पन्न व्कोहोने वाले रोगों को  दूर करती है।

मुँहासोंको नष्ट करती और चेहरेको सुन्दर बनाती है।

वरुण-मुद्रा सावधानी – कफ प्रकृतिवाले इस मुद्राका प्रयोग अधिक –

न करें।

8  अपान-मुद्रा

अपान-मुद्रा के अभ्यास की विधि – मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियोंको अगुठे के अग्रभागसे लगा दें।

अपान-मुद्रा के अभ्यास के  लाभ – शरीर और नाडीकी शुद्धि होती हैं |

कब्ज की समस्या समाप्त हो जाती हैं

मल-दोष नष्ट होते हैं
बवासीर दूर होता है।

विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दोंके दोष, दाँतोंके दोष दूर होते हैं।

पेटके लिये यह मुद्रा अधिक उपयोगी है|

हृदय रोगमें फायदा होता है तथा यह पसीना लाती है।

हृदय रोग मुद्रा  के अभ्यास से सावधानी – इस मुद्रा से मूत्र अधिक लगेगा ।
भूख विधि—तर्जनी अँगुलीको अँगूठेके मूलमें लगाये तथा च मध्यमा और अनामिका अंगुलियोंको अँगूठेके अग्रभागसे के लगा दे।

हृदय रोग मुद्राअभ्यास केलाभ -जिनका दिल कमजोर है उन्हें इस मुद्रा का अभ्यास  प्रतिदिन करना चाहिये।

दिलका दौरा पड़ते ही यह मुद्रा करानेपर आराम होता है।

पेटमें गैस होनेपर यह उसे निकाल देती है।

सिर-दर्द में  लाभ होता है |

सीढ़ी चढ़नेसे पाँच-दस मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़े।

इससे उच्च रक्तचापमें फायदा होता है।

हृदय रोग मुद्राके अभ्यास में  सावधानी  – हृदयका दौरा आते ही इस मुद्राका आकस्मिक तौरपर उपयोग कर सकते हैं | ।

विधि-कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियोंकि अग्रभागको अँगूठेके अग्रभागसे मिलाये।

प्राण मुद्रा के अभ्यास में लाभ  –  यह मुद्रा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है | |

मनको शान्त करती है|

आँखोंके दोषोंको दूर करके ज्योति बढ़ाती है|

शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं |

विटामिनोंकी कमीको दूर करती है |

थकान दूर करके नवशक्तिका संचार करती  है।

लंबे उपवास-कालके दौरान भूख-प्यास नहीं लगती |

मुखं  और आँखों एवं शरीरको चमकदार बनाती है।

11  लिङ्ग-मुद्रा

लिङ्ग-मुद्रा के अभ्यास की विधि-  चित्रके अनुसार मुट्ठी बाँधे तथा बायें हाथ के अँगूठेको खड़ा रखे, अन्य अँगुलियाँ बँधी हुई रखे।

लिङ्ग-मुद्रा के अभ्यास से  लाभ  –  शरीरमें गर्मी बढ़ाती है।

सर्दी, जुकाम, दमा, खाँसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप  [ लो बी पि ] में लाभप्रद है|

कफ समन्धित रोग दूर होते हैं |

लिंग मुद्रा का अभ्यास सावधानी – इस मुद्राका प्रयोग करनेपर जल, फल, फलोंका रस, घी और दूधका सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए ।
इस मुद्राको अधिक लम्बे समयतक न करे |

 

 

हाकिनी मुद्रा 

हाकिनी मुद्रा को सुखासन में बैठकर दोनों हाथो से चारो उगलियों  व अगुठे के पारो से मिलाना हैं | इसे हृदय के सामने रखे |  धीरे से दबा क्र रखते हैं | उंगलियों के मध्य समान अन्तर रखे | कमर को शिधा रखे | गहरी लम्बी साँसे ले | शुरुआत कम से कम पांच मिनट तो करना ही हैं | इसको करने से चिंता स्तर को कम करता हैं | 

मुह बंद रखे |

उपर की और देखे |

जीभ को मसूड़े पर लगा क्र रखे |

आप ॐ का उच्चारण भी मन में क्र सकते हैं |

इसे 15 से 45 मिनट तक क्र सकते हैं |

विद्यार्थियों के लिए यह अत्यधिक लाभकारी हैं |

जब आप तनाव में हैं तो इसे अवश्य करे व लाभ उठाये |

शंख मुद्रा 

शंख मुद्रा लगाने के लिए अपने दाहिने हाथ को सामने रखे |

दाहिने हाथ के मध्य में बाये हाथ के अगुठे को रख क्र बाकि उगलिए से मुठ्ठी बंद क्र ले और दाहिने हाथ के अगुठे से बाये हाथ की मध्य उगली से लगा ले |

बाकी उगलियों को मध्य उगली से जोड़ दे |

इसका आकर शंख के समान हो जायेगा इसे हृदय के सामने रखे |

लंबी गहरी सासे ले |

प्रतिदिन प्रातकाल 15 मिनट से लेकर 45 मिनट तक करे |

कफ पर्वती लोगो को इसे नहीं करना चाहिए | 

गले समन्धित समस्याओं में लाभकारी है ]\

लीवर समन्धित समस्याओं में लाभकारी होती हैं |

गणेश मुद्रा

दोनों हथेलियों को कोहनी से मोड़ते हुए सीने के सामने रखें। एक हथेली का मुख ऊपर की तरफ और दूसरी हथेली का मुख जमीन की ओर रखें।

 दोनों हथेलियों को समानांतर रखते हुए चिपकाएं। .

दानों हाथों की उंगलियां इसी अवस्था में अंदर की तरफ मोड़ें। यह हुक जैसा प्रतीत होगा।

 हाथों को एक-दूसरे से कसकर पकड़ने के लिए हाथों को विपरीत

दिशाओं में खींचें।

 अंगूठे हथेलियों के किनारों पर रहने चाहिए। इसे हृदय चक्र पर रखें। सुनिश्चित करें कि आपकी रीढ़ सीधी है। आंखें बंद कर लें और सामान्य गति से सांस लें।

 हथेलियों के तालों को आपस में बदलकर भी ऐसा ही दोहराएं।

गणेश मुद्रा का अभ्यास का समय कितना होना चाहिए –

गणेश मुद्रा उठेते ही सबसे पहले करना चाहिए अर्थात दिन की शरुआत गणेश मुद्रा से करनी चाहिए | यह मुद्रा मन में आने वाले सभी नकारात्मक विचारो का नाश कर सकारात्मक उर्जा का संचार करते हैं | दिन की शुरुआत करने वाला पहला अभ्यास है। इस मुद्रा को 10-12 मिनट तक करें।

गणेश मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने के लाभ :-

इसका निरंतर अभ्यास करने से  ऊपरी बांहों और कंधों बलशाली होते हैं |

 यह छाती को फैलाती है और फेफड़ों को मजबूत बनाती  है।

तनाव और चिंता से होने वाले हृदय रोगों को दूर करने के लिए  बेहतरीन मुद्रा  है।

 यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करती हैं |

यह पाचन प्रक्रिया में अग्नि  तत्व लाकर शरीर के पाचन शक्ति  में सुधार करती है।

यह मुद्रा बुद्धि का विकास  करने के लिए एक अद्भुत अभ्यास है।

 यह एक सकारात्मक प्रतिज्ञान मुद्रा है जो हमारी इच्छा शक्ति को बढ़ाती हैं |

 सकारात्मक स्पंदन लाने और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए  शुरुआत में भी इसका अभ्यास करना चाहिए |

 

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