देवराज इंद्र के द्वारा वृतासुर का वध और असु रों में असुरक्षा का भाव|Devraj Indar Vritasur Ka Vadh Aur Asuron Ki Vartalap |

Devraj Indar Vritasur  Ka Vadh Aur Asuron Ki Vartalap

 देवराज इंद्र के द्वारा वृतासुर का वध और असुरों में असुरक्षा का भाव

 देवराज इंद्र के द्वारा वृतासुर का वध और असुरों में असुरक्षा का भाव राजन ! देवराज इंद्र के वज्र धारण करने के बाद देवताओं का असुरों के साथ भीषण युद्ध चला | जिसकी गर्जना तीनों लोको में सुनाई पड़ रही थी | अनेक असुरों ने भयंकर रूप धारण कर देवताओ पर प्रहार किया | तब समस्त देवताओं ने अपना अपना तेज देवराज इंद्र को प्रदान किया | वज्र के धारण करने से देवराज इंद्र सुरक्षित थे औए सभी देवताओं से प्राप्त तेज से अत्यंत बलशाली हो गये थे | देवराज इंद्र को बलशाली जान असुरो ने भयंकर गर्जना की |उसकी ध्वनी से तीनो लोको में हाहाकार मच गया | उस समय देवताओं का दुःख दूर करने के उद्देश्य से शक्ति से भरकर वृतासुर पर प्रहार किया | वज्र से आहत होते ही बल शाली वृतासुर पर्वत की बहती धरा पर गिर गया | वृतासुर के मरते ही समस्त असुर जाती भयभीत हो गई ,और समुन्द्र में छुप कर मन्त्रणा करने लगे की अब किस प्रयोजन के द्वारा देवताओं पर विजय पाई जा सकती हैं | सभी असुरो ने अपनी बुद्धि के अनुसार अलग अलग योजनाये बतलाई | तब समस्त असुरों ने निश्चय किया की देवताओं को ब्राह्मणों के द्वारा किये गये तप , हवन से शक्ति मिलती हैं अत पहले इनका विनाश करना चाहिए |

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