आस माता की पूजा विधि

आस माता का व्रत फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक किसी भी दिन कर सकते हैं | एक पट्टे पर जल का ताम्बे का कलश ,कलश पर चांदी का साठीया बनाये , अक्षत { चावल } मोली , कुमकुम से पूजा करे | गेहूं के दाने { आँखे } लेकर आस माता की कहानी सुने | हलवा पूरी , रुपया रखकर कलपना निकाल कर सासुजी को पाँव लग कर देवे | ऐसी मान्यता हैं की आस माता की पूजा व अर्चना करने से प्रसन्नता से हमारे सब कार्य पूर्ण हो जाते हैं | इससे सारे कष्ट दुर हो जाते हैं | यह व्रत विशेषकर स्त्रियों के लिए हैं , प्रथम सन्तान के होने के बाद इस व्रत को किया जाता हैं | इस व्रत के दिन महिलाये गोटीयो वाला मंगलसुत्र पहनकर इस पूजा को सम्पन्न करती हैं | इस व्रत में मीठा खाना चाहिये |

                         आस माता की कहानी

एक आसलिया था | वह जुआ खेला करता था | वह हारे या जीते आस माता के नाम ब्रह्म भोज करता था | एक दिन उसकी भाभियों ने कहा तुम हारो या जीतो दोनों में ही ब्रह्म भोज करते हो इतना धन कहाँ से आएगा | भाई भाभीयों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया | वह घर से निकल कर शहर चला गया और आस माता की पूजा करने बैठ गया |

आस माता की कृपा से सारे शहर में खबर फैल गई की शहर में एक जुआरी आया हैं तो यह सुनकर वहाँ का राजा आसलिया के साथ जुआ खेलने आया ,और आस माता की कृपा से राजा अपना सारा राज्य हार गया और आसलिया राजा बन गया और राज्य करने लगा | भाइ भाभीयों के घर में अन्न धन की कमी हो गई और अपने परिवार के साथ घर छोड़ आसलिया को ढूंढने लगे | शहर में पहुचने पर उन्होंने सुना की एक आदमी राजा से जुए में जीत गया | तब वह उसे देखने के लिए गये आसलिया ने देखते ही अपने परिवार को पहचान लिया | भाई भाभियों के परिवार के साथ ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगे और बहुत हर्षोल्लास से आस माता का उद्यापन कर दिया |

हे आस माता ! जैसा आसलिया को राजा बनाया वैसे सबको देना | कहानी कहने वालो को सुनने वालो सबको  आस माता का आशीर्वाद मिलता हैं |

|| आस माता की जय ||                          || आस माता की जय ||

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