पतिव्रता स्त्री की पद्मपुराण के अनुसार कथा 

तिल चौथ पर अवश्य सुने यह पौराणिक कथा 

 

 

पद्मपुराण में पतिव्रत शैव्या की कथा का विस्तार में वर्णन मिलता है। हिंदू पौराणिक ग्रंथ की इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में प्रतिष्ठानपुर नगर में एक कौशिक नामक ब्राह्मण रहता था। वह कोढ़ से पीढ़ित था। उसके रिश्तेदार उसे छोड़कर चले गए थे लेकिन उसकी पत्नी शैव्या अपने स्वामी का पूजन किया करती थी उनकी सेवा किया करती थी | सदैव उनकी आज्ञा का पालन किया करती थी |

कौशिक बड़ा ही  क्रोधी व असंतोषी था | उसका स्वभाव अच्छा नहीं था। वह शैव्या का अपमान करता उसका तिरस्कार करता | परन्तु शैव्या सुनती और कुछ नहीं कहती सदैव अपनी पति की आज्ञा का पालन करती | एक दिन शैव्या के पति ने वैश्या के पास जाने की इच्छा कहि | तिल चौथ की तिल कुट्टे की कहानी 

यह सुकर शैव्या को क्रोध नहीं आया बल्कि वह पहले उस वैश्या के घर गई। वैश्या ने उससे कहा आधी रात को अपने पति को मेरे घर ले आना। यह सुनकर शैव्या अपने घर लौट आई। शैव्या 

रात के समय अपने पति को कंधे पर उठाकर शैव्या वैश्या के घर के लिए चल पड़ी।  मार्ग में एक सूली थी जिस पर चोरी के संदेह में माण्डव ऋषि को उस पर चढ़ा दिया था। हालांकि ऋषि अपनी मंत्र शक्ति से बच सकते थे लेकिन वह बचपन में चीटियों को कांटे चुभोया करते थे। वह जानते थे की यह सजा उसी अपराध की सजा है।

वहां काफी अंधेरा था, जिसके चलते शैव्या के पति का पैर सूली से लग गया, जिससे सूली हिलने लगी और ऋषि का दर्द बढ़ गया। ऋषि ने शाप दिया, जिसने भी इस सूली को हिलाया है। सूर्य उदय होने से पहले उसकी मृत्यु हो जाए।

तब शैव्या बोली, ‘हे ऋषि मेरे पति का पैर अनजाने में आपकी सूली से लग गया है। कृपया श्राप  वापस ले लें।’ ऋषि ने मना कर दियाकी एक बार मुख से निकला हुआ वचन कभी असत्य नहीं होता । तब शैव्या बोली, ‘ऋषिवर आप श्राप  वापस ले लें अन्यथा कल सूर्य उदय नहीं होगा।’ इतना कहकर वह अपने पति को वैश्या के घर की ओर ले जाने लगी।पतिव्रता शैव्या के वचन के चलते सूर्य उदय नहीं हुआ। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। चारों तरफ हाहाकार  फैल गया । यह देख सभी देवतागण, ब्रह्माजी के पास पहुंचे। तब ब्रह्माजी ने कहा, शैव्या पतिव्रता स्त्री हैं और अब वह स्वयं इस अंधकार को दूर कर  सकती हैं | 

 

साक्षात्ब्र ह्माजी पतिव्रता नारी शैव्या के पास पहुंचे। शैव्या ने ब्रह्माजी को बताया कि हे देव अगर सूर्य उदय हुआ तो उसके पति की मृत्यु निश्चित हैं |। तब ब्रह्माजी बोले, तुम अपने वचन वापस ले लो, में तुम्हारे पति को स्वस्‍थ करके पुनः जीवित कर दूंगा। शैव्या ने ऐसा ही किया और अपने पति के प्राण भी बचा लिये। कौशिक ब्राह्मण स्वस्‍थ हो गया  और । इस तरह दोनों दंपत्ति सुखपूर्वक रहने लगे। जो स्त्री नियम धर्म से पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए नियम धर्म से जीवन भर अपने स्वामी के  आदेश का पालन करती हैं उसकी वाणी सदैव सत्य होती हैं | सभी चतुर्थी व्रत में पतिव्रता स्त्री की कहानी सुनने से मन कर्म वचन में शुद्धता आती हैं तथा पुण्यफल की प्राप्ति होती हैं | 

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