कथा

राजा दक्ष के यज्ञके समय जब रुद्रगण यज-ध्वंस करने को तैयार हुए, तब एक मयूर अर्थात मोर भागकर देवी सती की शर्तें आ गया । देवी सती ने उस मयूर को शरण दी। उसके बाद देवी सती ने योगा अग्नि में प्रवेश कर शरीर त्याग दिया। जब देवी सती ने शरीर त्यागा उस समय उनके मनमें उस मयूरका स्मरण था । इसलिए देवी मयूरी रूप में उत्पन्न हुईं। मयूरीरूपमें उन्होंने यहाँ भगवान शंकरकी कठोर तपस्या की। भगवान शिव प्रसन्न होकर स्वयं मयूरेश्वर-मूर्तिमें ही देवी सती को दर्शन दिए। और सदैव के लिए यही मूर्ति वहाँ प्रतिष्ठित हुई। स्वयं देवी सती ने मयूरी शरीर त्यागकर सतीने हिमालयके यहाँ पार्वती रूप मे जन्म लिया । मयूरको अभय दान देनेके कारण यहाँ देवी सती को अभयाम्बिका देवी के नाम से संसार में जानी जाती हैं। मद्रास में मायावरम स्टेशन पर प्रसिद्ध मयूरेश्वर मंदिर है। इस मंदिर में भगवान महेश्वर शिवलिंग रूप में विराजमान है मंदिर में ही माता पार्वती का मंदिर है माता पार्वती को अभयामबा नाम से जाना जाता है । जो भी भक्तजन श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान मयूरेश्वर महादेव और माता पार्वती का ध्यान करते हैं उनके समस्त कष्ट दूर होकर जीवन में सुख सम्मान समृद्धि धन वैभव का वास होता है । 

पराम्बा भगवती दुर्गा सदैव भक्तों पर अपनी कृपा बरसती है ।

 

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शिव चालीसा

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