लुम्बडिया जी की कहानी |
लोभिया जी की कहानी |
एक लोभिया था कठोर तपस्या करता था | एक पाँव पर खड़ा होकर कठिन तप करता था | उसने भगवान को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया | उसके शरीर पर चिड़िया ने घोसला भी बना लिया | तपस्या करते बारह बारह वर्ष हो गये | भगवान ने सोचा इसको इतना समय हो गया अब इसकी परीक्षा लेनी चाहिए | भगवान जानते थे यह बहुत लोभी हैं | इसलिए भगवान ने एक सोने की मुदडी उसके पाँव के पास फ़ेंक दी तब लोभिया की नजर उस मुदडी पर पड़ी तो उसने मुददी पाँव के निचे दबा ली | भगवान की माया से भला लौं बचा हैं | भगवान धरती पर आये और लोभिया से बोले |
लोभिया तेरी तपस्या में हीण हैं | तुखे इस तपस्या का फल नहीं मिलेगा | तब लोभिया ने अपनी गलती मानी और भगवान जी के चरण पकड़ लिए और पूछा हे भगवान इस तपस्या का हिण कैसे जायेगा | तब भगवान जी को उस पर दया आ गई और उन्होंने कहा यदि रोटी बना कर आखरी रोटी कुत्ते की नहीं बनाई तो फल तुझे मिलेगा | जिमा कर दक्षिणा नहीं दी ती फल तुझे मिलेगा | सब कहानी कथा सुण कर तेरी कहानी नहीं सुनी ती फल तुझे मिलेगा | तभी से सभी व्रत की कहानी सुनने के बाद लोभिया की कहानी सुनी जाती हैं |
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