दशा माता व्रत की कहानी

दशा माता चैत्र के महीने में कृष्ण पक्ष की रात में ब्राह्मण नगरी में सूत की कुकडी से बने  डोरे दे रहा था | रानी महल के झरोखे में बैठी थी | रानी ने दासी से कहा ब्राह्मण को बुलाकर पूछो की वह नगरी में काहे का डोरा दे रहा हैं | दासी ने पूछा तो ब्राह्मण बोला चेत्र कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशामाता व्रत हैं इसलिए  दशामाता व्रत  के डोरा नगरी में दे रहा हूँ |

रानी ने भी ब्राह्मण से  पूछा इस व्रत को करने से क्या होता हैं | तब ब्राह्मण ने कहा -इस व्रत को करने से अन्न , धन , सुख – सम्पति आती हैं |प्रतिदिन प्रात: स्त्रियाँ स्नानादि से निवर्त हो पूजन सामग्री ले कर दशामाता का पूजन करती हैं | एक पाटे [ चोकी ] पर पिली मिट्टी से एक दस  कंगूरे वाला गोला बनाती हैं |

फिर उन दस कगुरों पर रोली ,काजल , मेहँदी से टिकी [ बिन्दी ] लगा कर , उन पर दस गेहूं के आँखे रख कर , सुपारी के मोली लपेट कर गणेशजी बना कर रोली , मोली , मेहँदी , चावल से गणेश जी का पूजन कर दशामाता की कहानी सुनती हैं ऐसा प्रतिदिन दस दिन तक करती हैं |

जों सूत की कुकडी हल्दी की गांठ होलिका दहन में दिखाती हैं उसी कुकडी को दस दिन कहानी सुनाकर पूजन कर दस तार का डोरा बनाकर उस पर दस गांठ लगाकर  कहानी सुनने के बाद गले में पहन लेती हैं , अगली दशामाता व्रत तक पहने रहते हैं ,फिर नया डोरा बनाकर पूजन कर दूसरा सूत का डोरा पहन लेती हैं | इस दिन व्रत रखा जाता हैं एक ही समय भोजन करते हैं | फिर रानी ने ब्राह्मण से डोरा ले लिया 

दशामाता की पूजा कर डोरा अपने गले में  धारण कर लिया | | राजाजी नगर भ्रमण से आये रानी के गले में कच्चे सूत का डोरा पहने देखा पूछा ये गले में सूत  का डोरा क्यों  पहना हैं ? अपने तो शाही  ठाठ हैं | राजा ने रानी से डोरा  तोड़ दिया | रानी  डोरे को पानी में घोल कर पी गई |

 

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उसी दिन से राजा रानी की दशा खराब आ गइ  हो | राजा ने कहा की अब देश छोड़ कर कही चलो |  इस नगरी में कोई काम करेंगे तो अच्छा नहीं लगेगा | रानी ने ब्राह्मण की लडकी को पूजा करने व् पानी भरने को कह दिया नाइ की लडकी को सफाई के लिए कह दिया |  राजा और रानी देश छोड़ कर चले गये |आगे गये तो एक बुढिया माई दही बेच रही थी | राजा रानि ने दही वाली को बोला माई हमें दही दे दे | तभी माई के सिर से मटका गिरा और फुट गया | दही वाली राजा रानि को कोसने लगी |

आगे गये एक नगरी में विवाह हो रहा था | कुम्हार – कुम्हारिन चंवरी ले कर रहे थे , राजा व रानी बोले हम भी चले | इतना कहते ही उनके हाथ से चंवरी गिरकर टूट  गयी | राजा वहाँ से अपने मित्र के गाँव पहुंचा | वहाँ पर राजा को एक कमरा सोने के लिए दिया उस पर एक खूंटी पर नौ करोड़ का हार लटका था | उसे मोरनि निगल गई | राणी को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ की दखो मोर का बना हुआ चित्र ही हार निगल रहा हैं | राजाजी और राणी ने यह सोचा की अब यहाँ रहना उचित नहीं हैं | इसलिए वे रात्री में ही वहा से कहि दूसरी जगह जाने लगे |

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प्रात: राजा का  मित्र उठा तो उसकी ओरत बोली की आपका ऐसा मित्र आया जों मेरा हार चुराकर ले गया |  फिर मित्र ने अपनी औरत से कहा की ऐसी कोई बात नहीं हैं | उसकी दशा [ स्थिति ] खराब हैं | आगे गया तो रास्ते में बहन का गाँव आया | वह विश्राम करने के लिये उस गाँव की सरोवर की पाल पर बैठ गया | दासी ने देखा और रानी को जाकर बोली की आपके भैया भाभी सरोवर की पाल पर बैठे हैं | बहन ने पूछा की कैसे हाल में हैं | दासी ने कहा हाल अच्छे नहीं हैं | बहन बोली की उन्हें बोलना की वह वहीं रुके में वही आ रही हूँ |

रानी दासी के साथ वही भोजन ले गई भाई ने भोजन किया लेकिन भाभी ने खड्डा खोदकर वही गाड़ दिया | आगे एक गाँव आया वहा तितर उड़ रहे थे राजा ने तितर पकड़ा और रानी से कहा अब इन्हें सेक क्र खाते हैं | राजा ने तितर सके और सीके हुए तितर उड़ गये | राजाजी बोले हमारी बहुत ही खराब दशा आई हैं |आगे गये तो एक बाग़ आया वहाँ दोनों एक बगीचे में जाकर बैठे और बगीचा हरा हो गया | माली ने दोनों कहा तुम दोनों कौन हो ये बारह वर्ष का जला हुआ बाग़ हरा हो गया | 

रानी ने कहा हम यहा रुक सकते हैं क्या | रानी राजा बगीचे की रखवाली करने लगे | चैत्र का महीना आया रानी के सामने डोरे आने लगे | राणी ने राजाजी से कहा दशा माता के डोरा आ रहे है ले लू क्या | राजाजी ने कहा हे दशा माता यदि हमारे राज पाठ वापस मिल जायेंगे तो में आपको मानुगा | राणी ने विधिविधान से पूजा अर्चना क्र कहानी सुन दशा माता का डोरा पहन लिया | दशमाता की कृपा से 

पास के नगर में एक राजा की राजकुमारी का स्वयंवर था | माली को फूल लेकर जाना था | उसने राजाजी   को भी अपने साथ ले लिया | जब माली के साथ फूल  लेकर स्वयंवरमें गये तो राजकुमारी ने उन्हें माला पहना दी | आस पास के राजाओं ने बहुत विरोध किया | माली के साथ आये हुए को गोबर के परिन्डे में चुनवा दिया तब भी राजकुमारी ने उन्हें ही माला पहनाई | फिर राजकुमारी के पिता ने दो घौड़े मगवाये | भोटी तलवार दे दी और काट खाने वाला घोडा दे दिया | राजाजी के पीछे पीछे चल पड़ा | काटखानी तलवार तीखी हो गई और काटखान्या घोडा सही हो गया , राजाजी ने शेर का शिकार कर लिया | |

 

राजकुमारी के पिता ने गाजे बाजे से बहुत सारी धन दौलत देकर विदा किया |राजाजी ने बताया की मेरी एक और रानी हैं उसको साथ लेकर चलेंगे | राजाजी दोनों रानियों के साथ गाजे बाजे से चले तो दही बेचने वाली मिली राजाजी से बोली दही  ले लो | राजाजी बोले हम वही हैं जब हमारी दशा खराब थी अब अच्छी हो गई | दही वाली को बहुत सारा धन दे दिया |

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आगे गये कुम्हार का घर आया | वहाँ कुम्हार चंवरी लेकर जा रहा था | राजा रानी गये वैसे ही टुटा हुआ कलश वापस जुड़ गया | तब कुम्हार बोला थौडे दिन पहले एक राजा रानी आये थे चंवरी टूट गई | तब राजा बोला पहले भी हम ही थे तब हमारी दशा खराब थी |

अब हमारी दशा अच्छी हो गई | आगे चला तो मित्र का गाँव आया राजा बोले हम उसी कमरे में ठहरेंगे जहाँ पहले ठहरे थे | उसी कमरे में ठहरे और आधी रात को मोरडी ने हार उगलने लगी तो रानी ने कहा अपने मित्र को बुलाकर लाओ | मित्र ने देखा और अपनी पत्नी की तरफ से माफी मांगी और कहा औरत की बात पर मत जावों | आगे जाकर देखा तो बहन का गाँव आया | दासी पानी भरने आई और देखा और रानी को जाकर कहा आपके भैया भाभी आये हैं ,उनकी हालत भी अच्छी हैं | तब बहन वहाँ गयी और बोली भाभी घर चलो , तो भाभी बोली नहीं बाई जी हम तो आपके घर नही चलेंगे आपको शर्म आएगी |

भाभी ने खड्डा खोदा तो वहा सोने के चक्र निकले बहन ने भाई की आरती उतारी भाई ने सोने के चक्र बहन को दे दिए | और अपने नगर में आये ती वहा की प्रजा अत्यंत प्रसन्न हो गई और सारे गाँव ने  राजा रानी का स्वागत किया |  राजाजी के आते ही हवेली के कंगूरे सीधे होने लगे तो राजाजी ने कहा की हे दशा माता पुरे कंगूरे सीधे मत होवे  मुझे भी याद रहेगा की हमारी दशा भी खराब आई थी  |और हवेली में पहले जैसे ठाठ हो गये |  राजाजी ने नाइ और ब्राह्मण की लडकी का धूमधाम से विवाह करवा दिया |इसलिये कहते हैं की  दशा किसी से पूछकर नहीं आती | हे दशामाता जैसी राजा की अच्छी दशा आयी वैसे ही सब पर अपनी कृपा रखना | || जय बोलो दशामाता की जय ||

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