महाभारत के सड़सठवे अध्याय के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की महिमा

दुर्योधन ने  भीष्मपितामह से पूछा – पितामह ! वासुदेव श्री कृष्ण को संपूर्ण लोकों में महान बताया जाता है अतः में उनकी उत्पत्ति और स्थिति के विषय में जानना चाहता हूं|

 भीष्मपितामह जी ने कहा – भरत श्रेष्ठ ! वसुदेव नंदन श्री कृष्ण वास्तव में महान है वे संपूर्ण देवताओं के भी देवता हैं कमलनयन श्री कृष्ण से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोई नहीं है मार्कण्डेय जी भगवान गोविंद के विषय में अत्यंत अद्भुत बात करते हैं वे भगवान ही सर्वभूत में हैं और वे ही सबके आत्मस्वरूप महात्मा पुरुषोत्तम है |

सृष्टि के आरंभ में इन्हीं परमात्मा ने जल, वायु और तेज इन तीन भूतों तथा संपूर्ण प्राणियों की सृष्टि की थी |

संपूर्ण लोकों के ईश्वर इन भगवान श्री हरि ने पृथ्वी देवी की सृष्टि करके जल में शयन किया वे महात्मा पुरुषोत्तम सर्व तेजोमय देवता योग शक्ति से उस जल में सोए|

उन अच्युतम ने अपने मुख से अग्नि की प्राण से वायु की तथा मन से सरस्वती देवी और वेदों की रचना की

इन्होंने ही सर्ग के आरंभ में संपूर्ण लोकों तथा अतिथियों सहित देवताओं की रचना की थी | यह ही प्रलय  के अधिष्ठान और मृत्यु स्वरूप है प्रजा की उत्पत्ति और विनाश  इन्हीं से होते हैं|

यह धर्म  वरदाता संपूर्ण कामनाओं को देने वाले तथा धर्म स्वरूप है यह ही कर्ता , कार्य आदि देव तथा स्वयं सर्व समर्थ है |

भूत भविष्य और वर्तमान तीनों कालों की सृष्टि भी पूर्व काल में इन्हीं के द्वारा हुई है जनार्दन ने की दोनों संध्याओ , दसों दिशाओं ,आकाश तथा नियमों की रचना की है

महात्मा अविनाशी प्रभु गोविंद ने ही ऋषियों तथा तपस्वीयों की रचना की है जगत सृष्टा प्रजापति को भी उन्होंने ही उत्पन्न किया है

पहले संपूर्ण भूतों के अग्रज संकर्षण  को प्रकट किया उनसे सनातन देवादिदेव नारायण का प्रादुर्भाव हुआ |

नारायण की नाभि से कमल प्रकट हुआ संपूर्ण जगत की उत्पत्ति के स्थान भूत उस कमल से पितामह ब्रह्माजी उत्पन्न हुए और ब्रह्मा जी से ही यह सारी प्रजाये उत्पन्न हुई है |

जो संपूर्ण भूतों को तथा पर्वतों सहित इस पृथ्वी को धारण करते हैं जिन्हें विश्व रूपी अनंत देव तथा शेष कहा गया है उन्हें भी उन परमात्मा ने ही उत्पन्न किया है|

ब्राह्मण लोग ध्यान योग के द्वारा इन्हीं परम तेजस्वी वासुदेव का ज्ञान प्राप्त करते हैं जलशायी नारायण के कान की मेल से महान असुर मधु का जन्म हुआ था वह मधु बड़े ही उग्र स्वभाव तथा क्रूर कर्मा था उसने ब्रह्मा जी का समादर  करते हुए अत्यंत भयंकर बुद्धि का आश्रय लिया था इसीलिए ब्रह्मा जी का  समादर करते हुए भगवान पुरुषोत्तम ने मधु को मार डाला था |

तात ! मधु नामक दैत्य का वध करने के कारण ही देवता, दानव मनुष्य तथा ऋषिगण श्री जनार्दन को मधुसूदन के नाम से भी पुकारते हैं

वही भगवान समय-समय पर वराह , नरसिंह और वामन के रूप में प्रकट हुए हैं यह श्रीहरि ही समस्त प्राणियों के पिता और माता है|

इनसे बढ़कर दूसरा कोई तत्व नहीं हुआ है और ना होगा | राजन ! इन्होंने अपने मुख से ब्राह्मणों, दोनों भुजाओं से क्षत्रियों जंगा से वैश्य और चरणों से शूद्रों को उत्पन्न किया है|

जो मनुष्य तपस्या में तत्पर हो संयम नियम का पालन करते हुए अमावस्या और पूर्णिमा को समस्त देह धारियों के आश्रय ब्रहम एवं योग स्वरुप भगवान केशव की आराधना करते हैं वह परम पद को प्राप्त कर लेता है|

नरेश्वर संपूर्ण लोकों के पितामह भगवान श्री कृष्ण परम तेज है मुनिजन इन्हें हृषिकेश कहते हैं |

इस प्रकार इन भगवान गोविंद को तुम आचार्य पिता और गुरु समझो भगवान श्रीकृष्ण जिनके ऊपर प्रसन्न हो जाए वह अक्षय लोकों पर विजय पा जाता है |

जो मनुष्य भय के समय इन भगवान श्री कृष्ण की शरण लेता है और सर्वदा इस स्तुति का पाठ करता है वह सुखी एवं कल्याण का मार्गी होता है |

जो मानव भगवान श्री कृष्ण की शरण लेते हैं वे कभी मोह में नहीं पड़ते जनार्दन महान भय में निबंध भगवान उन मनुष्य की सदैव ही रक्षा करते हैं |

भरतवंशी नरेश इस बात को अच्छी तरह समझ कर राजा युधिष्ठिर ने संपूर्ण हृदय से लोगों के स्वामी सर्वसमर्थ जगदीश्वर एवं महात्मा भगवान केशव की शरण ली हैं |

 ||इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अंतर्गत भीष्मवध पर्व में विश्वउपाख्यान विषयक 67 वा अध्याय पूरा हुआ ||

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