कुंती द्वारा स्वयंवर में पांडु का वरण और उनके साथ विवाह की कथा

kunti dvaara svymbar me pandu ka varan aur unke satha vivah ki katha

 राजा कुंती भोज की पुत्री थी , कुंती  वह विशाल नेत्रों वाली धर्म परायण सुंदर रूप तथा उत्तम गुणों से संपन्न थी वह एकमात्र धर्म में रत रहने वाली और महान व्रतों का पालन करने वाली थी
वह सर्वोत्तम गुण अधिक मात्रा में प्रकट होकर उसकी शोभा बढ़ा रहे थे  |मनोहर रूप तथा युवा अवस्था से सुशोभित उस तेजस्विनी राजकन्या के लिए कई राजाओं ने महाराज कुंती भोज से याचना की |
तब राजा कुंती भोज ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए राजाओं को बुलाकर स्वयंवर का आयोजन किया |
तेजस्विनी कुंती ने सब राजाओं के बीच रंगमंच पर बैठे हुए भरत वंश शिरोमणि नृप श्रेष्ठ पांडू को देखा
उनमें सिंह के समान अभिमान जाग रहा था , उनकी छाती बहुत चौड़ी थी , उनके नेत्र बेल की आंखों के समान बड़े-बड़े थे |उनका बल महान था वह सब राजाओं की प्रभा को अपने तेज से आच्छादित करके भगवान सूर्य की भांति प्रकाशित हो रहे थे |
उस राज्यसभा में वह द्वितीय इंद्र के समान विराजमान थे |कुंती भोज कुमारी ने पांडू श्रेष्ठ को अपना पति मन ही मन स्वीकार कर लिया था |
राजकुमारी कुंती कुमारी ने लजाते लजाते राजा पांडु के गले में जयमाला डाल दी | तब राजाओं ने जब देखा कि कुंती ने महाराज पांडु को चुन लिया है तब वे हाथी घोड़े और रथो आदि वाहनों द्वारा जैसे आए थे वैसे ही अपने-अपने स्थान को लोट गए |
तब उसके पिता ने कुंती का विवाह नृप श्रेष्ठ पांडु के साथ कर दिया |
अत्यंत सौभाग्यशाली कुरु नंदन पांडू कुंती भोज कुमारी कुंती से संयुक्त हो शचि के साथ इंद्र की भांति सुशोभित हुए |
महाराज कुंती भोज ने कुंती औरनृप श्रेष्ठ पांडु का विवाह संस्कार संपन्न करके उस समय उन्हें नाना प्रकार के धन और रत्नों द्वारा सम्मानित किया
तत्पश्चात पांडू को उनकी राजधानी भेज दिया गुरु श्रेष्ठ जन्मेजय तब कौरव नन्दन राजा पांडू नाना प्रकार की ध्वज पताका ओं से सुशोभित विशाल सेना के साथ चलें | उस समय बहुत से ब्राह्मण एवं महर्षि आशीर्वाद देते हुए उनकी स्तुति करवाते थे  |हस्तिनापुर में आकर उन शक्तिशाली नरेश ने अपनी प्यारी पत्नी कुंती को राज महल में पहुंचा दिया
 || इस प्रकार श्री महाभारत आदि पर्व के अंतर्गत संभव पर्व में कुंतीविवाहविषयक 111 वां अध्याय पूरा हुआ ||

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