भगवान नरसिंह अवतार की पौराणिक कथा

देवर्षि नारद जी की कृपा से माता का कयाधु के गर्भ से भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ भक्त प्रहलाद के मन  में भक्ति के गुण जब वह अपनी मां के गर्भ में थे तभी भगवत भक्ति का ज्ञान उन्हें हो गया था । पहले जानते थे कि भगवान सर्वव्यापी है और सभी जगह विद्यमान है वह अपने भक्तों पर सदैव दया करते हैं और उन्हें समय-समय पर दर्शन देते हैं। भक्त वत्सल भगवान का ध्यान सदैव ही करना चाहिए श्री हरि के नाम का सर्वदा गुणगान करना चाहिए प्रहलाद की प्रेम भाव भक्ति को देखकर पिता हिर्नाकश्यपु अत्यंत क्रोधित रहने लग गए । वे भगवान कहने वालों तथा भगवान के नाम का गुणगान करने वालों को अपना परम शत्रु मानते थे ।  इसीलिए पुत्र प्रहलाद भी हिरण्यकशिपु को स्वीकार नहीं था । उसने अपने ही पुत्र को करने के लिए बहुत कठिन कठिन यातनाएं दी किंतु भगवान श्री नारायण जिसकी रक्षा करते हैं उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है । हिना कश्यप पुणे प्रहलाद को खंभे से बांध दिया तब भी पहले डरे नहीं ।  प्रसन्न मन से भगवान प्रभु नारायण का जप करने लगे ।

 

 

 

 

हिर्नाकश्यपपु णे तलवार उठाई और उन्हें मारने  के लिए तैयार हो गए । भगवान श्री नारायण की लीला अपरंपार है वे धन्य है फिर उसी क्षण तत्काल ही खम्भे को फाड़ कर भगवान नरसिंह के रूप में प्रकट होकर भक्त प्रहलाद को दिव्य दर्शन दिए और हिरण्यकशिपु का संहार किया । तभी से भगवान नरसिंह के दिव्य स्वरूप की जो भक्त पूजा अर्चना करते हैं उनके नाम का स्मरण करते हैं उनके पहाड़ जैसे दुख भी क्षण में ही दूर हो जाते हैं एवं भगवान विष्णु के नाम का जाप स्मरण करने से मां लक्ष्मी स्वयं उपस्थित रहती है । जो भक्त भगवान नर्सिंग गोलमाल लक्ष्मी की युगल रूप में पूजा करते हैं उनके घर में कभी धन-धान्य यश वैभव की कमी नहीं होती है। भगवान नरसिंह अवतार के दर्शन करने से मंदिर में सेवा करने से मनुष्य इस संसार में सुख भोग कर अंत समय में भगवान श्री हरि नारायण के चरणों में सदा सदा के लिए निवास करता है तथा जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है ।

 

 

 

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