श्री राधिका – वन्दन

श्री राधाजी  व्रजराजकुमारवल्लभा कुलसीमन्तमणि प्रसीद में |

परिवारगणस्य ते यथा पदवी में न पदवी द्वियसी भवेत ||

     आरती श्री राधाजी की

आरती श्री वृषभानुसुताकी |

मंजू मूर्ति मोहन – ममता की || टेक ||

त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनी ,

विमल विवेकविराग  विकासिनी ,

पावन प्रभु – पद – प्रीति प्रकाशिनि

सुन्दरतम छवि सुन्दरता की || १ ||

मुनि – मन – मोहन  मोहन मोहनि ,

मधुर मनोहर मूरति सोहनि

अविरलप्रेम – अमिय – रस – दोहनी ,

प्रिय अति सदा सखी ललिता की || २ ||

संतत सेव्य संत – मुनि –जनकी ,

आकर अमित दिव्यगुण – गन की ,

आकर्षिणी कृष्ण – तन – मन की ,

अति अमूल्य सम्पति समता की || ३ ||

कृष्णात्मिका , कृष्ण – सहचारिणी

चिन्मयवृन्दा – विपिन – विहारिणी ,

जगजननि जग – दुःखनिवारिणी ,

आदि अनादि शक्ति विभुता की || ४ ||

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