“मनुष्य के तीस धर्म” “Thirty Virtues of Humanity” or “Thirty Human Virtues” in English.
देवर्षि नारदजी युधिष्ठिर से कहा हे युधिष्ठिर ! मनुष्य मात्र के 30 धर्म में तुम्हें बतलाता हूं- संपूर्ण संसार के मनुष्य के लिए यह 30 लक्षण वाला श्रेष्ठ धर्म का गया है इसमें सर्वात्मा भगवान प्रसन्न होते हैं मनुष्य मात्र के 30 धर्म लक्षण इस प्रकार है – सत्य
दया
तपस्या
शौच
तितीक्षा
आत्म निरीक्षण
बाहय इंद्रियों का संयम
आंतरिक इंद्रियों का संयम
अहिंसा
ब्रह्मचर्य
त्याग
स्वाध्याय
सरलता
संतोष
सभी के प्रति समान दृष्टि
सेवा
दुराचारी से निर्भरती लोगों की विपरीत चेषताओं के फल का अवलोकन
मोन
आत्म विचार
प्राणियों को यथायोग्य अनुदान
आदि अर्थात दान की प्रवृत्ति सभी प्राणियों में विशेष करके मनुष्य में आत्म बुद्धि इष्ट देव बुद्धि महात्माओं के आश्रय भूत भगवान के गुण नाम आदि का चिंतन
श्रवण
कीर्तन
स्मरण
सेवा
यज्ञ
नमस्कार
दास वह उसे सेवा शाखा हुआ उसे सेवा आत्म निवेदन आदि। देवश्री नारद जी ने यह मुख्य मुख्य मनुष्य मात्र के लिए तीस धर्म बतलाए हैं ।
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