षष्टि देवी की कथा | Shshti Devi Katha

षष्टि देवी  प्रियव्रत नाम के एक राजा थे |उनके पिता का नाम स्वायम्भुव मनु था | कश्यपजी ने उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया | राजा की भार्या का नाम मालिनी था | कश्यप मुनि ने उन्हें चरु प्रदान किया | चरु प्रसाद का सेवन करने के बाद मालिनी गर्भवती हो गई और प्रतिभाशाली कुमार का जन्म हुआ परन्तु सम्पूर्ण अंगो से युक्त वह कुमार मर हुआ उत्त्पन हुआ था | मुने ! उस मृत बालक को लेकर राजा प्रियव्रत श्मशान गये | श्मशान में राजा प्रियव्रत को एक विमान दिखाई दिया उस पर एक अलौकिक सुन्दरी विराजमान थी | राजा ने बालक का शव धरा पर रख उस देवी की विभन्न प्रकार से स्तुति की वह साक्षात् षष्टि देवी थी | देवी ने उस बालक को अपनी गोद में उठा लिया और उस बालक को पुन: जीवित कर दिया | और राजा को आशीर्वाद दिया की तुम राजा के  स्वायम्भुव मनु के पुत्र हो तुम सर्वत्र मेरी पूजा स्तुति करो में तुम्हे कमल के समान मुख वाला पुत्र प्रदान करूंगी | उसका नाम सुब्रत होगा राजा प्रियव्रत ने देवी की आज्ञा स्वीकार कर ली और देवी अंतर्ध्यान हो गई | राजा ने षष्टि देवी की स्तुति , हवन , यज्ञ सर्वत्र करने लगे | तभी से शुक्ल पक्ष की षष्टि तिथि को माँ षष्टि देवी का पूजन होने लगा | वह बालक के जन्म के छटे दिन इक्किस्वे दिन तथा अन्न प्रश्न के समय देवी षष्टि का पूजन होने लगा | भक्त माँ षष्टि का इस प्रकार ध्यान करे – सुन्दर पुत्र , कल्याण तथा दया प्रदान करने वाली देवी आप जगत की माता हैं आपका रंग श्वेत है हीरे जवाहरात रत्नों सर जडित हैं हे परम् स्वरूपणी भगवती देव सेना की मैं उपासना करता हूँ | इस प्रकार ध्यान कर जल समर्पित करे , मन , कर्म ,वचन से देवी षष्टि का स्मरण करे |   पुष्प अर्पित करे | इस अष्टाक्षर मन्त्र का यथाशक्ति जप करे |

“ ॐ हिं षष्टि देव्यै स्वाहा “

महाराज प्रियव्रत ने षष्टि देवी की कृपा से यशस्वी पुत्र प्राप्त किया | जो कोई भी भक्त देवी षष्टि के स्त्रोत्र का पाठ एक वर्ष तक करता हैं तो उसे सुन्दर पुत्र प्राप्त होता हैं | उसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं |  सन्तान को दीर्घ आयु प्राप्त होती हैं |
 

सभी कामनाओ की पूर्ति करने वाला षष्टि देवी स्तोत्र –

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:। 
शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नम: ।।

वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।

शक्ते: षष्ठांशरूपायै (शक्तिषष्ठीस्वरूपायै) सिद्धायै च नमो नम: ।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।

पारायै पारदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
सारायै सारदायै च परायै सर्वकर्मणाम्।।

बालाधिष्ठातृदेव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम्।।

प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
पूज्यायै स्कन्दकान्तायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।।

देवरक्षणकारिण्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै नृणां सदा।।

हिंसाक्रोधवर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि।।

धर्मं देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते।।

कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे इतिखण्डे नारदनारायणसंवादे षष्ठ्युपाख्याने श्रीषष्ठीदेविस्तोत्रं सम्पूर्णम्

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