संकटमोचन हनुमानाष्टक | Sankatmochan Hanumanashtak

संकटमोचन हनुमानाष्टक Sankatmochan Hanumanashtak

संकटमोचन हनुमानाष्टक में वीर बजरंग बलि की महिमा का वर्णन किया गया है | बाल्यकाल से ही मेरे प्रभु ने बहुत चमत्कार किये हैं | उन्होंने सूर्य को लाल फल समझ कर खा लिया था पुरे जग में अँधेरा छाँ गया था ,  सभी देवताओने हनुमान जी से प्रार्थना करी की सूर्य को छोड़ दे और तीनो लोको की रक्षा करे , कौन नहीं जनता ऐसे कपि [ हनुमान जी भगवान ] को संसार में संकट मोचन आपका ही नाम हैं अर्थात विध्नो , कष्टों , बाधाओ को दुर करने वाला इसे प्रभु को मेरा बारम्बार प्रणाम |

संकटमोचन हनुमानाष्टक के नित्य पाठ करने से प्रभु सभी कष्टों को दुर कर जीवन में सुख़ – समृद्धि व लक्ष्मी चंचला होते हुये भी उस घर में हमेशा निवास करती हैं |

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संकटमोचन हनुमानाष्टक

 sankat mochan hanuman aashtak

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मत्तगयन्द छन्द

बाल समय रवि भक्षी लियो तब

तीनहूँ लोक भयो अँधियारो |

ताहि सों त्रास भयो जग को

यह संकट काहु सों जात न टारो ||

देवन आनि करी बिनती तब

छांडी दियो रवि कष्ट निवारो |

को नहीं जानत हैं जग में कपि

संकटमोचन नाम तिहारो || १ ||

बालि की त्रास कपीस बसई गिरी

जात महाप्रभु पंथ निहारो |

चौकी महामुनि शाप दियो तब

चाहिय कौन बिचार बिचारो ||

कैदिव्ज रूप लिवाय महाप्रभु

सो तुम दास के सोक निवारो || को० – २ ||

अंगद के संग लेन गये सिय

खोज कपीस यह बैन उचारो |

जीवत ना बचिहौ हम सो जु

बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो ||

हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय

सिया सुधि प्रान उबारो || को ० – ३ ||

रावण त्रास दई सिय को सब

राक्षसि सों कही सोक निवारो |

ताहि समय हनुमान महाप्रभु

जाय महा रजनीचर मारो ||

चाहत सीय असोक सों आगि सु

दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो || को ० – ४ ||

बान लग्यो उर लछिमन के तब

प्रान तजे सुत रावन मारो |

लै गृह बैध सुषेन समेत

तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो ||

आनि सजीवन हाथ दई तब

लछिमन के तुम प्रान उबारो || को ० – ५ ||

रावन जुद्ध अजान कियो तब

नाग की फाँस सबै सिर डारो |

रघुनाथ समेत सबै दल

मोह भयो यह संकट भारो ||

आनि खगेस तबै हनुमान जु

बंधन काटी सुत्रास निवारो || को ० – ६ ||

बंधु समेत जबै अहिरावन

लै रघुनाथ पताल सिधारो |

देबिहि पूजि भली बिधि सों बलि

देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो ||

जाय सहाय भयो तब ही

अहिरावन सैन्य समेत संहारो || को ० – ७ ||

काज किये बड देवन के तुम

 बीर महाप्रभु देखि बिचारो |

कौन सु संकट मोर गरीब को

जों तुमसों नहीं जात है टारो ||

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु

जों कछु संकट होय हमारो || को ० – ८ ||

दोहा

लाल देह लाली लसे , अरु धरि लाल लंगूर |

बज्र देह दानव दलन , जय जय जय कपि सूर ||

|| इति संकटमोचन हनुमानष्टक सम्पूर्ण ||

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