राजा शिबी का कबूतर की प्राण रक्षा के लिए बाज को अपने शरीर का मांस काटकर देना

Raja Shibi ka Kabutar Ki Prana Raksha Ke Liye Baaj Ko Apane Sharir Ka  Mans Kat kar Dene ki katha

राजा शिबी के दान वीरता की कथा  शिबी की परीक्षा लेने के लिए इंद्र ने बाज पक्षी का तथा अग्नि ने कबूतर का रूप धारण किया और दोनों ने राजा के यज्ञ मंडप में प्रवेश किया और अपने प्राणों की रक्षा की इच्छा से बाज के भय से कबूतर राजा की गोदी में जा बैठा |

बाज ने कहा – राजन ! समस्त भूपाल केवल आपको ही धर्मात्मा बताते हैं फिर आप धर्म विरुद्ध कार्य कैसे कर सकते हैं | यह कबूतर मेरा आहार हैं मैं भूख से व्याकुल हूँ  आप धर्म के लोभ में इसकी रक्षा न करे | वास्तव में आपने इसकी रक्षा कर धर्म विरुद्ध कार्य ही किया हैं |

राजा बोले- पक्षिराज ! यह कबूतर अपनी प्राण रक्षा के उद्देश्य से मेरी शरण में आया हैं इसकी रक्षा करना मेरा परम् धर्म हैं | यह तुमसे अत्यधिक भयभीत हैं |  ऐसी दशा में इसका त्याग करना निंदनीय होगा | जो मनुष्य ब्राह्मणों की हत्या करता हैं , जो गौमाता का वध करता हैं जो शरण में आये हुए की रक्षा नहीं कर्ता हैं ये तीनों ही पाप कर्म हैं |

बाज ने कहा – हे राजन ! सब प्राणी आहार से ही उत्त्पन होते हैं आहार से ही उनकी वृद्धि होती हैं और आहार से ही जीवित रहते हैं |जिसका त्याग करना अत्यंत कठिन हैं |भोजन का त्याग करने पर कोई प्राणी अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकता | हे राजन आज आपने मुझे भोजन से वंचित रखा हैं इसलिए मैं मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा | इस प्रकार मेंरी मृत्यु हो जाने पर मेरे पत्नी पुत्र भी असहाय हो जायेंगे इस प्रकार अनेक जिन्दगिया नष्ट हो जाएगी | एक कबूतर की प्राण रक्षा के लिए अनेक जिंदगियो की हानी होगी |  जिससे दूसरों के लिए बाधा ना हो ऐसे धर्म का आचरण करना चाहिए |

राजा ने कहा – पक्षिराज ! तुम्हारी बाते सत्य हैं तुम धर्म के ज्ञाता हो इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं |तुम्हारी वाणी से ये ज्ञानवर्धक बाते अत्यंत प्रिय लगती हैं | ये सभी बाते धर्म संगत हैं | तो तुम अत्यधिक ज्ञानवान होते हुए किस प्रकार शरणागत त्याग को किस प्रकार उचित मानते हो यह मेरे समझ में नहीं आता | तुम्हारे आहार का प्रबंध तो और किसी माध्यम से किया जा सकता  हैं | सुवर , भैसा , हिरन कोई भी पशु जो तुम्हे अभीष्ट हो प्राप्त हो जायेगा और वह तुम्हारे लिए पर्याप्त भी होगा |

बाज बोला – हे राजन ! मैं सुवर नहीं खाता और ना ही कोई दूसरा पशु स्वामी विधाता ने जो आहार मेरे लिए निश्चित किया हैं वह यह कबूतर हैं इसी को मुझे दे दीजिये | यह सनातन काल से चला आ रहा हैं कबूतर बाज का आहार हैं |

राजा ने कहा – हे बाज ! मैं शिबी देश का राजा शिबी हूँ तुम्हारे लिए जो भी भोजन उचित होगा उसकी तुम्हारे लिए उतम व्यवस्था करूंगा |किन्तु शरण में आये यूए इस पक्षी का त्याग नहीं कर सकता |

बाज ने कहा – हे राजन ! यदि यह कबूतर प्राणों से भी प्रिय हो गया हैं तो इसी के बराबर अपना मांस काटकर तराजू में रखिये जब मांस इस कबूतर के बराबर हो जायेगा बस में उसी से तृप्त हो जाऊंगा |

राजा ने कहा – हे बाज  !   तुम्हारा मेरे उपर उपकार होगा | मैं अभी इसके बराबर अपना मांस तुम्हे देता हूँ | तब उन परम् प्रतापी दानवीर राजा ने अपना मांस काटकर प्राजू पर तौलना प्रारम्भ किया | किन्तु मांस बार बार रखने पर भी कबूतर के बराबर नहीं हो रहा था तब राजा शिबी स्वयं पलड़े पर जा बैठे |

तब राजा शिबी और अग्नि देवता प्रसन्न होकर अपने वास्तविक रूप में आये और राजा को वरदान दिया की आप की कीर्ति समस्त संसार मे फेलेगी | देवराज और अग्निदेव अपने स्थान पर चले गये और रजा शिबी इस लोक में सुख भोग कर स्वर्ग लोक में चले गये और उनकी ख्याति आज भी चारों और फैली हुई हैं |

जय दानवीर राजा शिबी की सदा ही जय हो |

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