भगवान शिवजी के दुर्वासा अवतार की कथा
भगवान शिवजी के दुर्वासा अवतार की कथा ब्रह्मा के परम् तपस्वी और अत्री नामक पुत्र हुए वे बड़े ज्ञानी , विद्वान् तथा ब्रह्माजी के आज्ञाकारी पुत्र तथा सती अनसूया के पति थे | एक समय वे देवी अनुसूया के साथ पुत्र प्राप्ति की इच्छा से त्र्यक्षकुल पर्वत पर गये |अत्री ऋषि ने मन मेंपुत्र प्राप्ति का निश्चय कर कठोर तप साधना में लीन हो गये | सौ वर्ष पर्यन्त उनके शरीर से अग्नि ज्वाला निकलने लगी जिससे समस्त देवता मुनिगण पीड़ित होने लगे | सभी देवगण ब्रह्म लोक में गये और ब्रह्माजी की स्तुति कर प्रार्थना करने लगे तब ब्रह्माजी सभी देवताओ को लेकर विष्णुलोक गये | वहाँ लक्ष्मीपति विष्णु भगवान का ध्यान करब्रह्माजी ने देवताओ के दुःख को कह सुनाया तब भगवान विष्णु जी ने देवताओ की पीड़ा सुन सभी देवताओ और ब्रह्माजी सहित शिवलोक में गये | वहाँ पहुचकर विष्णु भगवान ने सारा वृतांत शिवजी को कह सुनाया |फिर ब्रह्मा , विष्णु , महेश अत्री ऋषि के सामने प्रगट हुए | अत्री ऋषि ने प्रिय वाणी से उनकी स्तुति कर बोले – हे ब्रह्मन ! हे विष्णो ! हे रूद्र ! आप तीनों लोको में पूज्यनीय हैं इस संसार के आदि और अंत आप ही हैं |मैं [ अत्री सपत्निक ] पुत्र प्राप्ति की कामना से आपका ध्यान किया हैं | मुझे अभीष्ट वर प्रदान करे |
अत्री ऋषि के यह वचन सुन यह वर दिया की हम तीनों के ही अंश से आपको तीन पुत्रो का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा | वे तीनों ही जगत में प्रसिद्ध होकर माता पिता की कीर्ति बढाने वाले होंगे ऐसा वर प्रदान कर समस्त देवगण अपने अपने लोक में चले गये | अत्री ऋषि प्रसन्नतापूर्वक सपत्निक अपने आश्रम चले आये | ब्रह्मा , विष्णु , महेश पुत्र रूप में देवी अनसूया के गर्भ से ब्रह्मा के आशीर्वाद से चन्द्रमा , किन्तु देवताओ के द्वारा समुन्द्र में डाल देने के कारण वे पुन: समुन्द्र से उत्पन्न हुए , विष्णु के आशीर्वाद से दतात्रेय उत्पन्न हुए | शिव के आशीर्वाद से धर्म प्रचारक दुर्वासा उत्पन्न हुए |